गाजीपुर हो या बंधवारी... शहर के बीचोबीच गैस चैंबर बना रहे हैं कचरे के पहाड़, इसलिए नहीं बुझ रही आग

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पहले गाजीपुर के कचरे का पहाड़ धधका. अब गुरुग्राम के बंधवारी लैंडफिल साइट सुलगने लगी है. दोनों कचरे के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं. अक्सर इन पहाड़ों के ऊपर गिद्ध, चील और कौवें मंडराते रहते हैं. ताकि उन्हें खाना मिल जाए. लेकिन इन जीवों को नहीं पता होता कि यहां से निकलने वाली जहरीली गैस सभी के लिए खतरनाक है.

गाजीपुर का कचरे का पहाड़ 21 अप्रैल 2024 से सुलग रहा है. लगातार जानलेवा गैस रिलीज कर रहा है. आसपास के लोगों की सेहत खतरे में है. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी. पारा ऊपर चढ़ेगा. इन जहरीले पहाड़ों से आग लगने की खबरें, जहरीली गैसों के रिलीज होने और इनकी वजह से लोगों को बीमारियों की खबरें आती रहेंगी.

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हाल ही में एक नई स्टडी में यह खुलासा हुआ था कि ऐसे कचरा डंप से भारी मात्रा में मीथेन गैस निकलती है. यह सूरज से आने वाली गर्मी को वायुमंडल में रोकती है. इससे आपके शहर का तापमान बढ़ता है. स्थानीय स्तर पर पारा ऊपर चढ़ जाता है. आग बुझने का चांस भी कम होता है. क्योंकि कचरे के पहाड़ पर ज्वलनशील पदार्थों की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इसलिए कितना भी प्रयास कर लें. मीथेन गैस और ज्वलनशील पदार्थ आग को बढ़ाते हैं.

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कचरे के पहाड़ की बीच की लेयर खतरनाक

गर्मी जैसे-जैसे बढ़ेगी अचानक से कंबश्चन यानी आग लगने की आशंका बढ़ती चली जाएगी. साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में छपी स्टडी के मुताबिक कचरे के पहाड़ के बीच की जो लेयर होती हैं. उसमें फंसी जहरीली गैसें आग को रुकने या बुझने नहीं देती. ये गैस पहाड़ के अंदर से बाहर की ओर निकलने का प्रयास करती हैं. अगर ऊपर की सतह पर आग लगी हो तो ये ईंधन का काम करती हैं.

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गाजीपुर के कचरे के पहाड़ की तीन जोन, तीनों का अलग तापमान

गाजीपुर के कचरे के पहाड़ को तीन जोन में बांटा गया है. पहला है जोन-1 यानी 30 मीटर की गहराई तक. यहां पर तापमान 30 से 50 डिग्री सेल्सियस रहता है. इसके बाद आता है जोन-2 जहां गहराई 30 से 50 मीटर के बीच होती है. यहां तापमान 60 से 70 डिग्री सेल्सियस होता है. अगर गहराई 60 मीटर या उससे ज्यादा होती है, तो इसे जोन-3 में रखते हैं. लेकिन यहां पर तापमान कम होता है. ये 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है.

कितना तापमान खतरनाक हो जाता है कचरे के पहाड़ के लिए

आमतौर पर कचरे के पहाड़ पर कचरे के गलने की प्रक्रिया 35-40 डिग्री सेल्सियस पर होता है. या फिर 50 से 60 डिग्री सेल्सियस पर. क्योंकि ये काम दो तरह के बैक्टीरिया करते हैं. ये गाजीपुर के कचरे के पहाड़ की स्थिति है. गाजीपुर अधिक तापमान वाला कचरे का पहाड़ है. इस पहाड़ की तीन कैटेगरी है.

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ज्वलनशील पदार्थों को करना होगा अलग-अलग

इसके लिए सरकार और कचरे के पहाड़ को मैनेज करने वाली संस्था को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब भी इस तरह कचरे के पहाड़ बनने शुरू हो, तभी अंदर की लेयर्स को ज्वलनशील पदार्थों से न भरे. बल्कि उन्हें अलग-अलग रखा जाए. ऐसे में कचरे के पहाड़ के बजाय छोटे-छोटे टीले बनेंगे, जिन्हें साफ करना आसान होगा. साथ ही उन्हें मैनेज करना आसान होगा. आग नहीं लगेगी. लगेगी भी तो सिर्फ किसी एक छोटे टीले पर.

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ज्यादा ऊंचाई वाले पहाड़ों पर आग की आशंका ज्यादा

जब म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट के डंपसाइट की ऊंचाई गाजीपुर या बंधवारी जैसी ऊंचाई हासिल करते हैं, तो उनका तापमान भी बढ़ता है. इनका खुद का तापमान शहर के तापमान से कई डिग्री सेल्सियस ज्यादा होता है. इसलिए आग लगने की आशंका बढ़ जाती है. जब भी कचरा डिकंपोज होता है, तब वह हीट पैदा करता है.

जब गर्मी में पारा ऊपर चढ़ता है, तब कचरे के पहाड़ के अंदर तेजी से अलग-अलग तरह के केमिकल रिएक्शन होते हैं. ये रिएक्शन कचरे के पहाड़ पर आग लगा देते हैं. या किसी ने लगा दी हो तो उसे बुझने नहीं देते. ये बात तो संयुक्त राष्ट्र की एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी भी मानती है.

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कचरे के पहाड़ पर मौजूद पदार्थ बढ़ाते हैं आग

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अगर ज्यादा ऊंचे पहाड़ होंगे तो उनके अंदर कई तरह के केमिकल रिएक्शन होंगे. ये रिएक्शन कचरे के डिंकपोज होने की वजह से होते हैं. इससे कई तरह की गैस बनेंगी. खतरनाक बद्बू आएगी. पहाड़ से कचरे पिघलकर नीचे गिरेंगे. अगर आसपास रिहायशी इलाका है तो उसे भी खतरा रहेगा. इंसानों और जीवों की सेहत पर असर पड़ेगा.

कचरे के पहाड़ पर कागज, मल-मूत्र, प्लास्टिक, ग्लास, धातु, बेकार खाना, कपड़े, लकड़ी समेत न जाने क्या-क्या पड़ा होता है. जिनके जलने की आशंका बहुत ज्यादा होती है. बढ़ता तापमान तो आग लगाता है. लेकिन ये पदार्थ और उनके डिकंपोज होने से पैदा होने वाली गैस आग के लिए ईंधन का काम करती हैं.

कचरे के पहाड़ से क्या-क्या निकलता है, जो खतरनाक है

हर कचरे के पहाड़ से जब जैविक डिकंपोजिशन होता है. यानी बायोलॉजिकल डिकंपोजिशन तब वहां से भारी मात्रा में गैस निकलती है, गर्मी निकलती है. इसके अलावा लीचाटे (Leachate) निकलता है. लीचाटे जहरीला और ज्वलनशील हो सकता है. यह आसपास के जलस्रोतों को प्रदूषित कर देता है. इसमें भारी मात्रा में अल्कालाइन पाया जाता है. इसमें कंडक्टिव वैल्यू होती है. साथ ही नमक की मात्रा ज्यादा होती है. यानी कचरे के पहाड़ के आसपास के रिहायशी इलाकों में पीने का पानी प्रदूषित हो जाता है.

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कचरे के ढेर से निकलने वाली मीथेन भी खतरनाक

कचरे के ढेर से निकलने वाली मीथेन गैस आसमान में एक अदृश्य लेयर बना देती है, जिससे सूरज की गर्मी वायुमंडल से बाहर नहीं निकलती. इसकी वजह से गर्मी बढ़ जाती है. मीथेन वायुमंडल में कम समय के लिए ही रुकता है, लेकिन कार्बन डाईऑक्साइड से 80 गुना ज्यादा गर्मी रोकता है. इतनी गर्मी रोकने CO2 को 20 साल लग जाते.

एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी का मानना है कि इन कचरा डंप पर काम करने वाले लोगों को मीथेन से शारीरिक दिक्कतें हो रही हैं. कचरा डंप में पड़े जैविक पदार्थ जैसे खाने का कचरा. ये भारी मात्रा में मीथेन निकालते हैं. इससे कचरा डंप के चारों तरफ ऑक्सीजन की मात्रा कमी हो जाती है. कचरा डंप के अंदर मीथेन जमा रहती है, जिससे आग लगने का खतरा बढ़ा रहता है. ये आग जल्दी बुझती नहीं है. कई बार तो कई-कई दिनों तक जलती रहती है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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