झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता चंपाई सोरेन ने विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया है. 'टाइगर' के नाम से मशहूर चंपाई सोरेन का बीजेपी में शामिल होना पार्टी की उम्मीदों को मजबूत करता है. कारण, वह आदिवासी समुदाय से आते हैं जो राज्य की कुल जनसंख्या का 26.2 प्रतिशत है. इसके अलावा चंपाई सोरेन कोल्हान क्षेत्र से हैं, जहां 2019 में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.
हालांकि, उनकी राज्यव्यापी अपील की कमी और हेमंत सोरेन द्वारा आदिवासी अस्मिता कार्ड को का खेलना, और उनकी गिरफ्तारी का फायदा उठाना, बीजेपी की संभावित बढ़त को कुछ हद तक कमजोर कर सकता है.
आरक्षित एसटी सीटों की अहमियत
झारखंड में 81 सीटों में से 28 सीटें (35 प्रतिशत) अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. आमतौर पर, जो पार्टी इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है, वही राज्य में सरकार बनाती है. पिछले तीन चुनावों में जेएमएम ने इन सीटों में सबसे ज्यादा जीत हासिल की है. 2014 के राज्य चुनावों में बीजेपी और एजेएसयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जबकि 2019 में कांग्रेस और जेएमएम ने गठबंधन किया था.
2009 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने 10 एसटी आरक्षित सीटें जीतीं, बीजेपी ने नौ, कांग्रेस ने दो, और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन ने सिर्फ एक सीट जीती, जबकि अन्य (छह छोटी पार्टियां) ने छह सीटें जीतीं. बीजेपी और जेएमएम ने पोस्ट-पोल गठबंधन कर सरकार बनाई. 2013 में जेएमएम ने कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. इन सीटों पर बीजेपी ने 24 प्रतिशत, जेएमएम ने 20 प्रतिशत, कांग्रेस ने 16 प्रतिशत और अन्य ने 36 प्रतिशत वोट हासिल किए.
2014 में जेएमएम ने 13 एसटी आरक्षित सीटें जीतीं (+3), बीजेपी ने 11 (+2), एजेएसयू ने 2 (+1), और अन्य ने दो (-4) सीटें जीतीं. कांग्रेस (-2) एक भी एसटी आरक्षित सीट नहीं जीत पाई. एनडीए (बीजेपी + एजेएसयू) ने 13 आरक्षित सीटों के साथ सरकार बनाई. वोट शेयर के हिसाब से, बीजेपी ने 29 प्रतिशत, जेएमएम ने 30 प्रतिशत, कांग्रेस ने 10 प्रतिशत, एजेएसयू ने तीन प्रतिशत, और अन्य ने 28 प्रतिशत वोट हासिल किए.
2019 में जेएमएम ने 19 एसटी आरक्षित सीटें जीतीं (+6), बीजेपी ने दो (-9), कांग्रेस ने छह (+6), और अन्य ने सिर्फ एक (-1) सीट जीती. एजेएसयू (-2) एक भी सीट नहीं जीत पाई. बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा क्योंकि UPA ने 28 में से 25 आरक्षित सीटें जीतीं. वोट शेयर के हिसाब से बीजेपी ने 33 प्रतिशत, जेएमएम ने 34 प्रतिशत, कांग्रेस ने नौ प्रतिशत, एजेएसयू ने छह प्रतिशत और अन्य, जिनमें निर्दलीय शामिल थे, ने 18 प्रतिशत वोट हासिल किए. यूपीए ने 43 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की. कुल 47 सीटों में से यूपीए की जीत का आधा हिस्सा एसटी आरक्षित सीटों से आया.
इन तीन चुनावों में छोटी पार्टियों और निर्दलीयों का प्रभाव काफी कम हो गया. इन सीटों पर उनका वोट शेयर 36 प्रतिशत से घटकर 18 प्रतिशत रह गया. कांग्रेस का वोट शेयर भी घटा क्योंकि पार्टी जेएमएम के साथ गठबंधन किया और कम सीटों पर चुनाव लड़ा. जेएमएम ने 2009 और 2019 के बीच एसटी आरक्षित सीटों में 14 प्रतिशत वोट शेयर बढ़ाया, जिसमें से सात प्रतिशत कांग्रेस से और अन्य से आया. बीजेपी ने भी अन्य पार्टियों से नौ प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया. 2019 के राज्य चुनाव में एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के अनुसार 58 प्रतिशत एसटी वोटर्स ने यूपीए का समर्थन किया. बीजेपी को 21 प्रतिशत, एजेएसयू को छह प्रतिशत और झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक), जिसका अब बीजेपी में विलय हो चुका है, को छह प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला.
2024 के आम चुनावों में इंडिया ब्लॉक (कांग्रेस+जेएमएम+आरजेडी) ने 23 आरक्षित सीटों पर बढ़त हासिल की, जो 2019 के परिणामों के अनुरूप थी. जेल में बंद हेमंत सोरेन के प्रति आदिवासियों के बीच सहानुभूति लहर इसका सबसे बड़ा कारण रही. बीजेपी ने पांच सीटों पर बढ़त हासिल की.
बीजेपी को उम्मीद है कि चंपाई सोरेन जो अपनी अच्छी छवि और शिबू सोरेन के करीबी सहयोगी के रूप में एक अलग राज्य के निर्माण में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं, एसटी वोटरों के एक हिस्से को अपनी ओर खींचने में कामयाब रहेंगे.
कोल्हान में बीजेपी को बढ़त?
चंपाई सोरेन सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से छह बार विधायक रहे हैं. उन्होंने 1991 में एक उपचुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती थी. तब से वह (1995, 2005, 2009, 2014, और 2019) हर चुनाव जीतते रहे हैं, सिवाय साल 2000 के. सरायकेला झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में स्थित है, जो राज्य का दक्षिणी हिस्सा है.
कोल्हान में 14 सीटें हैं, जिनमें पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, और सरायकेला जिले शामिल हैं और यहीं औद्योगिक नगर जमशेदपुर भी आता है. इसमें नौ एसटी आरक्षित सीटें हैं, जो राज्य की कुल एसटी आरक्षित सीटों का एक तिहाई हैं. 2019 में इन सभी सीटों पर जेएमएम ने जीत हासिल की थी.
2019 के चुनाव में यहां बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली. यह एसटी आरक्षित सीटों में खराब प्रदर्शन के साथ 2019 के चुनावों में उसकी किस्मत डूबने का कारण बना. 2019 में एसटी आरक्षित सीटों और कोल्हान क्षेत्र की कुल 33 सीटों में से बीजेपी ने सिर्फ दो सीटें जीतीं.
2009 में बीजेपी ने कोल्हान की 14 सीटों में से छह सीटें जीतीं, जबकि जेएमएम ने चार सीटें जीतीं. एजेएसयू और कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती, और अन्य ने दो सीटें जीतीं. 2014 में बीजेपी-एजेएसयू गठबंधन ने छह सीटें जीतीं, जबकि जेएमएम ने सात सीटें जीतीं और कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली. 2019 में, जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने इस क्षेत्र में 14 में से 13 सीटें जीतकर इस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया.
कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों की ताकत को देखते हुए जेएमएम के लिए आठ सीटें बहुत मजबूत या फिर मजबूत हैं, क्योंकि पिछले तीन चुनावों में पार्टी ने इन सीटों पर दो या फिर तीनों बार जीत हासिल की है. बीजेपी के पास केवल दो मजबूत सीटें और सात ऐसी सीटें हैं, पार्टी ने पिछले तीन चुनावों में कम से कम एक बार जीता है. कांग्रेस और अन्य का इस क्षेत्र में कम प्रभाव है.
2019 में बीजेपी और एजेएसयू के गठबंधन तोड़ने का फैसला महंगा साबित हुआ, क्योंकि बाद में उसने पांच सीटों पर जीत का अंतर से ज्यादा वोट हासिल किए. वोट शेयर के हिसाब से बीजेपी ने 29 प्रतिशत, जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने 42 प्रतिशत, एजेएसयू ने 8 प्रतिशत, और जेवीएम (पी) ने चार प्रतिशत वोट हासिल किए.
काल्पनिक रूप से यदि बीजेपी, एजेएसयू, और जेवीएम (पी) ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो उन्होंने इन 14 सीटों में से सात सीटें जीती होती. इसके अलावा अब चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी को उम्मीद है कि वह इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण लाभ हासिल करेगी और इस चलन को उलट सकेगी.
क्या हो सकता है बीजेपी के लिए नकारात्मक?
कोल्हान में लोकप्रिय होने के बावजूद चंपाई सोरेन की राज्यव्यापी अपील कम है. अन्य पारिवारिक नियंत्रण वाली पार्टियों की तरह उनके समर्थक आमतौर पर वंश समूह का समर्थन करते हैं, और इसलिए वे कोल्हान के बाहर जेएमएम के वोटों पर बड़ा असर नहीं डाल पाएंगे.
बीजेपी लंबे समय से राज्य में सरना बनाम आदिवासी ईसाई राजनीति का फायदा उठा रही है. अधिकांश एसटी वोटर्स जो बीजेपी का समर्थन करते हैं, वे सरना आदिवासी हैं, जो प्रकृति पूजा का पालन करते हैं.
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक को सरना आदिवासियों का समर्थन मिला, क्योंकि उसने सरना कोड लागू करने के उनके लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने का वादा किया था. यह एक अलग धार्मिक कोड का प्रस्ताव है, जिसे बीजेपी लागू करने से हिचकिचा रही है, क्योंकि उसे लगता है कि यह कोड आदिवासियों को हिंदू समाज से अलग करने के लिए बनाया गया है.
चंपाई सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए भी इस मुद्दे को उठाया था और जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए एक अलग कोड लागू करने का वादा किया था. इस बात का फायदा जेएमएम चंपाई सोरेन की छवि को खराब करने के लिए उठा सकती है. इसके अलावा उनकी एंट्री से राज्य इकाई में गुटबाजी बढ़ सकती है, जिसमें पहले से ही आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा, दोनों पूर्व मुख्यमंत्री, शामिल हैं.
क्या चंपाई सोरेन झारखंड में बीजेपी के लिए भाग्यशाली साबित होंगे? इसका जवाब तो वक्त ही देगा.
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