मणिपुर हिंसा रोकने में फेल हो गए मोदी-शाह? भागवत के बयान के क्या हैं मायने, जातीय संघर्ष के पीछे प्रेशर कुकर थ्योरी तो नहीं

नई दिल्ली: हाल ही में मणिपुर के जिरीबाम जिले में एक बुजुर्ग की हत्या के बाद भड़की हिंसा में एक समुदाय के 70 से अधिक घर जला दिए गए। उग्रवादियों ने दो पुलिस चौकियों में भी आग लगा दी। मणिपुर में मई 2023 से जातीय हिंसा जारी है। यहां मैतेई और पहाड़ी

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नई दिल्ली: हाल ही में मणिपुर के जिरीबाम जिले में एक बुजुर्ग की हत्या के बाद भड़की हिंसा में एक समुदाय के 70 से अधिक घर जला दिए गए। उग्रवादियों ने दो पुलिस चौकियों में भी आग लगा दी। मणिपुर में मई 2023 से जातीय हिंसा जारी है। यहां मैतेई और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी के बीच जातीय संघर्ष में 200 से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी है। मैतेई, मुस्लिम, नागा, कुकी और गैर-मणिपुरी समेत विविध जातीय संरचना वाला जिरिबाम अब तक जातीय संघर्ष से अछूता रहा था। अब नरेंद्र मोदी के तीसरी बार शपथ ग्रहण के ठीक बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा है कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर एक साल से हिंसा की आग में जल रहा है। मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए। आज यह समझेंगे कि जंग या जातीय संघर्षों के दौरान दूसरे समुदाय की महिलाओं, बच्चों या बुजुर्गों पर ऐसे जुल्म क्यों ढाए जाते हैं।


मणिपुर हिंसा में अब तक 67 हजार लोग हुए बेघर

जेनेवा के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (IDMC) की जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दक्षिण एशिया में 69 हजार लोग विस्थापित हुए। इनमें से 97 फीसदी यानी 67 हजार लोग वो थे, जिन्हें मणिपुर में हिंसा की वजह से अपना घर-बार सब कुछ छोड़ना पड़ा। भारत में साल 2018 के बाद हिंसा के कारण पहली बार इतनी बड़ी संख्या में विस्थापन देखने को मिला। मार्च, 2023 में मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति (ST) में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिशें भेजने के लिए कहा था। इसके बाद कुकी समुदाय ने राज्य के पहाड़ी जिलों में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
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दूसरे समुदाय को नष्ट करने के पीछे काम करती हैं 4 थ्योरी

दक्षिण एशिया यूनिवर्सिटी (सार्क यूनिवर्सिटी) में प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, अमेरिकी रणनीतिकार और लेखक जोनाथन गॉटशैल ने अपनी किताब ‘एक्सप्लेनिंग वॉरटाइम रेप: द जर्नल ऑफ सेक्स रिसर्च’ और सुजैन ब्राउनमिलर ने अपनी किताब ‘अगेंस्ट अवर विल’ में इन चारों थ्योरी का जिक्र किया है। इन सभी थ्योरी का जिक्र न्यूयॉर्क में यूनियन कॉलेज में प्रोफेसर सोनिया टाईमैन की स्टडी से ली गई हैं। इनमें कहा गया है कि जातीय संघर्षों, युद्ध या सांप्रदायिक दंगों में पुरुषों की हत्या करने और महिलाओं से रेप करने या उन्हें गुलाम बनाने के पीछे 4 सिद्धांत काम करते हैं। जिन्हें प्रेशर कुकर थ्योरी, कल्चरल पैथोलॉजी थ्योरी, सिस्टमेटिक या स्ट्रैटेजिक रेप थ्योरी और फेमिनिस्ट थ्योरी कहा जाता है। इन चारों थ्योरी को एक-एक करके समझते हैं।


प्रेशर कुकर थ्योरी: कुंठा में दूसरी महिलाओं पर हमले

जोनाथन बताते हैं कि किसी भी युद्ध, गृहयुद्ध या जातीय संघर्षों के दौरान लोग हमेशा डर, तनाव और स्थिति में बदलाव चाहते हैं और उसमें सुधार की उम्मीद पाले रहते हैं। ये भावनाएं एक समुदाय के गुस्से को भड़काती हैं और इसमें जो उन्हें सबसे कमजोर दिखता है, जैसे कि महिला, बच्चे या बुजुर्ग, उनको अपना निशाना बनाते हैं। प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, मणिपुर में भी यही हो रहा है। एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय की महिला की हत्या कर या उसका रेप करके खुद को ताकतवर पुरुष होना जायज ठहराते हैं।

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स्ट्रैटिजिक रेप थ्योरी: दुश्मन को नीचा दिखाने के लिए रेप

प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, यूगोस्लावियाई युद्ध, रवांडा में सामूहिक रेप हों या मणिपुर की घटनाएं सब जगह रेप को एक हथियार की तरह लिया गया। सैनिकों द्वारा या दूसरे समूह द्वारा रेप करना बाकायदा एक प्लान का हिस्सा होता है और ऐसी लड़ाइयों में एक हथियार। अपनी किताब ‘अगेंस्ट अवर विल’ में सुजैन ब्राउनमिलर कहती हैं कि दूसरों पर विजय हासिल करने की भावना आदमी को रेप करने के लिए उकसाती है। ऐसे दिनों में उसकी मानसिकता सबसे ज्यादा उभरकर सामने आती है। वहीं, मैनुवर्स की लेखिका सिंथिया एनलोए कहती हैं कि रेप लड़ाइयों के दौरान का सबसे जहरीला और खतरनाक हथियार है। इसके पीछे ज्यादातर राजनीतिक दिमाग होता है।

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फेमिनिस्ट थ्योरी: महिलाओं से नफरत के चलते रेप

यह थ्योरी पुरुषों के वर्चस्व की बात करती है। जिसमें रेप चाहे युद्धों के दौरान हो या फिर शांतिकाल के दौरान, यह हमेशा से महिलाओं पर हावी होने की पुरुष की इच्छा से प्रेरित होता है। दरअसल, जो व्यक्ति रेप करता है, वह महिलाओं से नफरत करता है। वह महिला के जेंडर को नजरअंदाज करते हुए उस पर भरोसा नहीं करता और वह उस पर हावी होना चाहता है। प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि रेप से आदमी अपनी उस ताकत को दिखाना चाहता है, जिसके पीछे महिला को दबाने और उस पर हावी होने की बरसों से दबी कुंठा होती है।

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कल्चरल पैथोलॉजी थ्योरी: महिलाओं को कमतर समझना

किताब में कहा गया है कि कल्चरल पैथोलॉजी थ्योरी के अनुसार, अगर महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना नहीं होगी तो दूसरी संस्कृतियों या समुदायों के प्रति उदार रवैया भी नहीं होगा। यहां जातीय श्रेष्ठता की भावना ज्यादा हावी होगी। यानी अपने कल्चर को अच्छा बताने, दूसरे के कल्चर को नीचा दिखाने की कोशिश करना। ऐसी सोसाइटी में जातीय संघर्ष के दौरान रेप की मानसिकता ज्यादा होती है। क्रिस्टीना लैंब की एक किताब ‘अवर बॉडीज, देयर बैटलफील्ड्स: वॉर थ्रू द लाइव्स ऑफ वुमन’ में महिलाओं के रेप के पीछे सोसाइटी के ढांचे को जिम्मेदार ठहराया गया है।

मणिपुर में महिलाओं पर जुल्मोसितम के पीछे चारों सिद्धांत

मणिपुर में महिलाओं से रेप की खबरें, हत्या की खबरें आम हो चुकी हैं। प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई ज्यादती की वजहें हमें चारों सिद्धांतों में मिलती है। मणिपुर का समाज इस समस्या की वजह से लंबे समय से अशांत रहा है, जिसने प्रेशर कुकर जैसी स्थिति बनाई है। संघर्ष के चरम स्थिति में पहुंचने पर इसमें स्ट्रैटिजिक रेप जैसी घटनाएं देखी गईं। इस सिद्धांत के उदाहरण पूरी दुनिया में देखने को मिलते हैं।

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चीन में बनाए जाते कंफर्ट स्टेशन और महिलाओं को बनाया गुलाम

स्ट्रैटेजिक रेप थ्योरी को सबसे ज्यादा जापानियों ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अपनाया था। मास रेप जापान की इंपीरियल आर्मी का सबसे फेवरेट तरीका था। जिसे वो कंफर्ट वुमन सिस्टम भी कहते है। हालांकि, जापान सरकार इन आरोपों से हमेशा इनकार करती रही है, मगर, 1990 के दशक से इन कंफर्ट वुमन यानी सेक्स स्लेव की दर्दनाक कहानियां दुनिया के सामने आईं तो लोगों ने जापानियों के अत्याचारों के बारे में जाना। बाद में इसी को चीन ने भी अपनाया, जहां कंफर्ट स्टेशन होते। इन कंफर्ट स्टेशनों में चीन के सैनिक आराम फरमाते और पकड़ी गई महिलाओं से रेप करते। नानजिंग में तो बर्बरता के साथ महिलाओं को सेक्स गुलाम बनाया गया।

जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा-यह संविधान का सबसे घृणित अपमान

बीते साल 20 जुलाई को पीएम नरेंद्र मोदी को मणिपुर मामले पर कहना पड़ा कि-मणिपुर की घटना किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली है। देश की बेइज्जती हो रही है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जातीय संघर्ष के दौरान महिलाओं का हथियार की तरह इस्तेमाल को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह संविधान का सबसे घृणित अपमान है।

भागवत के मणिपुर हिंसा पर बयान के क्या हैं मायने

प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि मणिपुर में मैतेई समुदाय की ज्यादातर आबादी हिंदू है। वहां पर भाजपा सत्ता में है। मगर, पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए आरएसएस बरसों से वहां जी-तोड़ कोशिश कर रहा है, क्योंकि ज्यादातर जनजातीय समूहों पर ईसाई धर्म का वर्चस्व है। इसके अलावा, पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों तक अपना प्रभाव बढ़ाने और त्रिपुरा जैसे पड़ोसी राज्यों से होने वाली बांग्लादेशी घुसपैठ को रोकने के लिहाज से भी यह राज्य अहम है।

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राजनीतिक रूप से ताकतवर मैतेई, कुकी कमजोर

मणिपुर के 10 प्रतिशत जमीन पर गैर-जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा है। मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फीसदी से भी ज्यादा है। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक इसी समुदाय से हैं। वहीं, 90 प्रतिशत पहाड़ी भौगोलिक क्षेत्र में प्रदेश की 35 फीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। हालांकि, इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुंचते हैं। मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिंदू है और बाकी मुस्लिम है। जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं।

मैतेई के खिलाफ क्यों हैं बाकी जनजातियां

मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है। इसके अलावा ये पढ़ने-लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं। यहां के जनजाति समूहों को लगता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे और वे पहाड़ों पर भी जमीन खरीदना शुरू कर देंगे। ऐसे में वे और हाशिए पर चले जाएंगे। इसीलिए मैतेयी को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने के प्रस्ताव का कुकी जनजातियों द्वारा विरोध किया जा रहा है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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