Guidelines For POCSO Victims: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सुनवाई के दौरान पोक्सो (POCSO) पीड़ितों को होने वाली दिक्कतों और अपमानजनक हालात से बचाने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कई पीड़ितों को अदालत में शारीरिक (Physically) या आभासी (Virtually) रूप से पेश होने पर उनके कथित उत्पीड़कों (Tormentors) का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है।
पीड़ितों को अभियुक्तों के सामने अदालत में पेश होने पर होती है समस्या
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह (Justice Jasmeet Singh) की पीठ ने पिछले सप्ताह पारित एक आदेश में कहा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) मामलों में कई पीड़ितों को अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई के समय शारीरिक या आभासी रूप से अदालत में पेश होने के लिए कहा जा रहा था। इसने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां पीड़ितों को न केवल कथित आरोपी व्यक्ति के साथ संभावित रूप से बातचीत करने के लिए मजबूर किया जा रहा था बल्कि सुनवाई के लिए अपराध के संबंध में तर्क दिए जाने पर अदालत में उपस्थित होने के लिए भी मजबूर किया जा रहा था।
कोर्ट ने कहा- निर्देशों को लागू करने पर आघात कम करने में मिलेगी मदद
कोर्ट ने निर्देश जारी करते हुए कहा, अगर इन निर्देशों को उनके सही अक्षर, भावना और इरादे से लागू किया जाता है, तो POCSO पीड़ितों के आघात को कम करने में मदद मिल सकती है। अदालत में उपस्थित POCSO पीड़ितों पर दलीलों के दौरान गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उस दौरान उसके और उसके परिवार आदि की सत्यनिष्ठा, चरित्र आदि पर संदेह, अभियोग, आरोप आदि लगाए जाते हैं। अदालत ने कहा, मेरे अनुसार दलीलों का समय, उसके मानस पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
अभियोजिका को अभियुक्त के साथ अदालत में उपस्थित होने के लिए मजबूर किया जाता है, जो वही व्यक्ति है जिसने कथित रूप से उसका उल्लंघन किया है। यह महसूस किया गया कि यह पीड़िता के हित में होगा कि न्यायालय की कार्यवाही में उपस्थित रहकर उक्त घटना को फिर जीवित कर उसे बार-बार प्रताड़ित न किया जाए।
इस मामले को ध्यान में रखते हुए और पूर्व में जारी निर्देशों के अलावा, यह भी निर्देश दिया जाता है कि POCSO मामले की जमानत सुनवाई के दौरान, जांच अधिकारी यह पक्का करेगा कि पीड़िता/अभियोजिका को जमानत आवेदन के नोटिस की समय पर तामील की जाए, जिससे उसे उपस्थिति होने और अपनी तैयारी करने के लिए उचित समय मिल सके।
पीड़ित को न्यायालय के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से सहायता लेकर वर्चुअली पेश किया जा सकता है। जमानत आवेदनों की इस तरह की सुनवाई से पीड़ित की चिंताओं को दूर करने में मदद मिलेगी, साथ ही अभियुक्तों के अधिकारों की भी रक्षा हो सकेगी।
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