जनतंत्र बनाम अराजकता

रविवार को ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थक आक्रामक तेवर के साथ उत्पात मचाते हुए संसद भवन, राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट में घुस गए और परिसरों पर कब्जा जमाने की कोशिश करने लगे।

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रविवार को ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थक आक्रामक तेवर के साथ उत्पात मचाते हुए संसद भवन, राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट में घुस गए और परिसरों पर कब्जा जमाने की कोशिश करने लगे।

गनीमत यह रही कि इस हंगामे का दायरा बढ़ने के पहले ही पुलिस ने सख्ती दिखाई और उपद्रवी तत्त्वों के कब्जे से सरकारी इमारतों को खाली कराया। जाहिर है, इसके बाद बोल्सोनारो और उनके समर्थकों पर ऐसे आरोप लग रहे हैं कि लोकतंत्र में उनकी कोई आस्था नहीं है और वे अराजकता के जरिए फिर से सत्ता में वापसी की साजिश में लगे हैं।

हालांकि इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ना शुरू किया और बोल्सोनारो पर लोकतंत्र को ध्वस्त करने के आरोप लगने लगे, तब खुद ब्राजील में जनता के एक बड़े हिस्से ने इस हमले के खिलाफ प्रदर्शन और सख्त सजा की मांग करनी शुरू कर दी। फिर बोल्सोनारो ने भी उपद्रव से खुद को अलग करते हुए अराजकता की निंदा की। सवाल है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में लोग जमा होकर मौजूदा चुनी गई सरकार के खिलाफ बगावत पर क्यों उतर गए!

गौरतलब है कि ब्राजील में पिछले महीने राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों में लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा के मुकाबले बोल्सोनारो मामूली अंतर से हार गए थे। मगर बोल्सोनारो और उनके समर्थकों ने चुनाव परिणामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। यह समझना मुश्किल है कि अगर ब्राजील में हुए चुनावों और उसके नतीजों पर कोई राजनीतिक पक्ष सवाल उठा रहा है तो उसके हल के लिए अराजकता का सहारा लेना कितना जायज है।

खासतौर पर जिस दौर में दुनिया भर में लोकतंत्र और इसकी जड़ों को मजबूत करने की मांग का दायरा फैल रहा है और एकध्रुवीय राजनीति के पैरोकार भी लोकतंत्र की दुहाई देते नजर आते हैं, वैसे वक्त में विरोध के लिए लोकतांत्रिक तौर-तरीकों की तिलांजलि देने को किस नजरिए से देखा जाएगा? यह बेवजह नहीं है कि ब्राजील में अराजक विरोध प्रदर्शन की तुलना अमेरिका में हुए चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की हार के बाद करीब दो साल पहले उपजी स्थिति से की जा रही है। तब ट्रंप के समर्थकों ने लगभग इसी तर्ज पर कैपिटल हिल यानी अमेरिकी संसद में दाखिल होकर हिंसा की थी। उस घटना की जांच के बाद ट्रंप को जिम्मेदार ठहराया गया था।

अब ब्राजील में हुए ताजा हंगामे के मामले के तूल पकड़ने के बाद बोल्सोनारो भले अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं, लेकिन यह तय है कि इतनी घटना में उनके रुख की वजह से ही उनके समर्थकों के बीच आक्रोश फैला होगा। यों ब्राजील में पहले भी सरकारी इमारतों पर अराजक हमलों की घटनाएं हो चुकी है। विडंबना यह है कि एक ओर बोल्सोनारो पहले तो लोकतांत्रिक तरीके से हुए चुनावों के परिणामों को कठघरे में खड़ा करते हैं और फिर उनके समर्थन में अराजकता फैलती है तब वही लोकतंत्र की दुहाई देते हुए उसकी निंदा करते हैं।

ऐसे में आम जनता के सामने एक विभ्रम और ठगे जाने की स्थिति पैदा होती है। अब अगर ब्राजील की मौजूदा सरकार अराजकता फैलाने के आरोपी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती है तब बोल्सोनारो का रुख क्या होगा? इसलिए कई बार जरूरत इस बात की भी लगती है कि उच्च स्तर पर राजनीतिक टकरावों के बीच आम जनता को अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भावनाओं में बहने के बजाय धीरज और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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