विदेश से लौटे MBBS छात्र अब करेंगे दो साल इंटर्नश‍िप! जानिए- इस नये नियम पर क्या बोले छात्र और एक्सपर्ट

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विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए बड़ी खबर है. विदेश से एमबीबीएस करने के बाद भारत लौटे छात्रों कोपरीक्षा पास करने के बाद अब एक नहीं दोसाल की ट्रेनिंग करनी होगी, जिसके बाद ही उन्हें डॉक्टर का दर्जा मिलेगा.नेशनल मेडिकल कमीशन के इस फैसले पर विदेश में पढा़ई कर रहे छात्र काफी नाराज हैं.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने विदेशी चिकित्सा स्नातकों (FMG) के लिए इंटर्नशिप के संचालन को लेकर हाल ही में एक जरूरी नोटिस जारी किया है, जिसका सीधा असर विदेश में फिलहाल मेडिकल की पढ़ाई करे रहे छात्रों पर या पढ़ाई करने का सोच रहे कैंडिडेट्स पर पड़ेगा. आधिकारिक नोटिस के अनुसार, आयोग ने घोषणा की है कि ऑनलाइन थ्योरी कक्षाओं के स्थान पर ऑफ़लाइन प्रैक्टिकल और क्लिनिकल ट्रेनिंग की पुष्टि करने वाले प्रमाणपत्रों को अब मान्यता नहीं दी जाएगी. जिन कैंडिडेट्स ने ऑनलाइन पढ़ाई की है उन्हेंभारत आकर पहले Foreign Medical Graduate examination (FMGE) एग्जाम देना होगा. इसके बाद इंटर्नशिप करनी होगी.

विदेश में पढ़ रहे छात्र ने कही ये बात

इस फैसले पर छात्रों का कहना है कि यह विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों के साथ ठीक नहीं है. इससे उनका समय व्यर्थ होगा. विदेश में पढ़ाई कर रहे एक मेडिकल के छात्र ने कहा कि मान लीजिए भारत में 12वीं के बाद स्टूडेंट नीट एग्जाम देने का सोच रहा है और फिर उसमें वह मेरिट में नहीं पाता. इसके बाद वह विदेश पढा़ई करने जाता है. वहां, 5 साल पढ़ाई करने के बाद वह भारत लौटता है और फिर Foreign Medical Graduate examination (FMGE) की तैयारी में थोड़ा वक्त देता है.

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मेडिकल छात्र ने आगे कहा कि ये एग्जाम निकालने के बाद वह 2 साल की इंटर्नशिप करेगा फिर कहीं जाकर डॉक्टर बनेगा. इसमें कैंडिडेट को करीबन 10 साल लग जाएंगे. इससे बच्चों का समय व्यर्थ होगा. छात्र का कहना है कि यह फैसला शायद इसलिए लिया गया है ताकि अगर नीट क्लियर ना हो पाए तो विदेश में पढ़ाई करने के बजाय कैंडिडेट भारत के प्राइवेट कॉलेजों में महंगी फीस देकर पढ़ाई करें क्योंकि भारत के मुकाबले कुछ देशों में मेडिकल की पढ़ाई थोड़ी सस्ती है.

एक्सपर्ट ने बताया ये कारण

एजुकेशन एडवाइजर रवि कुमार कौल ने इस मामले में swarnimbharatnews.com से बातचीत की है. कई छात्रों का कहना है कि विदेश से पढ़ाई करने के बाद आकर परीक्षा के तैयारी के लिए समय लग जाएगा. इसको लेकर रवि कौल ने कहा कि अगर आप किसी यूनिवर्सिटी में इतने साल मेडिकल की पढा़ई करके आ रहे हैं तो आपको एग्जाम की तैयारी करने के लिए सालों तक पढ़ाई करने की क्या जरूरत है. वहीं, इंटर्नशिप वाली बात पर एक्सपर्ट ने कहा किइंटर्नशिप छात्रों के लिए चिंता का विषय नहीं होनी चाहिए बल्कि प्रैक्टिकल की चिंता होनी चाहिए. इंटर्नशिप की जगह प्रैक्टिकल पर विशेष ध्यान देना चाहिए. अगर स्टूडेंट हॉस्पिटल में आकर प्रैक्टिकल नहीं करेगा तो डॉक्टर कैसे बनेगा क्योंकि प्रैक्टिकल और इंटनर्शिप में जमीन आसमान का अंतर है.

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यह डॉक्टरों की आकांक्षा रखने वाले छात्रों के खिलाफ़ पूरी तरह से गलत फैसला है. यह उन छात्रों के लिए स्पष्ट रूप से सज़ा है जिन्होंने ईमानदारी से और ऑफ़लाइन तरीके से अपनी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पूरी की है.एनएमसी को उन लोगों की पहचान करनी चाहिए जिनके पास व्यावहारिक प्रशिक्षण के नकली प्रमाण पत्र हैं, कम से कम उन लोगों को अनुमति दें जो ऑफ़लाइन कक्षाओं में गए हैं.ईमानदार और योग्य छात्रों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में उचित विचार किए बिना अधिसूचना जारी करना गलत है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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