नया बनाम पुराना

केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री ने संसद में बताया कि पांच राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश- ने नई की जगह पुरानी पेंशन योजना अपनाने के अपने फैसले से केंद्र सरकार को अवगत कराया ह

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केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री ने संसद में बताया कि पांच राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश- ने नई की जगह पुरानी पेंशन योजना अपनाने के अपने फैसले से केंद्र सरकार को अवगत कराया है। हालांकि इसमें केंद्र उन्हें किस प्रकार की मदद दे सकेगा, इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है।

फिर भी पुरानी पेंशन योजना लागू होने से संबंधित राज्यों के कर्मचारियों में स्वाभाविक ही उत्साह है। करीब अठारह साल पहले नई पेंशन योजना, जिसे राष्ट्रीय पेंशन योजना के नाम से जाना जाता है, लागू की गई थी। तभी से उसे बहाल करने की मांग होती रही है। इसलिए कि नई पेंशन योजना में पहले की तरह मूल वेतन और महंगाई भत्ते के आधार पर पेंशन तय नहीं होती, बल्कि नौकरी के दौरान कर्मचारी के वेतन से जो राशि काट कर जमा की जाती है, उसी में से पेंशन दी जाती है।

इस तरह बहुत सारे कर्मचारियों को पांच सौ से लेकर दो हजार रुपए तक ही पेंशन मिल पाती है। न्यूनतम पेंशन की सीमा भी सभी जगह तय नहीं है। ऐसे में स्वाभाविक ही नौकरी के बाद बहुत सारे लोगों के सामने गुजर-बसर की मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।

नई पेंशन योजना में सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ता। कर्मचारियों के वेतन से जो पैसा कटता है, उसका पचासी प्रतिशत हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों और बाकी का पंद्रह प्रतिशत खुले बाजार यानी शेयर बाजार में निवेश कर दिया जाता है और उसी से अवकाश प्राप्ति के बाद कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान किया जाता है।

मगर कई कर्मचारियों की सेवा अवधि कम होने की वजह से यह रकम इतनी कम होती है कि उनके सामने भरण-पोषण, इलाज आदि को लेकर असुरक्षाबोध बना रहता है। कल्याणकारी सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सेवा काल के बाद भी अपने कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा का खयाल रखे। मगर नई पेंशन योजना में वह मकसद ही खत्म हो गया। इसलिए कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग करते रहे हैं। अच्छी बात है कि पांच राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना को अपना लिया है।

मगर इसके पीछे राजनीतिक गणित साधने का प्रयास अधिक दिखाई देता है। हालांकि इन राज्य सरकारों ने हिसाब लगा कर कहा है कि नई से पुरानी पेंशन योजना में लौटने पर उन्हें बहुत आर्थिक दबाव नहीं झेलना पड़ेगा। मगर वास्तविक धरातल पर इसे लागू करना फिलहाल आसान काम नहीं लगता।

दरअसल, पेंशन राज्य सरकारों का विषय है, इसीलिए जब नई पेंशन योजना लागू हुई तो पश्चिम बंगाल सरकार ने उसे नहीं अपनाया। अब जिन राज्यों ने पुरानी योजना पर लौटने का फैसला किया है, उन्होंने इसे अपना चुनावी वादा बनाया था या उनका मकसद आने वाले चुनावों में इसे भुनाने का है। मगर तकनीकी अड़चन यह है कि नई पेंशन योजना के तहत काटा गया कर्मचारियों का अंशदान प्रतिभूतियों में लगा हुआ है और करार के तहत उसे राज्य सरकारें एक साथ वापस निकाल नहीं सकतीं।

ऐसे में उन्हें पुरानी पेंशन योजना के तहत अपनी तरफ से काफी धन खर्च करना पड़ेगा। फिर, इसमें लगता नहीं कि केंद्र सरकार कोई मदद करेगी। इसलिए देखने की बात है कि राज्य सरकारें इसके लिए धन का प्रबंध कहां से और कैसे करती हैं। अगर वे इस दिशा में सफल होती हैं, तो निस्संदेह दूसरी सरकारों पर दबाव बनेगा। कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को लेकर लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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