मनोज कुमार मिश्र
यह तब है जब नगर निगम की 250 सीटों के चुनाव में दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी (आप) को बहुमत से ज्यादा 134 सीटें मिलीं। लगातार 15 साल से नगर निगम की सत्ता में रहने वाली भाजपा को 104 सीटें और वर्षों दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस को महज नौ सीटें मिलीं। छह जनवरी,2023 को महापौर चुनाव से पहले सदस्यों के शपथ-ग्रहण में खूब हंगामा हुआ और सारी मर्यादाएं तार-तार हुईं।
पहले तो विवाद पार्षदों (सदस्यों) को शपथ दिलाने के लिए उप राज्यपाल से नियुक्त पीठासीन अधिकारी की नियुत्ति पर हुआ। विवाद उग्र पहले मनोनीत सदस्यों के शपथ ग्रहण के चलते हो गया। तब तक दस मनोनीत सदस्यों में से चार ही शपथ ले पाए थे। आप का आरोप है कि उनके सदस्यों में तोड़फोड़ करके भाजपा उप राज्यपाल के माध्यम से निगम की हारी हुई बाजी पलटने में लगी हुई है।
नगर निगम में न तो दलबदल विरोधी कानून लागू है और न ही दलों का व्हिप, इसलिए कुछ भी असंभव नहीं है। असली बात आप जिससे डरी हुई है वह है निगम की सबसे ताकतवर स्थायी समिति पर भाजपा ने लगभग कब्जा कर सा लिया है। कोर्ट के एक आदेश से मनोनीत सदस्य मेयर के चुनाव में वोट नहीं कर सकते लेकिन जोनल कमेटियों में वोट कर सकते हैं। मनोनीत सदस्यों के कारण12 में से छह जोन से भाजपा स्थार्यी समिति का सदस्य चुनवा लेगी।
निगम के विधान में चुने हुए पार्षदों के बावजूद निगम की असली सत्ता निगम आयुक्त और नौकरशाहों के पास है। संसद में हुए संशोधन से तीन निगम 15 साल बाद एक हुआ और साथ ही निगम पार्षदों की संख्या 272 से कम हो कर 250 हुई। उसी संशोधन में निगम पर पूरा नियंत्रण उप राज्यपाल का कर दिया गया। इसीलिए अब मनोनीत सदस्य तय करने का अधिकार भी राज्य सरकार के पास नहीं रहा है।
सदनों में बहुत सारा काम नियमों से अधिक परंपराओं से होता है। पीठासीन अधिकारी वरिष्ठ पार्षद बनेगा यह परंपरा है। कई नाम सरकार भेजती है, उसमें तय करना उप राज्यपाल के अधिकार में है। उसी तरह मनोनीत सदस्यों को कब शपथ दिलाना है यह पीठासीन अधिकारी तय करते हैं।
आप को डर था कि महापौर चुनाव से पहले मनोनीत सदस्यों को शपथ दिलाकर भाजपा अपनी रणनीति कामयाब करने में लगी है। निगम में तो महापौर केवल दिखावटी पद है। वह केवल निगम की बैठक का संचालन करता है और दिल्ली का पहला नागरिक कहलाता है। निगम में अधिकारियों से फैसलों को लागू करवाने वाली संस्था स्थाई समिति है जो निगम के आर्थिक फैसले लेने के लिए सक्षम है।
उसके अध्यक्ष का चुनाव 12 जोन से आने वाले 12 सदस्य और सभी सदस्यों से चुने जाने वाले छह सदस्य करते हैं। भाजपा ने जिन दो निर्दलीय सदस्यों को अपनी पार्टी में शामिल कराया, उसमें से एक को स्थायी समिति ले सदस्य का चुनाव लड़वाना तय किया। ‘आप’ को डर है कि वह उनके सदस्यों के भरोसे चुनाव लड़ रहा है। कांग्रेस के चुनाव से अलग होने एलान का भा आप को नुकसान होगा। उससे स्थाई समिति के लिए कम मतों की जरूरत पड़ेगी। अगर भाजपा का स्थाई समिति जीतने का लक्ष्य का पूरा हो गया तो अगली बार महापौर भी उसी का बनने लगेगा।
आप नेताओं का आरोप है कि आप की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर भाजपा की केंद्र सरकार उप राज्यपाल के माध्यम से उसके नेताओं को परेशान कर रही है। एक मंत्री सतेंद्र जैन तो महीनों से जेल में है, कई और के जेल जाने की आशंका जताई जा रही है। ताजा विवाद सरकारी पैसे से पार्टी का विज्ञापन करने का है। इसके आरोप पर उप राज्यपाल ने आप से 164 करोड़ रुपए वसूलने का नोटिस भेजा है।
दिल्ली में पहली बार गैर नौकरशाह विनय कुमार सक्सेना 23 मई, 2022 को उप राज्यपाल बने तब से यह टकराव ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है। निगम के मामले में दिल्ली सरकार को ज्यादा अधिकार ही नहीं है। यह भी संभव है कि पहला ही महापौर चुनने में कई महीने लग जाएं, तब तक नया वित्तीय वर्ष शुरू हो जाए। अगर भाजपा पहले स्थाई समिति का अध्यक्ष और बाद में महापौर अपना बनवा लेती है तो दोनों दलों की लड़ाई और तेज हो जाएगी और दिल्ली में नए तरह की राजनीति की शुरुआत हो जाएगी।
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