शासन और अनुशासन

अधिकारियों को वे सीधे आदेश देते हैं। तब वह मामला अदालत में पहुंचा था और अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि चुनी हुई सरकार को अपने ढंग से काम करने का अवसर मिलना चाहिए। उसके बाद कुछ सालों तक विवाद लगभग

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अधिकारियों को वे सीधे आदेश देते हैं। तब वह मामला अदालत में पहुंचा था और अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि चुनी हुई सरकार को अपने ढंग से काम करने का अवसर मिलना चाहिए। उसके बाद कुछ सालों तक विवाद लगभग शांत था। मगर दूसरे कार्यकाल में वर्तमान उपराज्यपाल के आने के बाद फिर से सरकार और उनके बीच तनातनी लगातार बनी हुई है।

विचित्र है कि अब यह तनातनी भाषा की मर्यादा भी लांघती नजर आने लगी है। मुख्यमंत्री ने यहां तक कह दिया कि उपराज्यपाल हैं कौन। उन्हें चुनी हुई सरकार के कामकाज में दखलंदाजी का अधिकार दिया किसने। यह बात उन्होंने विधानसभा के विशेष सत्र में कही और बाहर मीडिया के सामने भी। उस पर अब उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को जवाबी पत्र लिख कर बताया है कि उनकी संवैधानिक हैसियत क्या है।

अभी लगता नहीं कि दोनों के बीच की तकरार खत्म होने वाली है। दरअसल, उपराज्यपाल ने कार्यभार संभालने के साथ ही जिस तरह दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति में हुई अनियमितता का मामला उजागर करते हुए कई अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के ठिकानों पर छापे डाले गए, उससे दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी एकदम से आक्रोशित हो उठी। उसने भी उपराज्यपाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने का प्रयास किया।

धनशोधन मामले में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को जेल भेज दिया गया, वह भी उसकी नाराजगी का बड़ा कारण बना। फिर उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के फैसलों पर प्रश्नचिह्न लगाने शुरू कर दिए। उसकी फाइलें या तो बिना मंजूरी के लौटाई जाने लगीं या फिर उन्हें रोका जाने लगा। नगर निगम चुनावों के बाद महापौर चुनाव से पहले उपराज्यपाल ने अलग से सदस्यों को मनोनीत करने के अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल किया, तो आम आदमी पार्टी ने खासा हंगामा खड़ा कर दिया।

नतीजतन, वह चुनाव स्थगित करना पड़ा। मुख्यमंत्री का आरोप है कि उपराज्यपाल सीधे अधिकारियों को आदेश देते हैं, उनसे फाइलें मंगा लेते हैं। उनका कहना है कि नियम-कायदे उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं देते। उपराज्यपाल कोई भी फैसला सरकार की सहमति के बगैर नहीं ले सकते।

चुनी हुई सरकार बनाम केंद्र की तरफ से नियुक्त प्रशासक के अधिकारों की लड़ाई अब ऐसे मोड़ पर पहुंच गई लगती है, जिसमें सिद्धांत और नियम-कायदे कहीं हाशिए पर चले गए हैं। इस लड़ाई में नुकसान दिल्ली के लोगों का हो रहा है। मुख्यमंत्री का आरोप है कि उपराज्यपाल कर्मचारियों के वेतन का भुगतान नहीं होने दे रहे, योजनाओं के लिए धन नहीं दे रहे।

इस तरह दिल्ली सरकार का कामकाज बाधित हो रहा है। चूंकि उपराज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार ने की है और केंद्र के साथ दिल्ली सरकार की तनातनी पुरानी है, इसलिए मुख्यमंत्री के इन आरोपों को लोग सिरे से खारिज नहीं कर पा रहे कि उपराज्यपाल केंद्र के इशारे पर दिल्ली सरकार के कामकाज में अड़चन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। सच्चाई जो हो, पर दोनों की मूंछ की लड़ाई का खमियाजा नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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