Opposition Unity And Central Government: अभी भारत में भी हाल-फिलहाल में ऐसे कई उदाहरण मिल जाते हैं। पहला स्वर्णिम भारत न्यूज़ (स्वर्णिम भारत न्यूज़) द्वारा 2002 के दंगों पर डॉक्यूमेंट्री बनाकर यह प्रचारित करना कि यह सब कुछ साजिश के तहत गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कराया था। दूसरा, हिंडनबर्ग (Hindenburg) की रिपोर्ट अडानी समूह (Adani Group) के लिए, जिसमें कहा गया कि इस समूह के विकास में वर्तमान सत्तारूढ़ दल का हाथ है, जबकि तीसरा आरोप पेगासस (Pegasus) मुद्दों को लेकर वर्तमान सरकार को लांछित किया जा रहा है कि उसने चुनाव जीतने के लिए यह साजिश रची। विपक्ष, विशेषरूप से कांग्रेस ने लगभग यह ठान लिया है कि इन मुद्दों को चुनाव तक गरम रखा जाए, ताकि इसका लाभ उसे मिल सके।
विपक्षी एकता का शंखनाद और केंद्र की सत्ता
पिछले दिनों भाकपा माले के अधिवेशन में बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बार-बार अगला पीएम बताने वाली पार्टी जनता दल यूनाईटेड की हाजिरी ने विपक्षी एकता को बड़ी ताकत दी है। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के सामने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने विपक्षी एकता का शंखनाद किया।
भाजपा के खिलाफ सभी दल अपने तरीके से कर रहे संघर्ष
तेजस्वी यादव ने लाल सलाम के साथ साफ कह दिया कि मुद्दे से भटकाने और नफरत की खेती करने वाली भाजपा के खिलाफ सभी अपने-अपने तरीके से लड़ रहे हैं, लेकिन अब एक कॉमन रोडमैप तैयार करना होगा। क्षेत्रीय दल तैयार हैं। निर्णय कांग्रेस के हाथ में है। नीतीश ने भी कहा कि निर्णय अब कांग्रेस के हाथ में है। माकपा माले के महाधिवेशन में पहली बार शामिल नीतीश कुमार का रुख अलग ही था। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष एकजुट हो जाए तो अगले चुनाव में भाजपा 100 सीटों पर सिमट जाएगी। उनका कहना था कि मैं कांग्रेस नेतृत्व से दिल्ली में मिलकर विपक्षी एकता का संदेश दे आया था। अधिकांश विपक्ष भाजपा को हराने के लिए एकजुट होने के लिए तैयार है।
2019 में ममता बनर्जी ने किया था एकजुटता का प्रयास
इससे पहले भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रयास से विपक्षी दलों को 2019 में साथ लाने का प्रयास किया गया, जिसमें हार्दिक पटेल (वर्तमान में भाजपा विधायक, गुजरात विधान सभा) और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेता उपस्थित थे, तो यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे असंतुष्ट भाजपाई भी मौजूद रहे थे। रैली का मकसद था कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को हर हाल में शिकस्त देने के लिए एकजुट हुआ जाए। ज्यादातर भागीदारों ने भाजपा के तानाशाहीपूर्ण रवैये, जन-विरोधी नीतियों के प्रति गुस्से का इजहार किया। विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच खाई पैदा करने के लिए भाजपा की कड़ी आलोचना की गई। भारत में हिंदू राष्ट्र का एजेंडा थोपने के लिए भाजपा को आड़े हाथ लिया गया।
विपक्षी दलों में असंतोष को समझा जा सकता है। साढ़े चार साल में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए हिंसा की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जैसा कि गोमांस के नाम पर भीड़ द्वारा किसी को भी मार डालने के रूप में देखी गई। गिरजाघरों में प्रार्थना सभाओं में धर्म परिवर्तन किए जाने का नाम लेकर हमले किए गए। अनेक ख्यातिप्राप्त नागरिकों ने बढ़ती असहिष्णुता के प्रतिकार-स्वरूप साहित्य, कला, विज्ञान और फिल्म आदि क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए मिले पुरस्कार लौटा दिए। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं द्वारा घृणा फैलाने की नीयत से दिए गए भाषणों से आमजन हैरत में पड़ गया। जस्टिस लोया के मामले, सरकार की नीतियों के चलते कश्मीर में बढ़ती हिंसा, जीएसटी के दोषपूर्ण कार्यान्वयन, पेट्रोल और अन्य उत्पादों के बढ़ते दामों ने आम लोगों को हलकान कर दिया।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीधा आरोप लगाया कि सत्तापक्ष देश में नफरत फैलाकर लोगों का ध्यान भटका रहा है, ताकि लोगों की जेब काटी जा सके। राहुल गांधी ने कहा कि देश में अंबानी और अडानी सरकार चला रहे हैं, न कि नरेन्द्र मोदी। प्रधानमंत्री पर लगाम लगी हुई है और चीजें उनसे संभल नहीं रही हैं। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाल रहे राहुल गांधी ने लाल किले से सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि इस यात्रा का लक्ष्य भारत को जोड़ने का है। जब हमने यह यात्रा शुरू की तो सोच रहा था कि नफरत को मिटाने की जरूरत है। मेरे दिमाग में था कि इस देश में सब जगह नफरत फैली हुई है, लेकिन जब यात्रा शुरू की तो सच्चाई बिल्कुल अलग थी… मीडिया के एक बड़े हिस्से में नफरत की बातें चलाई जाती हैं।
राहुल बोले- 90 प्रतिशत लोग एक-दूसरे से नहीं करते हैं नफरत
उन्होंने कहा कि इस यात्रा के दौरान मैं लाखों लोगों से मिला, सब एक-दूसरे से प्यार करते हैं। देश के 90 प्रतिशत लोग एक-दूसरे से नफरत नहीं करते। राहुल गांधी ने चांदनी चौक की ओर इशारा करते हुए कहा, यहां मंदिर भी है, मस्जिद है और गुरुद्वारा है। यही हिंदुस्तान है। उन्होंने दावा किया कि नफरत फैलाकर ध्यान भटकाया जाता है और हवाईअड्डे, बंदरगाह, सड़कें और देश की संपत्तियां प्रधानमंत्री के मालिकों के हवाले कर दी जाती हैं। राहुल ने कहा, जब कोई जेब काटता है, तो पहले यह देखता है कि जिसकी जेब काटी जा रही है, उसका ध्यान भटक जाए। यही देश में हो रहा है कि ध्यान भटकार देश की जेब काटी जा रही है।
प्रधानमंत्री अपनी सरकार की उपलब्धियां बताते हुए कहा मेरे जीवन में सार्वजनिक जीवन में चार-पांच दशक मुझे हो गए और मैं हिन्दुस्तान के गांवों से गुजरा हुआ इंसान हूं। चार-पांच दशक तक उसमें से एक लंबा कालखंड परिव्राजक के रूप में बिताया है। हर स्तर के परिवारों से बैठने-उठने का, बात करने का अवसर मिला है और इसलिए भारत के हर भू-भाग को समाज की हर भावना से परिचित हूं और इस आधार पर कह सकता हूं और बड़े विश्वास से कह सकता हूं कि भारत का सामान्य मानवीयता सकारात्मकता से भरा है। सकारात्मकता उसके स्वभाव का, उसके संस्कार का हिस्सा है।
भारतीय समाज नकारात्मकता सहन कर लेता है, स्वीकार नहीं करता है, यह उसकी प्रकृति नहीं है। भारतीय समुदाय का स्वभाव खुशमिजाज है, स्वप्नशील समाज है, सत्कर्म के रास्ते पर चलने वाला समाज है। सृजन कार्य से जुड़ा समाज है। मैं आज कहना चाहूंगा जो लोग सपने लेकर के बैठे हैं कि कभी यहां बैठते थे, फिर कभी मौका मिलेगा, ऐसे लोग 50 बार सोचें, अपने तौर-तरीकों पर जरा पुनर्विचार करें। लोकतंत्र में आपको भी आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है।
सत्तारूढ़ और विपक्ष अपने को सत्ता के योग्य सिद्ध करने के लिए किसी भी देश में कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन जो अपनी बातों से अधिक आकर्षित कर ले, वही सत्ता हथिया लेता है। उसमें विशेषरूप से भारतीय मतदाता तो बहुत ही भोले हैं। इसी का परिणाम है कि अपनी धूर्तता से नेतागण उन्हें जुमलेबाजी से, झूठे वादे करके अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं जिसके कारण देश को और उसकी जनता को वर्षों सजा भुगतनी पड़ती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अपना देश आज भी पूर्ण शिक्षित नहीं है।
दुर्भाग्य यह है कि आज तक जिसकी भी सरकार बनी, किसी ने भी शिक्षा के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा पाने के लिए युवा विदेश की रुख करने लगे और जब वे शिक्षित हो गए तो उन्हें भारत अप्रिय लगने लगा। वे वापस लौटे ही नहीं। हमारे शिक्षित युवा विदेश में जाकर खुद को बुलंदियों पर तो पहुंचा दिया, लेकिन अपनी मातृभूमि के लिए विदेशी हो गए।
ऐसा जो कुछ भी हो रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम जीतकर सरकार बना लेते हैं, लेकिन जिनके बल पर हम देश के शीर्ष स्थान पर पहुंच जाते हैं, फिर हम उनके विकास के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं करते। आज यदि वर्तमान भाजपा सरकार ठान ले कि उसे जनहित में ही केवल काम करना है तो कोई ऐसी पार्टी देश में नहीं है, जो वर्तमान सरकार को अगले चुनाव में सत्ताच्युत कर सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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