सड़क सुरक्षा, केवल विचार-विमर्श नहीं, बल्कि दुर्घटनाएं रोकने के उपायों पर अमल की कोई ठोस रूपरेखा भी बननी चाहिए

सड़क सुरक्षा को लेकर आयोजित होने जा रहे राज्यों के परिवहन मंत्रियों के सम्मेलन में केवल सड़क सुरक्षा को लेकर व्यापक विचार-विमर्श ही नहीं होना चाहिए, बल्कि उन उपायों पर अमल की कोई ठोस रूपरेखा भी बननी चाहिए, जो मार्ग दुर्घटनाओं को कम करने म

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सड़क सुरक्षा को लेकर आयोजित होने जा रहे राज्यों के परिवहन मंत्रियों के सम्मेलन में केवल सड़क सुरक्षा को लेकर व्यापक विचार-विमर्श ही नहीं होना चाहिए, बल्कि उन उपायों पर अमल की कोई ठोस रूपरेखा भी बननी चाहिए, जो मार्ग दुर्घटनाओं को कम करने में सहायक बन सकें। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि तमाम प्रयासों के बाद भी सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इन दुर्घटनाओं में मरने और घायल होने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि जैसे-जैसे सड़कें बेहतर हो रही हैं, वैसे-वैसे मार्ग दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं।

भारत में अन्य देशों की तुलना में कहीं कम वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। एक आंकड़े के अनुसार, देश में प्रतिवर्ष करीब डेढ़ लाख लोग मार्ग दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा देते हैं। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में लोग अपंग हो जाते हैं। सड़क हादसों में मरने और घायल होने वाले अधिकतर लोग कामकाजी सदस्य होते हैं यानी परिवार की जिम्मेदारी उन पर ही होती है। उनके न रहने या फिर अपंग हो जाने के कारण पूरा परिवार प्रभावित होता है। कई बार तो वह गरीबी रेखा से नीचे चला जाता है। स्पष्ट है कि सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों के चलते परिवार विशेष को होने वाली क्षति सामाजिक क्षति का भी कारण बनती है।

दो वर्ष पहले विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ने यह बताया था कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 3.14 प्रतिशत के बराबर का नुकसान होता है। यह एक बड़ी क्षति है। बेहतर हो कि केंद्र और राज्य सरकारें यह समझें कि सड़कों पर होने वाले जानलेवा हादसे राष्ट्र को आर्थिक-सामाजिक रूप से कमजोर करने का काम कर रहे हैं। इन हादसों पर केवल चिंता जताने से काम चलने वाला नहीं है। विडंबना यह है कि जब भी कोई बड़ा सड़क हादसा होता है, तो संवेदना जताकर या फिर मुआवजे की घोषणा करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। उन कारणों का निवारण मुश्किल से ही होता है, जिनके चलते हादसे होते हैं। यह ठीक है कि परिवहन मंत्रियों के सम्मेलन में लाइसेंसिग नियमों के अनुपालन और सड़कों के ढांचे पर भी चर्चा होगी, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं।

यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइन से मुक्ति मिले, क्योंकि अनेक हादसे सड़कों की खराब इंजीनियरिंग के कारण होते हैं। इसी तरह तमाम हादसे ट्रैफिक नियमों की अनदेखी और अकुशल-अनाड़ी ड्राइवरों के कारण होते हैं। इन कारणों का निवारण संभव है, यदि नियम-कानूनों का पालन सख्ती के साथ किया जाए। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाता और इसका एक बड़ा कारण है यातायात पुलिस के संख्याबल में कमी। शायद ही कोई राज्य हो, जिसके पास पर्याप्त संख्या में यातायात पुलिसकर्मी हों।

Edited By: Praveen Prasad Singh

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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