आतंक की आग

इससे एक बार फिर यही साफ हुआ है कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता। इसका इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि पेशावर के पुलिस लाइन इलाके में स्थित मस्जिद में यह विस्फोट तब हुआ जब लोग वहां नमाज अदा कर रहे

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इससे एक बार फिर यही साफ हुआ है कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता। इसका इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि पेशावर के पुलिस लाइन इलाके में स्थित मस्जिद में यह विस्फोट तब हुआ जब लोग वहां नमाज अदा कर रहे थे।

फिलहाल इस विस्फोट की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है, लेकिन शुरुआती आकलनों में यह बताया जा रहा है कि इस विस्फोट को आत्मघाती दस्ते के किसी सदस्य के जरिए अंजाम दिया गया। आशंका यह भी जताई गई है कि संभवत: बम को मस्जिद में लगाया गया था। घटना की प्रकृति और इसमें शामिल लोगों की जिम्मेदारी तो व्यापक जांच के बाद तय होगी, लेकिन इतना तय है कि पाकिस्तान के आम लोग भी वैश्विक आतंकवाद के निशाने पर उतने ही हैं, जितने दूसरे मुल्कों के लोग। विडंबना यह है कि ऐसे हमलों का खमियाजा दुनिया भर में हर बार आम जनता को ही उठाना पड़ता है, जबकि इसके संरक्षक पर्दे के पीछे सुरक्षित बैठे साजिशें रचते रहते हैं।

दरअसल, पाकिस्तान में आतंक के कहर की यह कोई अकेली घटना नहीं हैं। वहां भी आए दिन आतंकवादी हमले होते रहते हैं और उसमें साधारण लोग शिकार बनाए जाते रहते हैं। लेकिन वहां की सत्ताधारी ताकतों को यह स्वीकार करने की जरूरत शायद नहीं महसूस होती कि आतंकवाद की आग कैसे पाकिस्तान को भी धीरे-धीरे खाक करता जा रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले पिछले साल चार मार्च को पेशावर के ही कोचा रिसालदार इलाके में एक शिया मस्जिद में आत्मघाती बम विस्फोट की वजह से तिरसठ लोग मारे गए और करीब दो सौ घायल हो गए थे।

तब उस घटना की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट आतंकी समूह की खुरासान इकाई (आइएस-के) ने ली थी। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि महज पिछले ढाई साल के आंकड़ों के मुताबिक वहां आतंकी हमलों में लगभग साढ़े सात सौ लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यों ऐसे हमले कहीं भी होते रहे हैं, मगर इनका मुख्य निशाना मदरसे और मस्जिद बने। यह समझना मुश्किल है कि आखिर व्यापक पैमाने पर निर्दोष लोगों की जान लेकर आतंकी संगठन कौन-सा मकसद हासिल कर पाते हैं!

इसके समांतर सवाल यह है कि आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार क्या करती है, क्या रुख अपनाती है। यह छिपा तथ्य नहीं है कि भारत अक्सर आतंकी घटनाओं के लिए उन संगठनों को जिम्मेदार बताता रहा है, जो पाकिस्तान स्थित ठिकाने से अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं। कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान को इस बात के लिए आगाह किया जाता रहा है कि वह आतंकी संगठनों को शह न दे।

लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब भी इस तरह की आवाज उठाई जाती है, तब पाकिस्तान या तो इसे झूठा आरोप बता कर खारिज कर देता है या फिर इसकी अनदेखी कर देता है। जबकि आतंकवाद को संरक्षण देने के सवाल पर ही पाकिस्तान को आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बड़ा खमियाजा उठाना पड़ता है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान के एक आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध कर दिया था। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि आतंकवाद एक ऐसी आग है, जो न सिर्फ दूसरों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि उसे भी नहीं बख्शता, जो उसे संरक्षण मुहैया कराता है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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