गर्मी अब सताने लगी है. कई इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है. मौसम विभाग का कहना है कि मई में गर्मी और सताएगी. मई में देश के ज्यादातर हिस्सों में तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा रहने के आसार हैं.
मौसम विभाग ने ये भी बताया है कि इस बार मई में हीटवेव वाले दिनों की संख्या में ज्यादा रहने की संभावना है.
एक प्रेस रिलीज जारी कर मौसम विभाग ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, विदर्भ, मराठवाड़ा और गुजरात में मई के महीने में 8 से 11 दिन तक हीटवेव चल सकती है. जबकि, बाकी हिस्सों में भी 5 से 7 दिन तक हीटवेव चलने की संभावना है.
ये चिंता बढ़ाने वाली बात इसलिए है, क्योंकि आमतौर पर मई के महीने में उत्तर भारत और मध्य भारत में लगभग हीटवेव वाले तीन दिन होते हैं. मौसम विभाग का कहना है कि अप्रैल में पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में 15 दिन और ओडिशा में 16 दिन हीटवेव चली है. ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
लगातार बढ़ती गर्मी
भारत में गर्मी लगातार बढ़ती जा रही है. बीते कई सालों से गर्मी के रिकॉर्ड हर साल टूटते जा रहे हैं. मौसम विभाग के मुताबिक, 1901 के बाद 2023 दूसरा सबसे गर्म साल रहा है.
2023 में देश का तापमान 0.69 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. इससे पहले 2016 में सबसे ज्यादा 0.71 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा था. चिंता वाली बात ये है कि इतिहास में अब तक पांच साल जो सबसे गर्म रहे हैं, वो बीते 14 साल में दर्ज हुए हैं.
मौसम विभाग के अनुसार, अब तक 2016, 2023, 2009, 2017 और 2010 सबसे गर्म साल रहे हैं. 2009 में 0.55 डिग्री, 2017 में 0.54 डिग्री और 2010 में 0.53 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ गया था.
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में देशभर के अलग-अलग हिस्सों में 190 दिन हीटवेव चली थी. जबकि, इससे पहले 2021 में सिर्फ 29 दिन ही हीटवेव चली थी. वहीं, मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में 166 दिन हीटवेव चली थी.
कब मानी जाती है हीटवेव?
हीटवेव कब मानी जाएगी? इसका एक पैमाना भी है. जब तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री, तटीय इलाकों में 37 डिग्री और पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री को पार कर जाता है, तो मौसम विभाग हीटवेव की घोषणा कर देता है.
इसी तरह अलग-अलग जगहों पर एक सामान्य तापमान होता है. जब किसी जगह पर सामान्य से 4.5 से लेकर 6.4 डिग्री ज्यादा रहता है तो भी हीटवेव की घोषणा कर दी जाती है.
कैसे मापते हैं तापमान?
दुनिया में दो तरह के थर्मामीटर से तापमान को मापा जाता है. पहला है 'ड्राई बल्ब' थर्मामीटर और दूसरा है 'वेट बल्ब' थर्मामीटर. ड्राई बल्ब थर्मामीटर से हवा का तापमान मापा जाता है. जबकि, वेट बल्ब थर्मामीटर से हवा की नमी या उमस को मापते हैं. हमारे लिए वेट बल्ब थर्मामीटर के नतीजे मायने रखते हैं.
हम कितनी गर्मी झेल सकते हैं?
हमारे शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. जबकि, हमारी त्वचा का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस होता है. अलग-अलग तापमान की वजह से ही पसीना आता है. जब पसीना भाप बनकर उड़ता है, तो वो शरीर के अंदर की गर्मी भी ले उड़ता है.
अब ऐसे में अगर वेट बल्ब थर्मामीटर का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक है, तब तक तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगर ये ज्यादा है तो फिर मुश्किल हो सकती है.
क्योंकि इंसानों के लिए 35 डिग्री से कम के तापमान को सामान्य समझा जाता है, लेकिन इतना या इससे ज्यादा तापमान बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है. क्योंकि 35 डिग्री या उससे ऊपर तापमान होने से हवा में नमी बहुत हो जाती है और इस कारण पसीना भाप बनकर उड़ नहीं पाता. ऐसी स्थिति में शरीर में गर्मी बढ़ने लगती है. और अगर लगातार छह घंटों तक ऐसा रहता है तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.
...पर ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए क्योंकि इंसानी शरीर 35 डिग्री तक का तापमान सह सकता है. हालांकि, ये व्यक्ति पर भी निर्भर करता है.
दरअसल, जब वेट बल्ब थर्मामीटर का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा रिकॉर्ड होता है, तो पता चलता है कि हवा में नमी बढ़ रही है. इस कारण पसीना उड़ नहीं पाता. शरीर में गर्मी बढ़ने लगती है और हीटस्ट्रोक होता है. अंग बेकार होने लगते हैं और फिर मौत हो जाती है.
हालांकि, ऐसी स्थिति अभी तक नहीं बनी, जब वेट बल्ब थर्मामीटर में छह घंटे से ज्यादा 35 डिग्री से ऊपर तापमान दर्ज किया गया हो. हालांकि, 2015 में ईरान के कुछ इलाकों में वेट बल्ब का तापमान 35 डिग्री के आसपास रिकॉर्ड हुआ था. यही वो साल था जब भारत में भी गर्मी से दो हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं. ये अब तक एक साल में हीट स्ट्रोक से हुई सबसे ज्यादा मौतें हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी बढ़ रही है. अगले कुछ दशकों में ही तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाएगा. ऐसे में 35 डिग्री वाला माहौल ज्यादा बनेगा.
आगे क्या...?
सिर्फ भारत ही नहीं, दुनियाभर में गर्मी बढ़ रही है. बढ़ती गर्मी के कारण मौतें भी बढ़ रही हैं. हर साल हजारों लोग गर्मी के कारण मारे जा रहे हैं. 2022 की गर्मियों में अकेले यूरोप में ही 62 हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या आज के मुकाबले चार गुना बढ़ जाएगी.
ऐसा इसलिए क्योंकि क्लाइमेट चेंज के कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है. मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस की क्लाइमेट चेंज पर एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2100 तक भारत का तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा.
2015 में क्लाइमेट चेंज को लेकर पेरिस में एक समझौता हुआ था. इसमें 2100 तक धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर रोकने का टारगेट तय हुआ था. हालांकि, इस समय सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देश भयंकर गर्मी से जूझ रहे हैं, जिससे 2100 तक इस टारगेट को छू पाना मुश्किल है.
2015 में वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर सारे तरीके भी अपनाए गए तो भी 2050 तक हर साल भारत का औसत तापमान 1 से 2 डिग्री तक बढ़ने का अनुमान है. वहीं, अगर कोई तरीके नहीं अपनाए गए तो हर साल 1.5 से 3 डिग्री तक तापमान बढ़ जाएगा.
जर्मनी की संस्था जर्मन वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि क्लाइमेट चेंज के मामले में भारत दुनिया का 14वां सबसे संवेदनशील देश है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत के 60 करोड़ लोग यानी लगभग आधी आबादी ऐसी जगह रहती है, जहां 2050 तक जलवायु परिवर्तन के गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं.
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