हिरासत में हत्या, कारणों की तह तक जाने के साथ ही अपराधियों की मीडिया के समक्ष नुमाइश करना बंद हो

प्रयागराज में पुलिस की उपस्थिति और टीवी कैमरों के सामने माफिया सरगना अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या पुलिस की कार्यप्रणाली और उसकी चौकसी को लेकर एक नहीं, अनेक सवाल खड़े करने वाली है। समझना कठिन है कि इतने खतरनाक और खूंखार अपराधी को मे

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प्रयागराज में पुलिस की उपस्थिति और टीवी कैमरों के सामने माफिया सरगना अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या पुलिस की कार्यप्रणाली और उसकी चौकसी को लेकर एक नहीं, अनेक सवाल खड़े करने वाली है। समझना कठिन है कि इतने खतरनाक और खूंखार अपराधी को मेडिकल परीक्षण के लिए अस्पताल ले जाते समय मीडिया के समक्ष पेश करने की क्या आवश्यकता थी और वह भी रात के वक्त? पुलिस को इसका भान होना चाहिए था कि अतीक-अशरफ के दुश्मन या फिर उससे प्रताड़ित लोग उसे निशाना बनाने की कोशिश कर सकते हैं? आखिरकार ऐसा ही हुआ। पत्रकार बनकर पहुंचे तीन अपराधियों ने अतीक और उसके भाई को गोलियों से भून दिया और कोई कुछ नहीं कर सका।

कहना कठिन है कि अतीक और उसके भाई को मारने वालों की उनसे क्या दुश्मनी थी अथवा उन्होंने किसके कहने पर उन्हें मारा, लेकिन आवश्यक केवल यह नहीं है कि पुलिस इस हत्या के कारणों की तह तक जाए, बल्कि यह भी है कि अपराधियों की मीडिया के समक्ष नुमाइश करना बंद करे। वास्तव में यह काम देश में कहीं भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसके पहले भी थाना-कचहरी में अपराधियों को ठिकाने लगाया जा चुका है। कोई कितना भी बड़ा अपराधी हो, उसे तय कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सजा मिलनी चाहिए। कानून के शासन की रक्षा और प्रतिष्ठा के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।

अतीक और अशरफ की सनसनीखेज तरीके से हत्या के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस स्वाभाविक ही सबके निशाने पर है। निःसंदेह इस घटना ने राज्य पुलिस के साथ सरकार को असहज करने का काम किया है, लेकिन ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का भी कोई मतलब नहीं कि पुलिस वही चाहती थी, जो हुआ। आज भले ही पुलिस की चूक के कारण उत्तर प्रदेश सरकार कठघरे में हो, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसकी सक्रियता और प्रतिबद्धता के कारण ही अतीक को हाल में पहली बार सजा सुनाई जा सकी।

अतीक और अशरफ के मारे जाने के बाद कानून के शासन की बात करने वाले इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि चार दशक से भी अधिक समय से आपराधिक गतिविधियों में लिप्त अतीक और उसके साथियों के समक्ष कानून के हाथ निष्क्रिय बने हुए थे। कानून के शासन की चिंता करने वाले नेताओं को यह बताना चाहिए कि ऐसा क्यों था? अतीक और अशरफ आतंक के पर्याय बन गए थे तो इसी कारण, क्योंकि उन्हें बेहद निर्लज्जता के साथ हर तरह का राजनीतिक संरक्षण दिया गया। राजनीति अपराधियों को किस तरह संरक्षण देकर उन्हें सभ्य समाज के साथ विधि के शासन के लिए खतरा बनाती है, अतीक इसका उदाहरण था। यह हास्यास्पद है कि आज वे राजनीतिक दल भी कानून के शासन की बात कर रहे हैं, जिन्होंने अतीक के काले कारनामों से परिचित होते हुए भी उसे संरक्षण दिया।

Edited By: Praveen Prasad Singh

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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