दुष्यंत चौटाला के इस स्टैंड से क्या हरियाणा में शुरू होंगे बीजेपी के बुरे दिन?

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हरियाणा में तीन निर्दलीय विधायकों ने मंगलवार को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया. कांग्रेस को समर्थन देकर इन विधायकों ने लोकसभा चुनावों के मौसम में बीजेपी की सांस ही अटका दी है. कोढ़ में खाज ये हुआ कि निर्दलीयों के समर्थन वापस लेनेके एक दिन बाद हीपूर्व उपमुख्यमंत्री और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) नेता दुष्यंत चौटाला ने बुधवार को कहा कि वह विपक्ष के नेता का समर्थन करेंगें. यानि कि भूपिंदर सिंह हुड्डा अगर राज्य सरकार को गिराने के लिए कदम उठाते हैं तो वे दुष्यंत चौटाला विधानसभा में उनके साथ खड़े होंगे. दुष्यंत के इस फैसले से बीजेपी का सीधा तो कुछ नुकसान होता नहीं दिखता पर यह तय है कि बीजेपी मुश्किल में पड़ गई दिखती है.

दुष्यंत चौटाला ने हुड्डा के पाले मेंफेंकीगेंद

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जननायक जनता पार्टी के नेता ने कहा कि एक भाजपा सभी 10 लोकसभा सीटें और करनाल उपचुनाव की एक सीट जीतने की बात कर रही है. लेकिन तीन विधायकों का समर्थन वापस लेना दिखाता है कि बीजेपी कितनी कमजोर हो गई है. मैं विपक्ष के नेता से यह भी कहना चाहूंगा कि आज संख्या के गणित के अनुसार, यदि चुनाव के दौरान इस सरकार को गिराने के लिए कोई कदम उठाया जाता है, तो मैं उन्हें (हुड्डा) बाहर से समर्थन देने पर विचार करूंगा. अब यह कांग्रेस को सोचना है कि क्या वह भाजपा सरकार को गिराने के लिए कदम उठाएगी, दुष्यंत ने कहा, हरियाणा में 25 मई को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना है.

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चौटाला कहते हैं कि तीन विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया है. मनोहर लाल खट्टर करनाल से लोकसभा उम्मीदवार हैं. रणजीत सिंह हिसार से उम्मीदवार हैं. इन लोगों ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. यह सीधा दिख रहा है कि कुलपांच विधायक विधानसभा से बाहर हो चुके हैं और भाजपा सरकार के पास साधारण बहुमत भी नहीं है. दुष्यंत ने कहा कि मैं मांग करता हूं कि मुख्यमंत्री नैतिक आधार पर इस्तीफा दें. तीनों निर्दलीयों ने अपना समर्थन वापस लेने का प्रस्ताव राज्यपाल को भेज दिया है. हम राज्यपाल से भी आग्रह करेंगे और राज्य सरकार को बहुमत साबित करने का निर्देश देने के लिए उन्हें लिखित रूप में भी भेजेंगे.

क्या अविश्वास प्रस्ताव ला सकेगी कांग्रेस?

भारतीय जनता पार्टी यह दावा कर रही है कि छह महीने के भीतर सदन में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता. क्योंकि इसी साल 13 मार्च को ही नायब सिंह सैनी की सरकार ने बहुमत साबित किया था. नियम है कि एक बहुमत साबित होने के छह महीने तक कोई विश्वास मत परीक्षण नहीं हो सकता है. यानी 13 सितंबर तक विश्वास मत परीक्षण का प्रस्ताव कोई नहीं ला सकता है.

दुष्यंत चौटाला का तर्क है कि मार्च में सदन में जो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था वह पिछली सरकार के खिलाफ था जो पिछली सरकार के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो गया था.अब, वहांएक नई सरकार है. इस प्रकार, एक नया अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. दरअसल देश के बहुत सारे नियमों और कानूनों की व्याख्या किस तरह विधानसभा अध्यक्ष या कोर्ट करती है इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है. यही इस मुद्दे के साथ भी है. चूंकि सरकार केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर बीजीपी की है इसलिए बहुत कम उम्मीद है कि दुष्यंत की इस बात पर विधानसभा राजी होगी. वैसे विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कोर्ट का भी सहारा ले सकता है.

क्या अविश्वास प्रस्ताव हार सकती है बीजेपी

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सवाल उठ रहा है कि क्या हरियाणा सरकार पर तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी से बड़ा संकट आ गया है या क्या सरकार अल्पमत में आ गई है? विधायक धर्मपाल गोंदेर (नीलोखेड़ी), रणधीर गोलान (पुंडरी) और सोमबीर सांगवान (दादरी) के समर्थन वापस लेने के साथ, 40 विधायकों वाली भाजपा 88 सदस्यीय विधानसभा में अस्थायी रूप से मौजूद है. बहुमत का आंकड़ा 45 है. अभी बीजेपी के पास 43 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, जिसमें 40 विधायक अपने और तीन अन्य विधायक हैं. बीजेपी ने जेजेपी के भी चार विधायकों कासमर्थन होने का दावा किया है. दूसरा सवाल है कि क्या तीन निर्दलीयों के समर्थन वापसी से कांग्रेस के पास सरकार बनाने का कोई मौका है? इसका फिलहाल जवाब है- नहीं- क्योंकि कांग्रेस के पास 30 विधायक हैं. तीन और जुड़े तो ये संख्या 33 हो जाती है. जेजेपी के 10 विधायक कांग्रेस के साथ जुड़ेंगे तो भी संख्या 43 ही होती है.

अब बात ये भी है कि क्या जेजेपी के सारे विधायक दुष्यंत चौटाला के साथ हैं? तो इसका उत्तर यही है कि खुद जेजेपी भी नहीं जानती उसके कितने विधायक उनके कहने पर पार्टी के समर्थन में वोट डालेंगे.अपने ही विधायकों के पार्टी छोड़ने के बारे में बात करते हुए, चौटाला ने कहा, व्हिप में बहुत शक्ति होती है. व्हिप लागू रहने तक पार्टी के सभी विधायकों को उसी के मुताबिक वोट करना होगा. हमने पहले ही उन लोगों को नोटिस जारी कर दिया है जो अन्य पार्टी कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं।' एक प्रक्रिया है. हमने अपने तीन विधायकों को नोटिस जारी किया है. तीनों में से किसी ने भी जेजेपी द्वारा जारी किए गए नोटिस का जवाब नहीं दिया है. अगर उनका जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया तो हम स्पीकर को पत्र लिखकर उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग करेंगे.

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तीन निर्दलीयों का समर्थन वापस लेने का मतलब समझिए

किसी भी सरकार का चलना और न चलना उसके पास बहुमत से ज्यादा उसके इकबाल पर निर्भर होता है. जब बीजेपी की हरियाणा और केंद्र दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है . इकके बावजूद अगर 3 निर्दलीय विधायक सरकार से समर्थन वापस लेते हैं तो इसका मतलब सीधा है कि राज्य में सरकार अब पहले जैसी लोकप्रिय नहीं रही. कहीं न कहीं इन विधायकों को ऐसा महसूस हो रहा होगा कि अब ये सरकार जाने वाली है, समय से पहले अपना ठौर-ठिकाना ढूंढ लें. समझने वाली बात यह है कि यह सब ऐसे समय हो रहा है जब देश में आम चुनाव हो रहे हैं.सीधा मतलब है कि ये विधायक ये समझते हैं कि आने वाला समय़ बीजेपी के लिए ठीक नहीं है.

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लोकसभा चुनावों पर भी होगा असर

यह सही है कि वर्तमान में दुष्यंत चौटाला खुद अपना राजनीतिक वजूद तलाश रहे हैं. पर तीन निर्दलीय विधायकों के बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेने और जेजेपी का कांग्रेस को समर्थन देने के ऐलान से प्रदेश की राजनीति पर भी असर पड़ना तय है. हरियाणा की राजनीति के एक्सपर्ट पत्रकार अजय दीप लाठर कहते हैं कि अगर हर विधायक अपने साथ 10 हजार वोट भी साथ लाता है तो बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचाने की स्थिति में होगा. जाट मतदाताओं में बीजेपी की सरकार को लेकर नाराजगी तो थी ही,अब इस तरह जब निर्दलीय और जेजेपी के लोगों को गोलबंद होते देख ध्रुवीकरण और तेज होगा. विशेषकर जाट बहुल वाली संसदीय सीटों पर बीजेपी के मुश्किल खड़ी होने वाली है. हां, यदि जाट वोटों का बीजेपी के खिलाफ ध्रुवीकरण होगा तो गैर-जाट वोटरों का बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण होना भी तय है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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