सनातन धर्म पर विवाद - टूटे आईने में सही शक्ल नहीं दिखती

Hindu Dharma and Sanatan Dharma: सच में आज की तारीख में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) से उद्भट विद्वान सनातन (Sanatan) को जानने वाला भारत ही नहीं, शायद विश्व में कोई दूसरा नहीं है। हमारा सनात

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Hindu Dharma and Sanatan Dharma: सच में आज की तारीख में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) से उद्भट विद्वान सनातन (Sanatan) को जानने वाला भारत ही नहीं, शायद विश्व में कोई दूसरा नहीं है। हमारा सनातन धर्म सृष्टि को धारण करने वाला है। अधर्म सदा विनाश करता है। हम अपनी रक्षा के लिए ही धर्म की रक्षा करते हैं। धर्म हमारा रक्षक है। हम उसकी रक्षा नहीं करेंगे, तो हमारी रक्षा कौन करेगा। स्वामी विवेकानंद किसी प्रकार के नोट बनाकर व्याख्यान (Lecture) नहीं देते थे। लेकिन, अपने वक्तव्य का विषय वे धारावाहिक ढंग से व्यक्त करते थे और उनकी अपूर्व कौशल (Amazing Skills) तथा एकांतिकता (Solitude) के साथ वे मीमांसा (Epistemology) करते थे। अंतर की गंभीर प्रेरणा उनकी वाग्मिता (Eloquence) को पूर्व ढंग से सार्थक कर देती है। शिकागो का श्रेष्ठ अखबार ‘हेराल्ड (Herald)’ लिखता है- ‘धर्मसभा (Synodality) में विवेकानंद ही निर्विरोध रूप से सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उनका भाषण सुनकर हम समझ सकते हैं कि इस शिक्षित जाति में धर्मप्रचारक (Preacher) भेजना कितनी निर्बुद्धता का काम है।’

स्वामी विवेकानंद और मोहन भागवत।
महान संत एवं विचारक रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत (फोटो इंडियन एक्सप्रेस और पीटीआई)

पता नहीं जिस सनातन धर्मध्वज को स्वामी विवेकानंद ने विश्व के अब तक के सर्वश्रेष्ठ धर्ममहासभा शिकागो में फहराया था, आज उन्हीं के भारत में ऐसा लगता है, मानो सनातन धर्म अनाथ हो गया है। स्वयं अपने ही अपने हाथों अपनी उस धर्मध्वजा की मर्यादा को तार-तार करने में लग गए हैं। सनातन धर्म की आलोचना समाज का अदना-सा व्यक्ति करता तो भारतीय समाज अपनी उदारता के कारण उसे क्षमा कर देता और यह माना जाता कि आलोचक अपना प्रचार पाने के उद्देश्य से आज के युग में अपनी महत्ता को प्रमाणित करना चाहता है। लेकिन, यदि समाज का कोई शीर्षस्थ व्यक्ति उस मर्यादा का उल्लंघन करके अपने ही सनातन धर्म की आलोचना सार्वजनिक मंच से करने लग जाए, तो उसके लिए क्या कहा जा सकता है? क्योंकि उसे उत्तर देने के लिए आज भारतीय समाज में कोई दूसरा स्वामी विवेकानंद तो हैं नहीं।

फिर यह अनावश्यक दुष्प्रचार का निदान कैसे हो? पिछले कुछ दिन से ऐसे तथाकथित शीर्षस्थ आलोचकों की जैसे बाढ़ आ गई है, जो अपने सनातन धर्म को आघात पहुंचकर, अपमानित करके हो सकता है अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।

अभी पिछले दिनों नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के संबंध में विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित याचिकाओं को स्थांतरित करनेवाले सुप्रीम कोर्ट के आड़े आने के बाद एक प्रमुख घटनाक्रम में समलैंगिक लोगों के लिए गरिमा और स्वायत्तता का समर्थन किया। उन्होंने जरासंध के दो सेनापतियों हंस-डिम्भक का उदाहरण देते हुए कहा कि दोनों में उसी तरह (समलैंगिक) रिश्ते थे।

प्राचीन वैदिक शास्त्र मनुस्मृति।

पत्रकार संदीप देव ने संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं संघ विचारधारा की पत्रिका पांचजन्य और आर्गेनाइजर उनके संपादक हितेश शंकर तथा प्रफुल्ल केतकर के खिलाफ 23 जनवरी को दिल्ली के बिंदापुर थाने में हिंदू की धार्मिक भावना को आहत करने की आईपीसी धारा 295 ए के तहत शिकायत दर्ज कराई है।बिंदापुर थाना, दिल्ली में दर्ज शिकायत में कहा गया है कि छद्म महाभारत-पुराण में वर्णित दो शिवांश भाईयों हंस-डिम्भक को समलैंगिक कहने और भगवान श्रीकृष्ण को अफवाहबाज बताने के कारण शिकायत दर्ज कराई गई है।

बिहार के शिक्षमंत्री चंद्रशेखर ने कहा, ‘मनुस्मृति में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके के खिलाफ गालियां दी गईं। रामचरितमानस के उत्तर कांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं। यह समाज में नफरत के बीज बोने वाले ग्रंथ हैं। एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस, तीसरे युग में गुरु गोवलकर का बंच ऑफ थॉट, ये सभी देश- समाज को नफरतों के खाके में बांटते हैं। नफरत देश को कभी महान नहीं बनाएगी। देश को महान केवल मोहब्बत ही बनाएगी।’

जीतनराम मांझी ने तो राम के अस्तित्व को ही नकार दिया

बिहार के ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने राम के नाम और उनके अस्तित्व को ही नकार दिया। वहीं, कर्नाटक के कांग्रेस नेता जारकीहोली ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि ‘हिंदू’ शब्द फारसी है और इसकी उत्पत्ति भारत में नहीं हुई है। उन्होंने कहा था कि हिंदू शब्द का अर्थ ‘भयानक’ है और सवाल उठाया था कि लोग इसे उच्च स्थान पर क्यों रखते हैं। उन्होंने कहा था कि ‘हिंदू’ शब्द कहां से आया है? यह फारस से आया है,तो भारत से इसका क्या संबंध है?

उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य भी रामचरितमानस के कुछ हिस्सों पर यह कहते हुए मांग की है कि उनसे समाज के एक बड़े तबके का जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर अपमान होता है। मौर्य ने कहा कि धर्म का वास्तविक अर्थ मानवता के कल्याण और उसकी मजबूती से हैं। अगर रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों के कारण समाज एक वर्ग का जाति, वर्ण के आधार पर अपमान होता है, तो निश्चित रूप से यह धर्म नहीं, अधर्म है।

अब समझने का प्रयास करते हैं कि यदि सनातन धर्म को परिभाषित किया जाए तो वह क्या होगा- ‘सनातन धर्म को हिंदू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए ‘सनातन धर्म’ नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है- शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, यानी जिसका न आदि है, न अंत। सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मांतरण के उपरांत भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक जनसंख्या इसी धर्म में आस्था रखती है।’

राम चरित मानस रामायण के लेखक तुलसीदास।

अब यदि सनातन धर्म की इस परिभाषा को समाज मानता है, तो फिर उपरोक्त जिन लोगों ने सनातन समाज पर दुराग्रहपूर्ण आरोप लगाया है, उसका निदान क्या हो। सच तो यह है कि जिन लोगों ने ऐसी आलोचनाएं फैलाने का प्रयास किया है, निश्चित रूप से वे समाज से जुड़े हुए हैं और उनकी मंशा अपने भावी भविष्य से प्रेरित है। तो क्या यह मान लिया जाए कि अपने स्वार्थ के लिए समाज के ये ‘प्रबुद्ध’ लोग निजी स्वार्थ के लिए समाज को बांटना चाहते हैं?

वैसे, ऐसे कुछ नेताओं ने अपने वक्तव्य के लिए समाज से माफी तो मांग ली है, लेकिन क्या महज इतने से ही समाज फिर से जुड़ जाएगा? प्रत्यक्ष रूप से समाज के लोग इसे दुराग्रह मानकर ऊपर से समझौता कर लें, लेकिन क्या उनका हृदय सच में पहले की तरह साफ रहेगा? हमारे सामाजिक ताने-बाने को जिस तरह इन नेताओं ने रौदना शुरू कर दिया है क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हो सकेगी। हां, यह होगा कि सामान्यजन इस दरार को पाटने में सफल हो जाएं, लेकिन क्या हम उसी तरह फिर से जुड़कर सामाजिक तानाबाना को बुनते हुए सनातन धर्म के मान-सम्मान को बरकरार रख सकेंगे?

वरिष्ठ पत्रकार निशिकांत ठाकुर।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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