चीनी रक्षा मंत्रालय का यह कहना इसलिए आश्चर्यजनक है कि भारत और चीन की सीमा पर स्थिति आमतौर पर स्थिर है, क्योंकि एक दिन पहले ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने चीनी समकक्ष से साफ तौर पर कहा था कि सीमा पर तनाव की स्थिति है और उससे समूचे संबंधों पर प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने चीनी रक्षा मंत्री से हाथ मिलाने से भी मना कर दिया था और उनके इस प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया था कि सीमा विवाद को परे रखते हुए संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाना चाहिए।
स्पष्ट है कि चीन सीमा विवाद को सुलझाने से न केवल इन्कार कर रहा है, बल्कि इस प्रयास में भी है कि भारत उसकी अनदेखी कर दे। यह तब है, जब भारत की ओर से पिछले एक अर्से से बार-बार यह कहा जा रहा है कि सीमा पर शांति कायम किए बिना रिश्तों में सुधार संभव नहीं है। यदि चीन इस साधारण सी बात को समझने के लिए तैयार नहीं दिख रहा तो इसका सीधा मतलब है कि उसकी नीयत में खोट है और वह अपनी ही चलाना चाहता है।
इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि सीमा पर तनाव बनाए रखकर चीन भारत के सैन्य संसाधनों पर बोझ डाल रहा है। भारत को चीन से लगती सीमा पर न केवल अतिरिक्त चौकसी बरतनी पड़ रही है, बल्कि अपने सैन्य खर्च को भी बढ़ाना पड़ रहा है।
चीन का रवैया किसी भी सूरत में मित्र देश वाला नहीं है। चीन केवल भारतीय हितों की अनदेखी ही नहीं कर रहा है, बल्कि उन्हें चोट पहुंचाने की भी कोशिश कर रहा है। वह खुद तो भारतीय हितों को लेकर बेपरवाह है, लेकिन यह चाहता है कि भारत उसके हितों के मामले में संवेदनशीलता का परिचय दे। भारत को इसे न केवल अस्वीकार करना होगा, बल्कि चीन के समक्ष प्रकट भी करना होगा। समझना कठिन है कि जब चीन कश्मीर और अरुणाचल को लेकर अवांछित टिप्पणियां करता रहता है, तब भारत तिब्बत, ताइवान और हांगकांग के विषयों पर मौन क्यों धारण किए रहता है?
अब जब यह स्पष्ट हो चुका है कि चीन अपने अड़ियल रवैये से बाज नहीं आने वाला, तब फिर भारत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह उसके प्रति अपनी रीति-नीति बदले। रीति-नीति में यह बदलाव इस तरह होना चाहिए कि चीन पर उसका असर पड़ता दिखे। इसमें संदेह है कि शंघाई सहयोग संगठन और ऐसे ही अन्य बहुपक्षीय मंचों पर चीन को कठघरे में खड़ा करने और उसे आईना दिखाने से उसकी सेहत पर कोई असर पड़ने वाला है। उसकी सेहत पर असर तब पड़ेगा, जब भारत ऐसा कुछ करेगा, जिससे उसके हित प्रभावित होंगे। भारत को इस नतीजे पर पहुंचने में देर नहीं करनी चाहिए कि चीन आसानी से सुधरने वाला नहीं है।
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