जातिगत जनगणना, सामाजिक न्याय के नाम पर केवल अगड़ों-पिछड़ों की राजनीति को धारदेनेकीकवायद

कांग्रेस ने जिस तरह जातिगत जनगणना की मांग की, उससे यह साफ है कि वह अपनी रणनीति बदल रही है और उन क्षेत्रीय दलों के साथ खड़ी हो रही है, जो यह चाहते हैं कि इसका पता लगाया जाए कि देश में किस जाति की कितनी संख्या है। यह समय बताएगा कि कांग्रेस

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कांग्रेस ने जिस तरह जातिगत जनगणना की मांग की, उससे यह साफ है कि वह अपनी रणनीति बदल रही है और उन क्षेत्रीय दलों के साथ खड़ी हो रही है, जो यह चाहते हैं कि इसका पता लगाया जाए कि देश में किस जाति की कितनी संख्या है। यह समय बताएगा कि कांग्रेस जातिगत जनगणना की अपनी मांग के सहारे क्षेत्रीय दलों को अपने साथ खड़ा कर पाएगी या नहीं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसने लंबे समय तक सत्ता में रहते समय इसकी आवश्यकता नहीं समझी कि जातियों की गणना कराई जाए।

कहीं कांग्रेस जातिगत जनगणना की मांग इसलिए तो नहीं कर रही है, ताकि स्वयं को पिछड़े वर्गों के हितैषी के रूप में पेश कर सके और उस आरोप से पीछा छुड़ा सके कि राहुल गांधी ने मोदी उपनाम को लेकर जो बयान दिया था और जिसके कारण उनकी सदस्यता गई, उससे उन्होंने पिछड़ों का अपमान किया?

वस्तुस्थिति जो भी हो, कांग्रेस की ओर से जातिगत जनगणना की मांग इसलिए हैरानी का विषय है कि एक समय उसके नेता जातिविहीन समाज बनाने की बातें किया करते थे। क्या यह विचित्र नहीं कि वही अब जातीय भावना को उभारने का काम कर रहे हैं। जातिगत जनगणना केवल जातीयता को उभारने का ही काम नहीं करेगी, बल्कि जातिवाद की राजनीति को भी बल देगी। यह किसी से छिपा नहीं कि यह राजनीति किस तरह जातीय वैमनस्य को भी बढ़ाने का काम करती है।

जातिगत जनगणना भले ही सामाजिक न्याय के नाम पर की जा रही हो, लेकिन उसका मूल उद्देश्य अगड़ों-पिछड़ों की राजनीति को धार देने के साथ इस पर जोर देना है कि जिसकी जितनी संख्या हो, उसकी उतनी ही भागीदारी हो। यह भी स्पष्ट है कि जातिगत जनगणना की मांग के पीछे एक इरादा जातिगत आरक्षण को बल देना है। यह एक विडंबना ही है कि जब इसका अध्ययन और आकलन किया जाना चाहिए कि आरक्षण की व्यवस्था ने गरीब और पिछड़े वर्गों का कितना उत्थान किया है, तब जातिगत आरक्षण पर जोर दिया जा रहा है।

इससे इन्कार नहीं कि देश में अभी भी ऐसे निर्धन वर्ग हैं, जिनका सामाजिक-आर्थिक उत्थान करने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता है, लेकिन इन उपायों पर अमल करने के पहले यह भी तो देखा जाना चाहिए कि आरक्षण व्यवस्था अपने मौजूदा स्वरूप में कितनी कारगर है और उन उद्देश्यों को पूरा कर पाई है या नहीं, जिनके तहत इस व्यवस्था को अमल में लाया गया था। वास्तव में आरक्षण की एक ऐसी व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पात्र लोग ही यानी निर्धन-वंचित तबके ही लाभान्वित हो सकें। चूंकि वर्तमान में लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, इसलिए वे तबके आरक्षण के लाभ से वंचित हो रहे हैं, जो वास्तव में उसके हकदार हैं।

Edited By: Praveen Prasad Singh

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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