नीतीश के तेजस्वी से मिलने से कुछ नहीं होगा, राहुल से मिलें तो बीजेपी के लिए खतरा हो सकता है

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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की मुलाकात कोई अचानक नहीं हुई है. हो सकता है ऐसा लग रहा हो, लेकिन ये पहले से तय थी. हां, ये किसी खास मकसद से मिलने का बहाना जरूर हो सकता है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.

बिहार के मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की मीटिंग को लेकर बताया गया है कि सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर चर्चा के लिए ये मीटिंग बुलाई गई थी. असल में, नियुक्ति प्रक्रिया के लिए बनी कमेटी में मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के अलावा मंत्रिमंडल के सदस्य भी होते हैं. मुख्यमंत्री कमेटी के अध्यक्ष होते हैं, और सभी मिलकर किसी एक नाम को फाइनल करते हैं.

नीतीश कुमार से मिलने के बाद तेजस्वी यादव ने बताया कि सूचना आयुक्ति की नियुक्ति की जानकारी दे दी जाएगी. मीडिया को तेजस्वी यादव ने बताया कि कुछ नियुक्तियां होनी है, जिन पर चर्चा हुई है. सरकार की तरफ से विधिवत इसकी जानकारी दी जाएगी.

मीडिया से बातचीत में तेजस्वी यादव ने जो बताया है, उसमें कुछ एक्स्ट्रा ही है. और इस एक्स्ट्रा की खासियत ये है कि मुद्दा जातीय जनगणना से जुड़ा है. 2022 में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की जातीय जनगणना के मसले पर भी बात और कुछ मुलाकातें हुई थीं - और फिर अचानक एक दिन नीतीश कुमार एनडीए छोड़ कर महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन गये.

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क्या फिर से बिहार की राजनीति में वैसा ही खेल होने जा रहा है? क्योंकि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की मुलाकात को लेकर बीजेपी खेमे में भी हलचल बढ़ी महसूस की गई है - और लालू यादव ने भी विधायकों की मीटिंग बुला ली है.

मुलाकात हुई, क्या क्या बात हुई?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की मीटिंग औपचारिक थी. सरकारी काम के लिए, लिहाजा ये बैठक पटना के सचिवालय में हुई - और करीब आधे घंटे तक चली.

ये मीटिंग भले ही सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए बुलाई गई थी, लेकिन नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद तेजस्वी यादव ने कुछ एक्स्ट्रा बातचीत के बारे में भी बताया. ये एक्स्ट्रा बातचीत जातीय जनगणना से जुड़ी थी.

जातीय जनगणना का मुद्दा फिलहाल बिहार ही नहीं, देश की राजनीति में भी महत्वपूर्ण मसला बन चुका है. वैसे नींव तो बिहार में ही पड़ी है. बिहार में जातिगत गणना नीतीश कुमार ने भी तेजस्वी यादव के साथ वाली सरकार में ही कराया था. तब नीतीश कुमार ने ऐसा ताना-बाना बुना था कि बीजेपी को भी कदम कदम पर हां में हां मिलाना पड़ा था - और अब भी बीजेपी जातीय जनगणना को लेकर बचाव की ही मुद्रा में नजर आती है. अब तो बीजेपी के मातृ संगठन राष्ट्रीय सेवक संघ ने भी बोल दिया है कि जातीय जनगणना होनी चाहिये, सिर्फ शर्त ये है कि इसका कोई राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिये. ये मुमकिन है क्या?

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तेजस्वी यादव ने मीडिया को बताया कि मुख्यमंत्री से जातिगत गणना के बाद विधानसभा से पारित प्रस्ताव को संविधान की नौंवी अनुसूची में डाले जाने को लेकर बात हुई है. असल में, बिहार की तरफ से केंद्र सरकार से बिहार के प्रस्ताव को नौंवी अनुसूची में डालने की सिफारिश की गई है. नीतीश कुमार खुद भी ये बता चुके हैं. नीतीश कुमार केंद्र की एनडीए सरकार में सहयोगी की भूमिका में हैं, और ऐसा करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाये, तेजस्वी यादव की भी ऐसी ही अपेक्षा होगी.

तेजस्वी यादव के मुताबिक, नीतीश कुमार ने कहा कि मामला कोर्ट में है. तेजस्वी यादव बोले, 'हमने भी कहा कि हम भी कोर्ट पहुंच गए हैं... आप अपनी बात को कोर्ट में रखिये, हम भी अच्छे से अपनी बात रखेंगे.' तेजस्वी यादव नौंवी अनुसूची की जो बात कह रहे हैं, उसमें आरक्षण की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया गया है, जिस पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है.

सवाल है कि जब सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर मिलने पर तेजस्वी यादव कास्ट सेंसस के मसले पर चर्चा कर सकते हैं, तो क्या कोई और बात नहीं हो सकती है? और जिस जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार एक बार पाला बदल चुके हों, वो दोबारा भी तो बदल सकते हैं! है कि नहीं?

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लेकिन यहां एक पेच भी फंसा है. तेजस्वी यादव से नीतीश कुमार की मुलाकात भविष्य की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. कोई खास संकेत भी हो सकता है, लेकिन गारंटी नहीं - अब नीतीश कुमार को बड़ा ऑफर चाहिये, क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी तो वो वैसे भी सुरक्षित कर चुके हैं.

नीतीश के लिए तेजस्वी से ज्यादा राहुल गांधी महत्वपूर्ण हैं

वो दिन गये जब नीतीश कुमार लालू यादव से मिल कर या राबड़ी देवी के आवास पर इफ्तार पार्टी में शामिल होकर पाला बदल लेते थे. नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा एक बार फिर बड़ी हो गई है, 2013 से पहले वाले दौर की तरह. जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हुआ करते थे, और एनडीए के प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग कर रहे थे. बीजेपी ने नीतीश कुमार की मांग तो मान ली, लेकिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया. नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ कर लालू यादव से हाथ मिला लिये.

नीतीश कुमार अब तक लालू यादव के साथ का भी और बीजेपी के साथ का भी भरपूर इस्तेमाल कर चुके हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बहुमत तक नहीं पहुंच पाने का नीतीश कुमार को फायदा मिला है - एक बार फिर वो बारगेन वाली पोजीशन हासिल कर चुके हैं. बीजेपी की तरफ से जो मिल सकता है, वो तो मिल चुका है. अब INDIA ब्लॉक क्या ऑफर दे सकता है, आगे की राजनीति उसी रास्ते पर बढ़ने वाली है.

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1. नीतीश के पास फिलहाल वो सब कुछ है, जो उनको अभी चाहिये. कम से कम 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव तक. अब अगर इंडिया ब्लॉक की तरफ से प्रधानमंत्री पद का ऑफर मिलता है तभी वो मानेंगे कि मुकम्मल जहां मिलने जैसी बातें हकीकत भी बन सकती हैं.

2. तेजस्वी यादव ज्यादा से ज्यादा नीतीश कुमार को इतना ही आश्वस्त कर सकते हैं कि फिर से साथ आने पर आरजेडी की तरफ से उनको मुख्यमंत्री बनाने की मांग नहीं होगी, या लालू यादव की तरफ से ऐसा करने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया जाएगा.

3. कुल मिलाकर तेजस्वी यादव ज्यादा से ज्यादा नीतीश कुमार को चैन से मुख्यमंत्री बने रहने दे सकते हैं, लेकिन ये काम तो बीजेपी भी कर ही रही है. बीजेपी की तरफ से तो ये भी बोल दिया गया है कि 2025 के बिहार चुनाव में भी नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता होंगे.

4. अब अगर इंडिया ब्लॉक नीतीश को कुछ दे सकता है तो वो है प्रधानमंत्री की कुर्सी का ऑफर - और ये वादा तो सिर्फ राहुल गांधी ही कर सकते हैं. बशर्ते वो लोकसभा चुनाव में ताकतवर बनकर उभरने के बावजूद कुर्बानी देने को तैयार हो जायें. तभी ये सब मुमकिन भी है.

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नीतीश कुमार बिहार के नेता प्रतिपक्ष से मिल चुके हैं. हो सकता है फिर मिलने का कोई बहाना मिल जाये. लेकिन बात आगे तब तक नहीं बढ़ सकती जब तक कि बिहार के मुख्यमंत्री लोकसभा में विपक्ष के नेता से न मिल लेते - अब तो कोई भी डील राहुल गांधी की मर्जी से ही फाइनल हो पाएगी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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