नक्सलियों की गतिविधियों के लिए कुख्यात छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में जिस तरह डिस्ट्रिक्ट रिजर्व फोर्स के एक वाहन को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया गया और जिसके चलते 10 जवानों और एक वाहन चालक को अपनी जान गंवानी पड़ी, उससे यही पता चलता है कि नक्सली अब भी बेलगाम बने हुए हैं। यह घटना इसलिए अधिक चिंताजनक है, क्योंकि पिछले कुछ समय से एक तो नक्सलियों की सक्रियता कम होती दिख रही थी और दूसरे, ऐसे दावे भी किए जा रहे थे कि उनके दुस्साहस का दमन करने में सफलता मिली है।
दंतेवाड़ा की घटना यही स्पष्ट करती है कि नक्सली न केवल आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बने हुए हैं, बल्कि उन तक अत्याधुनिक हथियार भी पहुंच रहे हैं। यह भी साफ है कि उनके दुस्साहस का दमन करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। यह शेष काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। इसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों को हर स्तर पर सहयोग और समन्वय कायम करना चाहिए। इसी के साथ इस सवाल का जवाब भी खोजा जाना चाहिए कि नक्सली एक बार फिर वैसी ही घटना को अंजाम देने में कैसे सफल हो गए, जैसी वह इसके पहले भी कई बार कर चुके हैं?
आखिर यह कैसे संभव हो गया कि नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर थाने से महज दो किमी दूर एक सड़क पर बेहद शक्तिशाली बारूदी सुरंग लगा दी? यह तथ्य इसलिए और अधिक चिंता पैदा करने वाला है, क्योंकि जिस सड़क पर बारूदी सुरंग लगाई गई, वह कोई निर्जन रास्ता नहीं था। स्पष्ट है कि कहीं न कहीं सुरक्षा और चौकसी में चूक हुई। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अतीत में भी इस तरह की चूक से कई घटनाएं घट जाने के बाद भी जरूरी सबक नहीं सीखे जा रहे हैं। इसकी तह तक जाने की जरूरत है कि क्या नक्सल विरोधी अभियान के लिए तय किए गए सुरक्षा संबंधी मानकों का पालन किया गया?
इसी तरह इस पुराने सवाल का जवाब भी खोजना होगा कि नक्सली हर तरह के घातक हथियार एवं विस्फोटक हासिल करने में कैसे समर्थ हैं और उन्हें स्थानीय स्तर पर समर्थन मिलने के कारण क्या हैं? इन कारणों का निवारण किए बगैर बात बनने वाली नहीं है। नक्सलियों के साथ उनके दबे-छिपे समर्थकों और उन्हें वैचारिक खुराक देने वालों के प्रति भी कठोरता का परिचय देना होगा।
नक्सली इसलिए किसी नरमी के पात्र नहीं हो सकते, क्योंकि वे ऐसे घातक शत्रु हैं, जिनका उद्देश्य बंदूक के बल पर मनमानी करना है। वे नक्सलवादी विचारधारा की आड़ में लूट, हत्या और उगाही का धंधा करने वाले गिरोहों के अलावा और कुछ नहीं। उनसे बातचीत करके उन्हें सही राह पर लाने की कोशिश करना वक्त की बर्बादी ही है। अच्छा होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें उनके संपूर्ण सफाए की कोई ठोस रणनीति बनाएं।
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