देश के अलग-अलग राज्यों के वन क्षेत्रों और उसके आसपास बसी इंसानी बस्तियों से तेंदुए या बाघ के हमले में लोगों के मारे जाने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। आम लोगों के सामने अपने स्तर पर बचाव के उपाय करने से लेकर सरकार से सुरक्षात्मक और वैकल्पिक इंतजाम करने की फरियाद करने के अलावा और कोई चारा नहीं होता है। दूसरी ओर, वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़े कई प्रश्न भी बेहद अहम हैं, जिनके चलते कई बार इस समस्या का कोई ठोस हल निकालना मुश्किल होता है। लेकिन बाघ या तेंदुए के इंसानी बस्तियों में आ जाने या उनके हमले की वजह से होने वाली मौतें लगातार चिंता का विषय बनती गई हैं।
महाराष्ट्र में सोमवार को राज्य के वन मंत्री ने विधानसभा में बताया कि वहां चंद्रपुर जिले में अकेले पिछले साल बाघों और तेंदुओं के हमले में तिरपन लोगों की मौत हो गई। हालांकि इस दौरान अलग-अलग घटनाओं में चौदह बाघों के अलावा भालू और मोर सहित पचास से ज्यादा अन्य वन्यजीव भी मारे गए। जाहिर है, वन्यजीवों और मनुष्य के बीच जीवन की स्थितियों में बदलाव और टकराव के चलते अब ऐसे हालात पैदा होने लगे हैं कि नाहक जान जाने की घटनाओं की निरंतरता बढ़ने लगी है।
दरअसल, वक्त के साथ बढ़ती आबादी या अन्य वजहों से जंगल के आसपास के गांवों में रिहाइशी इलाकों का विस्तार हुआ है। इससे वन क्षेत्रों का दायरा कम होता गया है और जंगली पशुओं के प्राकृतिक पर्यावास के क्षेत्र सिमटते गए हैं। इसका सीधा असर वन्यजीवों के जीवन पर पड़ता है और उसमें बाघ या तेंदुए जैसे पशुओं के लिए भोजन से लेकर अधिवास तक के मामले में असहज स्थितियां पैदा होती हैं। इसके अलावा, वनों में अवैध शिकार करने वालों की वजह से भी संरक्षित पशुओं के सामने संकट खड़ा होता है।
पारिस्थितिकी और जैव विविधता की कसौटियों और अनिवार्यताओं को समझने वाले तमाम लोग यह जानते हैं कि एक ओर जहां मनुष्य का जीवन अनमोल है, वहीं पशुओं और खासतौर पर कुछ विलुप्तप्राय जीवों का संरक्षण प्राकृतिक संतुलन के लिए कितना जरूरी है। लेकिन इस मामले में सरकार से लेकर आम लोगों तक की लापरवाही के अलावा अवैध रूप से जानवरों का शिकार करने वाले गिरोहों की ओर से जंगल और उसके आसपास के इलाकों में ऐसे दबाव पैदा हो रहे हैं कि उसमें रहने वाले कई पशुओं के भीतर असुरक्षा की स्थिति में आक्रामक प्रवृत्ति में बढ़ोतरी हो रही है।
हालांकि वन्यजीव खुद ही अपने लिए सहज और प्राकृतिक पर्यावास की ओर रुख करते हैं। लेकिन इस क्रम में उनका सामना इंसानी आबादी से होता है। बचाव की कोशिश में हुए संघर्ष की वजह से नाहक ही जान जाने के हालात पैदा होते हैं। कभी जंगली इलाकों का दायरा बड़ा था और इंसानी बस्तियों की भी सीमा थ। तब मनुष्य और पशु, दोनों को अपनी जीवन स्थितियों में एक दूसरे से बहुत बाधा नहीं आती थी। लेकिन बढ़ती आबादी के साथ कृषि भूमि का विस्तार, शहरीकरण और औद्योगीकरण में वृद्धि के मकसद से जंगलों की कटाई की वजह से वनक्षेत्र सिकुड़ते गए।
इसकी वजह से बाघ, तेंदुआ और हाथी जैसे कुछ पशुओं के अक्सर इंसानी बस्तियों की ओर चले जाने और मनुष्यों पर हमले की घटनाएं बढ़ीं। जरूरत यह है कि जंगल क्षेत्रों के आसपास रहने वाली इंसानी आबादी को वन्यजीवों की प्रकृति और पारिस्थितिकी संतुलन में उनकी अनिवार्यता के बारे में जागरूक किया जाए और साथ ही इंसानों के जीवन के लिहाज से खतरनाक पशुओं के लिए सुरक्षित अभयारण्यों को और बेहतर बनाया जाए।
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