National Youth Day 2023- ‘आत्मबल से बड़ा न रुपया न पैसा…’ क्यों ऐसा मानते थे स्वामी विवेकानंद

प्रो. आर एन त्रिपाठी

Swami Vivekanand Jayanti/National Youth Day 2023: ‘किसी भी राष्ट्र की उन्नति का प्रथम सोपान उस राष्ट्र के व्यक्तियों की जीवन-पद्धति से होता है और उनके जीवन में

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प्रो. आर एन त्रिपाठी

Swami Vivekanand Jayanti/National Youth Day 2023: ‘किसी भी राष्ट्र की उन्नति का प्रथम सोपान उस राष्ट्र के व्यक्तियों की जीवन-पद्धति से होता है और उनके जीवन में जो चरित्र बल है वही राष्ट्र की प्रगति का मूलाधार होता है। राष्ट्र के उत्थान में व्यक्तियों का आत्मबल, मनोबल, शरीर बल यदि सम्यक रूप से कार्य करे तो वह राष्ट्र निश्चित रूप से सबल और समर्थ राष्ट्र बनता है। रुपया-पैसा और आर्थिक कारण उन्नति के मार्ग को उतना नहीं बढ़ाते, जितना कि उस राष्ट्र के निवासियों का चरित्र बल बढ़ाता है। गरीबी मिटाने के लिए आर्थिक विनिर्माण तो राष्ट्रहित में आवश्यक है लेकिन उसकी सफलता तब तक स्थिर नहीं होगी जब तक कि उस राष्ट्र के नागरिकों का चारित्रिक विकास न हो’। यह पावन विचार उस महान कर्मयोगी का है जिसके अवतरण दिवस को हम ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में 1984 से मनाते चले आ रहे हैं। उस कर्मयोगी का नाम है स्वामी विवेकानंद।

‘उपदेशक नहीं कर्मयोगी बनें’

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का मानना था कि किसी भी राष्ट्र की उन्नति उसके युवाओं से होती है और युवाओं में यदि चारित्रिक पवित्रता, धैर्य और दृढ़ता बनी रहे तो उस राष्ट्र को सफल होने से कोई भी नहीं रोक सकता है। स्वामी विवेकानंद युवाओं को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी उपदेशक ना बने, कर्मयोगी बने तो स्वयं विकसित होंगे और समाज को भी विकसित करेंगे। युवाओं को आध्यात्मिकता के साथ राष्ट्र की सेवा करनी चाहिए।

उनकी आध्यात्मिकता कोई देव भक्ति नहीं हो बल्कि कर्तव्यपरायणता भरा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हो, जिससे राष्ट्र सामर्थ्यवान बनकर विश्व गुरु की पदवी फिर से हासिल करे। जहां प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति में ईश्वर का वास दिखाई देता हो, ईश्वर को ढूंढने के लिए कहीं अन्यत्र दूर ना जाना पड़े, वह दीन, दलित, विकल, निबल जनता में जब दिखाई देने लगे तो समझिए कि उसकी आध्यात्मिकता का कर्मयोग पूरा हो गया। इसीलिए वह नर सेवा नारायण सेवा अर्थात “दरिद्रनारायणसेवामहे” की बात करते हैं।

‘चरित्र बल से बड़ी कोई शक्ति नहीं’

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand Quotes) का मानना था कि हर समय अभाव, अज्ञानता की बात करना बड़ी बात नहीं है बल्कि उसके पीछे कारण क्या है, इसका पता लगाना आवश्यक होता है। क्योंकि कुछ लोगों की अतृप्त इच्छाएं और वासनाएं इतना बढ़ जाती हैं कि वह दूसरों के हिस्सों को भी डकार जाते हैं। इसलिए जब तक चरित्र बल नहीं होगा तब तक इस प्रकार के अनैतिकता पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। मनुष्य का मन स्वतंत्र होता है, इंद्रियां स्वतंत्र होती हैं, कामनाएं दरबदर स्वच्छंद विचरण करती हैं, ऐसे में संयम की मूल प्रवृत्तियों के आधार पर ही व्यक्ति आत्म नियंत्रण कर सकता है और आत्म नियंत्रण से अपना चरित्र बल बढा सकता है, जो राष्ट्रीय प्रगति का मूलाधार होता है।

हमारे यहां मनुष्य के हित की दृष्टि में उसके सामाजिक जीवन में परमार्थ बना रहे, वह सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करता रहे, कामचोरी न करे और कर्तव्य से विमुख भी ना हो तभी राष्ट्र की समृद्धि में उसका भरपूर श्रम और पुरुषार्थ काम आएगा। परिग्रह और भय से दूर रह कर सत्यनिष्ठा के साथ अगर हम कर्तव्य करेंगे तो सुख और शांति का अनुभव हमारे जीवन में हर जगह हर समय दिखाई देगा। इस हेतु एक ही बल काम आएगा, वह है चरित्र बल। चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदंड होता है और किसी भी समाज के संतुलन और सुचारू व्यवस्था का आधार का निर्माण व्यक्ति का चरित्र निर्माण ही है, क्योंकि व्यक्ति से समाज बनता है और समाज के लोग यदि ईमानदार सत्यनिष्ठ, आदर्श प्रिय चरित्रवान होंगे तो राष्ट्र के विकास का वातावरण स्वयमेव निखरता चला जाएगा।

हमें भाषावाद, जातिभेद, पदलोलुपता, प्रांतवाद और विकृतिकारक व्यर्थ की राजनीति के चक्कर में पड़कर अपने व्यक्तित्व को कभी भी दिग्भ्रमित नहीं करना चाहिए, क्योंकि हमसे संयम और परमार्थ की अपेक्षा विकल, निरीह मनुजता सदैव करती रहती है। यदि हमारी तृष्णा बढ़ती रहे तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे। इसलिए साधन अपने लिए भी हो और लोगों को सुखी करने के लिए भी हो, तभी उसकी सार्थकता है।

‘खुद को कमजोर समझना दुनिया का सबसे बड़ा पाप’

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand Messages) ने कहा था कि इतिहास उन थोड़े से व्यक्तियों द्वारा बनाया गया है जिनके पास चरित्र बल का उत्कृष्ट भंडार था, जो कई योद्धा और विजेता हुए हैं, बड़े-बड़े चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं। किंतु इतिहास ने केवल उन्हीं व्यक्तियों को अपने हृदय में स्थान दिया है जिनके व्यक्तित्व ने समाज व मानव जाति के लिए एक प्रकाश स्तंभ की बात की है। वरना वह सब कूड़ेदान की विषय वस्तु बन गए। स्वामी जी का मानना था कि खुद को कमजोर समझना दुनिया का सबसे बड़ा पाप है। इसलिए हमें किसी भी दृष्टि से, खासकर स्वास्थ्य और विचार दोनों की दृष्टि से सदैव निर्भय बने रहना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) कहते हैं कि श्रीमद्भागवतगीता पढ़ना उतना ही आवश्यक है जितना जीवन में फुटबॉल खेलना जरूरी है। क्योंकि शारीरिक रूप से स्वस्थ, निर्भय बनना और निश्छल प्रवृति को अपनाना ही एक सुगठित राष्ट्र निर्माण का मुख्य आधार होता है।

युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद का संदेश

शिक्षा के संदर्भ में उनका मानना है कि आज के युवा शिक्षा को केवल जानकारी का पुलिंदा ना बनाएं जो दिमाग में पड़ी रहे। शिक्षा वह है जो समाज और व्यक्ति के निर्माण में भूमिका निभाये, जिसमें राष्ट्र की सामूहिक चेतना विकसित हो और राष्ट्र के पुनर्निर्माण की प्रवृति जागृत हो। जो शांति, समृद्धि और आनंद की अनुभूति करा सके वही शिक्षा है। वर्तमान समय में भारत 65 करोड़ युवाओं का देश है। ऐसे में युवाओं का सबसे बड़ा धर्म विवेकानंद की पावन जयंती पर यही है कि वह अपने स्वभाव, आचरण के प्रति अपने चरित्र के प्रति सच्चे हों। सभी धर्मों तथा सभी देशों से सताए गए लोगों को अपने यहां स्थान देने वाला भारत, और जिसका ध्येय ‘जियो और जीने दो’ का रहा है उसका अनुपालन करते रहें। तभी देश की गरिमा में वृद्धि होगी और उनका भी जीवन गरिमामयी होगा।

केवल अपने लिए अर्थ पूर्ण जीवन जीकर और छणिक प्रतिष्ठा प्राप्त करके न तो आप संतुष्ट हो सकते हैं और न एक सुयोग्य राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। आइए इस पावन पर्व पर हम संकल्प लें कि हम स्वामी विवेकानंद के बताए गए रास्ते पर तब तक आगे बढ़ते रहेंगे जब तक कि हमें राष्ट्र निर्माण का अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए।

प्रो. आर एन त्रिपाठी, BHU में प्रोफेसर और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के सदस्य हैं।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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