कांग्रेस में विलय होने वाली पार्टियों के बारे में शरद पवार का इशारा, लेकिन ये कौन कौन सी पार्टियां हो सकती हैं?

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महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार के पावर की मिसाल दी जाती रही है, लेकिन सूबे के दिग्गज खिलाड़ी की हालत भी अब उद्धव ठाकरे जैसी हो गई है. पहले एकनाथ शिंदे और फिर अजित पवार की बगावत के बाद दोनों नेता राजनीति के एक ही मोड़ पर पहुंच गये हैं - और दोनों ही राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.

हालत ये हो गई है कि शरद पवार अब अपने हिस्से की एनसीपी का कांग्रेस में विलय तक करने की सोचने लगे हैं. शरद पवार ने सीधे सीधे तो कांग्रेस में एनसीपी के विलय की बात नहीं की है, लेकिन काफी मजबूत संभावना जताई है. देखा जाये तो बहुत हद तक ये व्यावहारिक फैसला भी लगता है - और इस बात का संकेत खुद शरद पवार ने एक इंटरव्यू में दी है.

एक जमाने में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के नाम पर बगावत करने वाले शरद पवार, राहुल गांधी का भी मजाक उड़ाते रहे हैं - लेकिन हालात ने ऐसा मजबूर कर दिया कि, फिर से वो पुराने दौर में लौटने के बारे में सोचने लगे हैं.

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महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा है, अगर शरद पवार को अस्तित्व बचाना है तो कांग्रेस में शामिल होना होगा... उनको अपनी हार नजर आने लगी है, इसलिए 4 जून तक शरद पवार के गुट... और उद्धव ठाकरे के गुट का कांग्रेस में विलय हो जाएगा.

बारामती से सांसद सुप्रिया सुले को इस बार अजित पवार की पत्नी से चुनौती मिली है. ये झगड़ा भी सुप्रिया सुले को राजनीतिक विरासत सौंपने की कोशिश में ही हुआ है. अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह एनसीपी में भी अजित पवार चाहते थे कि शरद पवार की विरासत उनको मिले, लेकिन चाचा भतीजे की जगह सब कुछ बेटी के हवाले करना चाहते हैं.

ऐसा लगता है बारामती लोकसभा सीट को लेकर घर के झगड़े ने शरद पवार को अंदर तक झकझोर दिया है. वो अजित पवार के बगावत कर एनसीपी पर काबिज होने से तो परेशान थे ही, उनके चुनाव क्षेत्र बारामती से सुनेत्रा पवार के चुनाव लड़ने के बाद अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए नये सिरे से सोचने लगे हैं.

शरद पवार की पार्टी के कांग्रेस में विलय की कितनी संभावना है?

शरद पवार ने प्रमुख रूप से दो बातें कही है. एक, आम चुनाव के बाद कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस के करीब आएंगे - और दो, कुछ राजनीतिक दल तो कांग्रेस में विलय भी कर सकते हैं.

शरद पवार के ऐसा बोलते ही ये भी सवाल हुआ कि क्या ये बात उनके हिस्से वाली एनसीपी पर भी लागू होती है?

शरद पवार का जवाब था, 'मैं कांग्रेस और अपनी पार्टी में कोई अंतर नहीं देखता... वैचारिक रूप से हम गांधी और नेहरू की लाइन को ही मानते हैं.'

विचारधारा को लेकर शरद पवार पहले भी ऐसी बातें कर चुके हैं, और अपनी पार्टी बनाते वक्त उसमें कांग्रेस नाम शामिल करने के पीछे यही दलील दे चुके हैं. शरद पवार की बातों से ऐसा तो नहीं माना जा सकता कि वास्तव में उनकी एनसीपी का कांग्रेस में विलय होने ही जा रहा है.

हो सकता है, शरद पवार के इस राजनीतिक बयान के पीछे कोई और भी रणनीति हो, लेकिन एक मजबूत मैसेज तो वो दे ही रहे हैं. शरद पवार का कहना है, 'मैं अभी कुछ नहीं कह रहा हूं... अपने साथियों से बात किये बगैर कुछ नहीं कहना चाहिये... वैचारिक रूप से हम कांग्रेस के करीब हैं... आगे की रणनीति या कदम पर कोई भी फैसला सामूहिक रूप से ही होगा... नरेंद्र मोदी के साथ समझौता करना तो मुश्किल है.

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सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस में बगावत करने वाले शरद पवार की राहुल गांधी के बारे में भी कभी कोई अच्छे विचार नहीं रहे हैं. 2019 के आम चुनाव से पहले एक इंटरव्यू में शरद पवार से पूछा गया था कि क्या देश राहुल गांधी को नेता के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार है?

शरद पवार का जवाब था, इस संबंध में कुछ सवाल हैं, उनमें निरंतरता की कमी लगती है.

और राहुल गांधी को विपक्ष का नेता माने जाने के सवाल पर भी शरद पवार कह चुके हैं, जब ये बात आती है तो कांग्रेस नेता ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं... मैंने पहले भी यूपी के जमींदारों की एक कहानी सुनाई थी... जिनके पास बड़ी-बड़ी हवेलियां और जमीनें थीं... लैंड सीलिंग एक्ट के बाद उनकी जमीनें कम हो गईं. उनके पास हवेलियों के रखरखाव की ताकत भी नहीं बची, लेकिन रोज सुबह उठकर वो जमीनों को लेकर यही कहते कि ये सब हमारा है... कांग्रेस की मानसिकता भी कुछ ऐसी ही है... वास्तविकता को स्वीकारना होगा.

सवाल ये है कि कांग्रेस ने वास्तविकता स्वीकार कर ली है, या फिर खुद शरद पवार ने?

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कांग्रेस में किन क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का विलय संभव है?

कांग्रेस में पप्पू यादव की पार्टी के विलय का हाल तो सब लोग देख ही चुके हैं. दोनों ही के लिए सांप-छछूंदर का हाल हो गया था.

कांग्रेस नेतृत्व न लालू यादव से अपने हिस्से में पूर्णिया लोकसभा सीट मांग सका, और न ही पप्पू यादव को निर्दलीय चुनाव लड़ने से रोक सका - हद तो तब हो गई जब तेजस्वी यादव ने लोगों से साफ साफ कह दिया कि अगर आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती को वोट नहीं देना तो एनडीए कैंडिटेड को दे देना.

क्षेत्रीय दलों के कांग्रेस के करीब आने और उसके साथ विलय करने का इससे बेहतर नमूना शायद ही आगे देखने को मिले - और शरद पवार की बातों की वास्तविकता तो फिलहाल ऐसी ही नजर आ रही है.

अपनी एनसीपी के साथ साथ शरद पवार ने उद्धव ठाकरे के स्टैंड की भी बात की है. कहते हैं, 'उद्धव ठाकरे पॉजिटिव नेता हैं... हमने उनके सोचने के तरीके को समझा है... वो हमारे जैसा ही विचार रखते हैं.'

शरद पवार अपने बारे में तो सब कुछ साफ कर चुके हैं, क्या वो ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उद्धव ठाकरे भी कांग्रेस की विचारधारा को लेकर भी उनके जैसा ही सोचते हैं?

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अगर उद्धव ठाकरे वास्तव में ऐसा सोचते हैं तो उनके लिए ये समझा पाना काफी मुश्किल होगा कि वो अपने पिता और शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा के खिलाफ नहीं जा रहे हैं. ये वही बात है जिसे उद्धव ठाकरे अब तक समझा पाने में विफल रहे, और एकनाथ शिंदे ने बीजेपी की मदद से पार्टी तोड़ डाली.

अब सवाल है कि ऐसी कौन कौन पार्टियां हो सकती हैं जो एनसीपी की लाइन पर आगे बढ़ सकती हैं, और कांग्रेस में विलय के बारे में सोच सकती हैं?

ऐसी संभावना जयंत चौधरी की आरएलडी के साथ भी हो सकती थी, लेकिन वो तो बीजेपी के साथ पहले ही जा चुके हैं, लेकिन बीजेपी का साथ छोड़ चुके हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के पास अब ये ऑप्शन भी खुला है - और अगर किसी न किसी वजह से नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारी तो वो भी नई जमात का हिस्सा बन सकते हैं.

हरियाणा में चौटाला परिवार की पार्टी INLD, जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कांफ्रेंस और मुफ्ती परिवार की पीडीपी के अलावा कांग्रेस से अलग होकर बनी YSRCP भी आगे चल कर ऐसे फैसले ले सकती है - क्योंकि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूदा आंध्र प्रदेश सरकार को भी भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने लगे हैं.

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अब अगर शरद पवार के हिसाब से कांग्रेस के करीब आने वाली पार्टियों पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी, आरजेडी, जेएमएम और डीएमके तो पहले से ही कांग्रेस के साथ हैं, हो सकता है चुनाव बाद ये करीबी और भी मजबूत हो जाये - लेकिन अगर चुनाव नतीजे बीजेपी के पक्ष में आ गये तो!

क्या विपक्षी खेमे में यूपीए-3 की तैयारी चल रही है?

क्या बीस साल बाद देश की राजनीति करवट बदल रही है? शरद पवार के राजनीतिक बयान के पीछे जो भी रणनीति हो, सही तस्वीर तो तभी सामने आएगी जब लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ जाएंगे.

2004 के लोकसभा चुनावों के बाद देश में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए का गठन हुआ था. 2009 में सत्ता में वापसी के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए 2 की सरकार बनी और पांच साल चली भी - शरद पवार अब यूपीए 3 की तरफ इशारा कर रहे हैं.

तीसरे मोर्चे की तैयारी तो कई साल से चुनावों से पहले होती रही है, लेकिन इस बार बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने के लिए एक ही मोर्चा बनाने पर जोर था - और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों से INDIA गठबंधन अस्तित्व में भी आ सका, लेकिन उसके ठीक से खड़ा होने से पहले ही वो एनडीए में चले गये.

इंडिया गठबंधन के बैनर तले कई राज्यों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग करके लोकसभा चुनाव भी लड़ रहे हैं. ये प्रयोग महाराष्ट्र में भी हो रहा है, और यूपी बिहार के अलावा भी कई राज्यों में हो रहा है, जिसमें दिल्ली भी शामिल है. दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है, लेकिन पंजाब में दोनों अकेले चुनाव लड़ रहे हैं.

पश्चिम बंगाल का मामला तो कुछ ऐसा लग रहा है जिसमें चुनाव बाद कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के करीब आने की संभावना लग रही है. कांग्रेस नेतृत्व तो पहले भी ममता बनर्जी के प्रति नरम रुख अपनाये हुए था, अब तो टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने गठबंधन न होने देने की तोहमत अधीर रंजन चौधरी पर मढ़ डाली है.

रामलीला मैदान की रैली में टीएमसी की तरफ से तो यही कहा गया था कि वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा है. अगर ऐसा है चुनाव बाद दोनों के साथ आने की पूरी संभावना बनती है - और शरद पवार भी तो यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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