...तो हमारे मुस्लिम भाई पंचर नहीं बना रहे होते, मोदी ने वक्फ कानून पर गलत क्या कहा?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को अपने हरियाणा दौरे पर मुस्लिम समुदाय को सच का ऐसा आईना दिखाया है जिससे कांग्रेस तिलमिला गई है. उन्होंने कहा कि वक्फ़ की संपत्ति का अगर ईमानदारी से उपयोग हुआ होता तो मुसलमान नौजवानों को साइकिल का पंक्चर बनाकर ज़िंदगी नहीं गुजारनी पड़ती. उनके इस बयान पर कांग्रेस और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी, सपा नेता अबू आजमी आदि का बयान आया है. सभी पीएम को उनके बयान के लिए टार्गेट कर रहे हैं. दुर्भाग्य से पीएम के बयान के बाद भी देश में मुसलमानों की स्थिति पर चर्चा नहीं हो रही है. बल्कि चर्चा ये हो रही है कि पीएम ने देश के मुसलमानों के बारे में ये क्या कह दिया. हालांकि देश के आंकड़े बताते हैं किपीएम ने जो कहा उससे भी बुरी स्थिति में मुसलमान हैं.

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आजादी के बाद से कांग्रेस मुसलमानों को डराकर उनका वोट लेती रही. अगर कांग्रेस को मुसलमानों की इतनी ही चिंता होती तो देश में सबसे ज्यादा गरीबी मुसलिम समुदाय में नहीं होती. देश के अधिकतर मुसलमान आज नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. शिक्षा से लेकर नौकरियों और बिजनेस सभी क्षेत्रों में उनकी स्थिति बेहद दयनीय है. यही कारण है कि सच्चर समिति की रिपोर्ट में मुसलमानों की स्थिति देश के दलितों से भी अधिक दयनीय बताई गई. वक्फ संपत्तियों से मुसलमानों का बहुत भला हो सकता था पर ऐसा नहीं होने दिया गया . अब जब वक्फ संपत्तियों को भ्रष्टाचार खत्म करने की कोशिश हो रही है तो एक बार फिर मुस्लिम समुदाय को भड़काया जा रहा है. आइये देखते हैं कि मुसलमानों की स्थिति पहले क्या थी और अब कैसे बदल रही है उनकी दुनिया.इसके साथ ही वक्फ बोर्ड कैसे मुसलिम समुदाय का भला कर सकता है?

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कांग्रेस के कार्यकाल में किस तरह गिरती गई मुसलमानों की स्थिति

2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठित सच्चर समिति ने भारतीय मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थितिका विस्तृत अध्ययन किया. रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर है. उदाहरण के लिए, केवल 4% मुस्लिम युवा ग्रेजुएट स्तर की पढ़ाई तक पहुंचते थे, और साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से नीचे थी. शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी थी, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा.

कांग्रेस के शासनकाल में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी घटता गया. 1980 में लोकसभा में 49 मुस्लिम सांसद थे, जो 2014 में घटकर 22 रह गए. कांग्रेस ने 2014 के चुनाव में 31 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से केवल सात संसद पहुंच सके. मुस्लिम समुदायका भी माननाहै कि कांग्रेस उन्हें प्रतिनिधित्व का मौक़ा नहीं दे रही है, जिससे समुदाय में असंतोष बढ़ा है. 2014 के बाद बीजेपी के प्रभाव के चलते कांग्रेस ही नहीं समाजवादी पार्टी, आरजेडी जैसी पार्टियों ने लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में मुसलमानों को टिकट देना कम कर दिया. सबसे बड़ी बात यह है कि सच्चर समिति की सिफारिशों पर यूपीए सरकार में किसी तरह का कोई अमल नहीं किया गया. मुसलमानों की स्थिति और खऱाब होती गई.

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2014 के बाद मुसलमानों की स्थिति में उत्तरोत्तर सुधार

पिछले एक दशक में, विभिन्न सरकारी योजनाओं, नीतियों और समुदाय की आत्म-प्रेरणा के चलते मुसलमानों की स्थिति में कुछ सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं. पिछले वर्षों में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है. पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से 2023 के बीच मुस्लिम परिवारों की औसत वार्षिक आय 2.73 लाख रुपये से बढ़कर 3.49 लाख रुपये हो गई, जो कि 27.7% की वृद्धि है. इस अवधि में हिंदू परिवारों की आय में 18.8% की वृद्धि हुई, जिससे दोनों समुदायों के बीच आय का अंतर 87% घटकर केवल 250 रुपये मासिक रह गया है.

इस सुधार में सरकारी योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, मुफ्त राशन वितरण, और किसान सम्मान निधि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सहायता मिली है. शिक्षा के क्षेत्र में भी मुसलमानों ने प्रगति की है.अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में बताया कि 2001 में मुस्लिमों की साक्षरता दर 59.1% थी, जो 2011 में बढ़कर 68.5% हो गई . हाल ही में, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24 के अनुसार, मुस्लिमों की साक्षरता दर 79.5% तक पहुंच गई है, जो कि राष्ट्रीय औसत 80.9% के करीब है . उच्च शिक्षा में भी मुसलमानों की भागीदारी बढ़ी है. जहां 2012-13 में केवल 4.5% मुस्लिम उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 8.4% हो गई है .

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केंद्रीय वक्फ बोर्ड कैसे बदल सकता है मुसलमानों की तकदीर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि अगर वक्फ बोर्ड का सही इस्तेमाल हुआ होता तो मुसलमानों के बच्चों का इतना बुरा हाल नहीं होता कि उन्हें पंचर बनाना पड़ता. केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्यमंत्री किरन रिजीजू का दावा है कि विश्व में सबसे ज्यादा वक्फ प्रॉपर्टीभारत में है. लगभग 9.4 लाख एकड़ जमीन है और 8.72 लाख संपत्ति है, जिनसे कमाई 200 करोड़ है. सरकार वक्फ प्रॉपर्टी का सही इस्तेमाल कर उनका उपयोग गरीब मुसलमानों के लिए करना चाहती है. इन संपत्तियों का अनुमानित मूल्य ₹1.2 लाख करोड़ है. जिससे वक्फ बोर्ड भारतीय रेलवे और रक्षा विभाग के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भूमि स्वामी बनता है.

सच्चर समिति की 2006 की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वक्फ संपत्तियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जाए, तो ये सालाना ₹12,000 करोड़ की आय उत्पन्न कर सकती हैं. हालांकि, वर्तमान में इन संपत्तियों से केवल ₹163 करोड़ की आय हो रही है, जो उनकी क्षमता का एक छोटा हिस्सा है.

वक्फ संपत्तियों के प्रभावी उपयोग में कई चुनौतियां हैं. भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के चलते कई वक्फ संपत्तिया जिसका किराया करोड़ों में आना चाहिए वहां मात्र कुछ हजार मिल रहे हैं. जबकि मजबूत लोग जमीन पर फाइव स्टार होटल बनाकर करोड़ों का लाभ कमा रहे हैं. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2018 की रिपोर्ट में वक्फ बोर्ड के खातों में वित्तीय अनियमितताओं की भी पहचान कीथी. दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में कई प्रमुख वक्फ संपत्तियां वर्षों से अवैध कब्जे में हैं, जिससे समुदाय को संभावित राजस्व की हानि हो रही है.करीब 40,951 विवाद अभी भी लंबित हैं, जिसके चलते हजारों एकड़ जमीन से कोई फायदा नहीं मिल रहा है.

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वक्फ संपत्ति का उपयोग विधवा और परित्यक्ता मुस्लिम महिलाएं और गरीब मुसलमानों के लिए खर्च करना होता है. जाहिर है कि अगर वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सही उपयोग होता है तो हजारों करोड़ के फायदे की उम्मीद है.इतनी बड़ी रकम से लाखों गरीब मुसलमानों की जिंदगी में बहार लाई जा सकती है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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