रेप यहां म्यूचुअल इंटिमेसी है, कॉम्प्रोमाइज का मतलब सर्वाइवल... मॉडल्स से जानिए ग्लैमर की दुनिया का ‘सच’!

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मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने हड़कंप मचाया हुआ है. लंबे समय तक शारीरिक-मानसिक शोषण झेल चुकी महिलाओं ने कितने ही राज खोले. ये किस्सा केरल की चौहद्दी तक नहीं रुकता. न ही फिल्मों तक सिमटा है. इसकी छाया फैशन इंडस्ट्री पर भी डोलती रहती है.

5'11 कद और बेहतरीन सजधज वाली मॉडल्स की आंखों के नीचे स्याही की कितनी ही कटोरियां छिपी होती हैं. उनके पर्स भले फूले हुए हों, लेकिन पेट खाली रहना चाहिए.

एक मॉडल फोन पर कहती हैं- 'कम उम्र की लड़कियां यहां एक वक्त पर एक-दो-तीन या कई-कई शिकारियों के बीच घिरी रहती है. जो भी जैसा कहे, मानना ही होगा. बेहद इंटीमेट इस इंडस्ट्री में कोई कायदा, कोई लिखा-पढ़ी नहीं. आप कामयाब तभी तक हैं, जब तक चुप हैं.'

इस चुप्पी के भीतर तक जाना आसान नहीं. पहचान छिपाने के भरोसे के बाद भी कई मॉडल्स इनकार कर देती हैं. कुछ राजी हुईं, लेकिन कहानी कहते हुए जोड़ती हैं- ये मेरी दोस्त के साथ हुआ. मुझे तो इंडस्ट्री में भले आदमी ही मिले.

सिर्फ एक कहती है- टिके रहने के लिए गॉडफादर होना जरूरी है. पावरफुल. फिर कोई आप पर हाथ नहीं डालेगा, सिवाय उसके. फोन पार कसैली हंसी.

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लगभग 18 की थी, जब एक बड़े फैशन शो के लिए शॉर्टलिस्ट हुई. किसी स्कॉउट ने मेरा नाम सुझाया था, जब मैं शॉपिंग मॉल में घूम रही थी.

स्कॉउट यानी एजेंट?

एक किस्म का एजेंट ही समझ लीजिए लेकिन छोटे लेवल का. इनका काम लोकल तौर पर मॉडल्स को तलाशना होता है, जिसके लिए वे एयरपोर्ट, मॉल, या हर बड़ी जगह पर रेकी करते हैं. कोई मॉडल-फेस नजर आए तो उसे बड़े एजेंट तक पहुंचाते हैं.

कुछ ही हफ्तों बाद मुंबई की ट्रेन टिकट के साथ एक एड्रेस भी भेजा गया. ईमेल पर खास कुछ नहीं था, बस इसके कि वहां मेरा छोटा-सा टेस्ट होगा. ‘फॉर्मेलिटी ही मानिए’- फोन पर थर्ड-पार्टी एजेंट तसल्ली देता है.

malayalam film industry hema committee report on sexual abuse of women and life story of fashion models india photo- Pixabay

वहां पहुंची तो अपार्टमेंट में लड़कियों की कतार लगी हुई. सब की सब एक-दूसरे की पक्की-धुंधली फोटोकॉपी. लंबा कद. दुबली-पतली. कम उम्र. सबकी आंखों में टिमटिमाते जुगनू. एक-एक करके सबको अंदर जाना था. मेरी पारी आई.

कमरे में दो लोग थे. एक ने कहा- ‘क्या हम तुम्हें टॉप के बगैर देख सकते हैं... अगर तुम्हें एतराज न हो तो!’

मैं एक सेकंड के लिए अचकचाई, फिर वही किया जो वे चाहते थे.

‘क्या इस तरह की पोज देकर दिखा सकती हो, दिक्कत हो तो मत देना, स्वीटी’- बेहद नर्म, लेकिन लिजलिजी दूसरी आवाज आती है.

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करीब 15 मिनट में एक-एक करके कई ऐसी रिक्वेस्ट आती रहीं. एक ने मुझे हाथ लगाकर सिर से पांव तक टटोला. ‘मेंट फॉर दिस’- मुस्कान में लिपटे शब्द.

वो इंडस्ट्री के पुराने लोग थे. नाम कुछ समय बाद पता लगा. काम के लिए बुलावा लेकिन तब भी नहीं आया.

मॉडलिंग का ये आजमाया हुआ पैतरा है. यहां कोई भी डिमांड ऐसे आएगी कि रिक्वेस्ट से अलग न लगे. साथ में अंग्रेजीदां पुचकार - ‘कंफर्टेबल न हो तो एकदम मना कर देना’. लेकिन आप खुद ही सोचिए. छोटी लड़कियां, जो अब तक सॉफ्ट टॉय के साथ खेलती रहीं, इंडस्ट्री के मंजे हुए लोगों को मना कैसे कर पाएंगी. वे मिनटभर में आपका करियर बना-बिगाड़ सकते हैं. ऊपर से तगड़ा कंपीटिशन.

आप इनकार करेंगे तो खाली जगह कोई और ले लेगा.

मैं उतने बड़े शहर से नहीं. लेकिन ठीक दिखती हूं. ठीकठाक अंग्रेजी बोल लेती हूं. खाने-पीने का परहेज नहीं. परिवार रिश्ता तोड़ चुका तो लगभग आजाद ही मानिए. लेकिन यहां की डिक्शनरी ही भूलभुलैया थी.

यहां एक टर्म है- गो-सी. एजेंट मुझे ऐसे लोगों से मिलने भेजता जो क्लाइंट होते, या जो काम दिलवा सकते थे.

अक्सर सूने अपार्टमेंट में ये मीटिंग्स होतीं. हो सकता है, आप आज बच जाएं, लेकिन कल या परसों आपकी भी बारी आएगी. आनी ही है.

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इंडस्ट्री पहुंचने के दो महीनों के भीतर मेरा रेप हो चुका था. या कहें- म्युचुअल इंटिमेसी.

malayalam film industry hema committee report on sexual abuse of women and life story of fashion models india photo Getty Images

मुझे काम चाहिए था. मुझ-सी कितनी ही लड़कियां गो-सी में आती होंगी. जबर्दस्ती के ठीक बाद डिजाइनर ने जूस के घूंट भरते हुए अंग्रेजी में कहा- तुम्हारा अपर पोर्शन काफी हैवी है. उसपर काम करो.

कपड़े ठीक करते हुए मैं सोच रही थी कि क्या अब मुझे काम मिलेगा!

ये बात उसके बाद कई लोगों ने कही. ‘टू मैच्योर.’ हमारे यहां थोड़े वजनी लोगों के लिए यही टर्म है. कोई आपको सीधे मोटा या भारी नहीं कहेगा. मैं 18 की उम्र में मॉडलिंग के लिए टू मैच्योर मानी जा रही थी.

फिर आपने उसपर काम किया?

नहीं. अब 28 की हो चुकी. कुछ साल घिस-घिसाकर मैंने इंडस्ट्री ही छोड़ दी. इसके अलावा सब करती हूं. वॉइस ओवर देती हूं. डिजाइनर्स के लिए फैब्रिक छांटती हूं. थोड़ा पढ़-समझकर स्टॉक में भी पैसे लगाने लगी. मॉडलिंग वैसे भी दूध का उबाल है. एकदम से आप किसी कवर पर या बड़े शो में आ जाएंगे, और उतनी ही तेजी से गायब हो जाएंगे. वैनिश…

वैसे भी 30 तक आते-आते मॉडल बूढ़े हो जाते हैं. लड़कियां और भी जल्दी. सफेद बालों वाला भरोसेमंद एजेंट भी कहता है- ‘अब आप उतनी फ्रेश नहीं रहीं. शो के लिए ताजा चेहरा चाहिए’. जैसे हम लड़कियां न हों, दूध या पनीर हों. बेस्ट बिफोर डेट के साथ.

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और कितनी ही मुश्किलें हैं. शूट के समय मॉडल्स को बहुत सारे जाने-अनजाने लोगों के बीच कपड़े बदलने होते हैं. वे आपको लगातार देखते रहेंगे. शरीर के एक-एक उभार-कटाव पर नजर, लेकिन आप अपना चेहरा सपाट रखिए. माथे पर छोटी सी सिकुड़न, आंखों में जरा भी गुस्सा या एतराज दिखा कि आप बाहर. ‘डिफिकल्ट..लाउड!’ ऐसी मॉडल्स के लिए यही शब्द हैं.

बेबाकी से बात करती ये मॉडल अपना असल नाम देने को राजी नहीं.

इंडस्ट्री तो आप छोड़ चुकीं, फिर क्या दिक्कत है?

रिटायर्ड सही लेकिन हूं तो उसी का पार्ट. नाम खुला तो काम जाते देर नहीं लगेगी.

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उनके बाद फोन पर दिव्या थीं. ‘स्मॉल-टाउन गर्ल.’ वे खुद ही अपने बारे में ये कहती हैं.

पहली बार कपल शो मिला था. मेरे पार्टनर ने डिजाइनर से कहा- ‘मुझे ज्यादा ब्यूटीफुल बंदी चाहिए. ये तो टिंडे-तुरई जैसा फील दे रही है.’ ये बात उसने फुसफुसाते हुए नहीं, जोर से कही थी. ऐसे कि मैं सुन सकूं. ऐसे कि सबको सुनाई दे जाए.

मैं फ्रीज हो गई. अकबकाहट में ही स्टेज पर पहुंची. इसके बाद कई दिन रोती रही. वो मॉडल दोबारा नहीं टकराया. लेकिन मैं उसे भूल नहीं सकी.

छोटे शहर से मुंबई तक का सफर आसान नहीं था. पहले बॉस का पहला सबक था- पानी छोड़कर सबकुछ पियो.

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सिगरेट पियो. भूख मरेगी.
अल्कोहल पियो. नेटवर्क बनेगा.
जूस पियो. ग्लो आएगा.

मैं पूछना चाहती थी कि पोस्ट-इवेंट पार्टी के लिए रात जागकर सुबह शूट पर जाने से कौन- सा ग्लो आएगा, लेकिन कभी पूछ नहीं सकी.

पोस्ट-इवेंट पार्टी तो चॉइस है, आप मना भी कर सकती थीं!

फैशन वर्ल्ड में चॉइस कुछ नहीं. इन पार्टियों में बड़े-बड़े लोग आते हैं. ऑर्गेनाइजर, फोटोग्राफर से लेकर डिजाइनर तक. एक की भी नजर में अटक गए तो कुछ न कुछ काम तो मिल ही जाएगा.

एक शो से कितनी कमाई हो जाती होगी, लगभग!

डिपेंड करता है. शो बड़ा हुआ तो मोटी कमाई. लेकिन ऐसे काम जल्दी आते नहीं हैं. छोटे-मोटे कामों के बीच मैंने कई बार फ्री में भी काम किया ताकि क्लाइंट को पसंद आ जाऊं. कभी-कभी कोई असाइनमेंट नहीं आता. तब सब कुछ करना पड़ता है…

इस सब कुछ में क्या-क्या आता है? क्या कॉम्प्रोमाइज भी!

एक छोटे पल की झिझक के बाद आवाज आती है- ‘जिसे आप कॉम्प्रोमाइज कह रही हैं, वो हमारे लिए सर्वाइवल है. हां. करना पड़ता है. पहली बार जिसने मेरे साथ ऐसा किया, बाद में उसी का हाथ मेरे सिर पर आ गया. गॉडफादर, यू नो!’

‘फिर किसी की भी मुझपर हाथ डालने की हिम्मत नहीं हुई. वो पावरफुल आदमी हैं. मुझे काम भी दिलवाते हैं. सर्कल में सब हमें कपल की तरह जानते हैं. आधी से भी कम एज की होकर भी मुझे अपने लिए पार्टनर खोजने की छूट नहीं, जब तक कि उनका मन मुझसे ऊब न जाए.’ उस पार डबडबाकर गूंजती हुई हंसी.

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आपने कभी उनपर…गॉडफादर पर गुस्सा नहीं किया, मना नहीं किया!

यहां आई तो बच्ची-सी थी. चॉकलेट खाना, नखरे करना पसंद था. फिर उन्होंने मुझपर ‘हाथ रख’ दिया. बाकी लड़कियां जलन से देखतीं. मेरे पास काम आने लगा. झूठ ही सही, लेकिनशहर मेंमेरा कोई करीबी कहलाने लगाथा. मना करने का सवाल ही नहीं. मैं सारी डिमांड मानती चली गई. अब तो कई साल हो गए.

लेकिन ऐसा कितने और साल चलेगा!

जानती हूं. नया फेस, नई वाइब्स मुझे रिप्लेस कर देंगी. मुझसे पहले भी कोई थी, मेरे बाद भी होगी. लेकिन अब इतने आगे निकल चुकी कि घर भी नहीं लौट सकती. वो अलग दुनिया है. मैं खुद एडजस्ट नहीं कर पाऊंगी, न ही फैमिली मुझे सह सकेगी.

परिवार से बात नहीं होती?

मुंबई आने के थोड़े दिनों बाद मां से बात होने लगी थी. लौटने को कहतीं. कहतीं कि पढ़ाएंगे-शादी करवाएंगे... फिर ‘उन्होंने कहा’ कि घर बात मत किया करो, फोकस हट जाता है काम से.

आपने कभी अपना परिवार बनाने की नहीं सोची!

नहीं. मेरे सोचे से क्या होता है. बाहरवाले हममें और पेशेवर लड़कियों में खास फर्क नहीं मानते. अपने करियर में कोई मिले, फिलहाल उसकी गुंजाइश नहीं…

तीसरी मॉडल रीवा हैं. इंडस्ट्री में ही किसी के हवाले से उन्हें कॉल करती हूं. मना करते हुए वे एकदम से मान जाती हैं. अपने लिए फेक नाम भी वही सुझाती हैं.

‘अगर मैं अपना दुखड़ा रोऊं तो फोन पर भले आप चुपचाप सुन लें लेकिन अंदर से कोई सिम्पथी नहीं आएगी. मैं कहूं, मेरा वजन इतने पाउंड बढ़ गया तो आप भीतर ही भीतर इरिटेट हो जाएंगी. हमारी प्रॉब्लम बाकी दुनिया के लिए रियल-वर्ल्ड प्रॉब्लम नहीं.’

वॉट्सएप पर मैं उनकी डीपी देखती हूं. बेहद दुबली-पतली. पान के पत्ते जैसे चेहरे पर टिकी हुई बड़ी-बड़ी आंखें, जैसे ऊपर से टांक दी गई हों.

मैं खाने की जबर्दस्त शौकीन थी. घर पर थी तो रोज शाम चाट-पानी पूरी खाती. न तेल से डरी, न मीठे से. इंडस्ट्री आकर सब बदल गया. अब भी याद है, जब भूख से मेरे पेट से आवाजें निकल रही थीं. आज-कल में कोई शो था.

एजेंट ने मुझे ऑरेंज जूस में कॉटन बॉल्स डुबोकर निगल लेने को कहा. रुई है. कुछ नहीं होगा. पेट भी भरा लगेगा, और वेट बढ़ने का डर भी नहीं.

लगभग हर शो के पहले जीरो-साइज मॉडल वॉशरूम में जाकर उल्टियां करती हैं.

कई लड़कियां बढ़िया खाने की गंध लेती हैं ताकि ब्रेन को भ्रम हो जाए और भूख मिट जाए.

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इंडस्ट्री में आकर ही हमने ये टोटके सीखे. पेट जितना सपाट होगा, ड्रेस उतनी ही फिट लगेगी. मेरी हाइट 5'11 है लेकिन वजन हमेशा 40 से 42 किलो के बीच रहा.रोज सुबह, दोपहर और सोने से पहले वजन लेना होता है. ये सेट स्टैंडर्ड है. शो के समय इससे ज्यादा बार भी. हमारे पेशे में नाम से ज्यादा मॉडल कार्ड चलता है.

वो क्या होता है?

हर मॉडल के पास एक कार्ड होता है जिसपर उसकी लेटेस्ट फोटो और साइज लिखा होता है. यानी हाइट, वजन और कौन सा हिस्सा कितना दुबला या हैवी है. ये कार्ड एजेंसी के पास भी होता है, जो वे क्लाइंट को देते हैं. यही नंबर हमारी पहचान होती है, जब तक कि पक्के कॉन्टैक्ट न बन जाएं!

लोगों को लगता है कि हमें रैंप पर कुछ मिनट के लिए आने या इंस्टा एक एकाध पोस्ट के पैसे मिलते हैं. लेकिन सच तो ये है कि हमें भूख मारने की कीमत मिलती है.

मैं, मेरी जैसी लगभग सारी मॉडल्स रोज भूख से लड़ रही होती हैं. उन्हें सारी ट्रिक पता होती हैं कि कैसे भूख कम से कम लगे. कोई-कोई कंट्रोल न होने पर भरपेट खा लेती है, लेकिन खाना पच सके, उसके पहले गले में अंगुली डालकर सब निकाल देती है. कितने ही ईंटिंग डिसऑर्डर क्लिनिक हैं, जहां हम जैसियों की भीड़ लगी दिखेगी.

लोग पेट भरने के लिए कमाते हैं. हमारे यहां जब तक पेट खाली है, तभी तक पैसे आते रहेंगे.

कोई यूनियन या एसोसिएशन है, जो आप लोगों के लिए काम करती हो?

अब तक दिखी तो नहीं. होगी भी तो मुझे नहीं पता.

ये बात लगभग सारी मॉडल्स ने कही. मुंबई में कुछ एसोसिएशन हैं भी, तो वे ऐसी औपचारिक बॉडी नहीं, जो मॉडल और क्लाइंट के बीच कोई मजबूत लकीर खींच सकें. रीवा कहती हैं- 16-17 साल की लड़कियां अक्सर घर से झगड़कर आई होती हैं. मुंबई में कोई पहचान होती नहीं. जीने के लिए वे सबकुछ करती चली जाती हैं.

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का हवाला देने पर वे कहती हैं- नहीं कहूंगी कि मैं इससे बिल्कुल ही बची रही.

अब्यूज का कोई फिक्स पैटर्न नहीं. काम देने से पहले कोई आपको न्यूड होकर पोज देने को बोल सकता है. वो अपने दोस्त-यार समेत सामने बैठा देखता रहेगा. कहने को उसने आपको हाथ तक नहीं लगाया. अब आप किसकी-क्या शिकायत करें और कहां करें!

कभी किसी पुरानी मॉडल ने वॉर्न नहीं किया!

हां. कोई-कोई कहती है कि फलां आदमी के साथ अकेली मत जाना. उसकी ‘हिस्ट्री’ है. हम समझते भी हैं. लेकिन रात 10 बजे जब एजेंट का कॉल आता है कि वहां पहुंच जाओ, बिजनेस मीटिंग है तो मना करते नहीं बनता. मीटिंग चाहे जैसी हो, लेकिन इसके बाद रास्ते भी बन जाते हैं.

(नोट: पहचान छिपाने के लिए नाम बदले गए हैं.)

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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