अपराध और सियासत

प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड से जुड़े एक और आरोपी के मारे जाने के बाद एक बार फिर सियासी बयानबाजियां शुरू हो गई हैं। इस हत्याकांड से जुड़ा यह दूसरा आरोपी था, जो पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया। कि

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प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड से जुड़े एक और आरोपी के मारे जाने के बाद एक बार फिर सियासी बयानबाजियां शुरू हो गई हैं। इस हत्याकांड से जुड़ा यह दूसरा आरोपी था, जो पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया। किसी भी सभ्य समाज में अपराधियों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए और इसे सुनिश्चित करना हर कल्याणकारी सरकार का दायित्व है।

इस लिहाज से उत्तर प्रदेश पुलिस ने निश्चित रूप से तत्परता दिखाई और राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल को दिनदहाड़े गोली मारने वाले आरोपियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। उसी कोशिश में वे दोनों मारे भी गए। चूंकि राजू पाल और उमेश पाल की हत्या के पीछे वजह राजनीतिक रंजिश बताई जाती है, इसलिए भी इन मुठभेड़ों को राजनीतिक रंग देने में आसानी हो गई है।

मगर सवाल है कि जिस तरह उत्तर प्रदेश में अपराधियों ने आम लोगों को दहशत में जीने पर मजबूर किया है, उसमें उन्हें राजनीतिक संरक्षण में क्यों फलने-फूलने दिया जाना चाहिए। छिपी बात नहीं है कि आपराधिक प्रवृत्ति के बहुत सारे लोग कानूनी संरक्षण पाने के मकसद से किसी न किसी राजनीतिक दल का दामन थाम लेते और फिर न सिर्फ निर्भय होकर घूमते, बल्कि और दहशत फैलाना शुरू कर देते हैं। अच्छी बात है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ऐसे लोगों के दहशत को खत्म करने का प्रयास कर रही है।

छिपी बात नहीं है कि राजू पाल की हत्या इसलिए करा दी गई थी कि उन्होंने बाहुबली नेता अतीक अहमद को चुनौती दी और उनके निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीत गए थे। राजू पाल के परिजनों ने प्राथमिकी में स्पष्ट आरोप लगाया था कि अतीक अहमद ने ही राजू पाल की हत्या कराई। उस घटना के इकलौते गवाह उमेश पाल थे। उनकी हत्या में भी अतीक अहमद के लोगों का ही हाथ बताया गया।

जो भी अपराध की दुनिया से थोड़ा-बहुत परिचित हैं, वे अतीक अहमद की दबंगई से अच्छी तरह वाकिफ हैं। मगर अतीक अपने राजनीतिक रसूख की वजह से कानून की पकड़ से बचे रहे। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने राजनीतिक संरक्षण में रहते हुए कानून के चंगुल से बचते आ रहे ऐसे तमाम आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू किया है, तो आम लोगों ने स्वाभाविक ही राहत की सांस ली है। मगर सत्तापक्ष के राजनीतिक विरोधियों को यह कड़ाई रास नहीं आ रही और ऐसी कार्रवाइयों के खिलाफ कोई न कोई तर्क जुटाने का प्रयास करते देखे जाते हैं।

यह ठीक है कि पुलिस को किसी अपराधी को जान से मारने का अधिकार नहीं है, उसकी कुशलता इस बात में मानी जाती है कि वह अपराधी को पकड़ कर अदालत के सामने पेश करे। मगर जब कोई अपराधी पुलिस पर गोलियां दागनी शुरू कर दे, तो बचाव में पुलिस को भी गोलियां चलानी ही पड़ती हैं।

उमेश पाल हत्याकांड में आरोपियों पर शिकंजा कसने के दौरान भी यही हुआ। इससे अपराधियों में यह संदेश बहुत कड़े ढंग से गया है कि ऐसी किसी भी हरकत को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। निश्चित रूप से इससे आम लोगों का भी पुलिस के अपराधियों पर नकेल कसने की प्रतिबद्धता को लेकर भरोसा बढ़ा है। उत्तर प्रदेश सरकार शुरू से राज्य में अपराध मिटाने को लेकर संकल्पबद्ध है। ऐसे में उससे यह अपेक्षा बनी हुई है कि वह अपराधियों को किसी भी रूप में राजनीतिक चश्मे से देखने का प्रयास नहीं करेगी।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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