रामपुर में आजम खान की जिद के आगे नहीं झुके अखिलेश, कन्नौज में दबाव में कैसे आ गए?

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समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव कन्नौज सीट से चुनाव मैदान में उतरेंगे, अब यह तय हो चुका है. अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से सपा उम्मीदवार के रूप मेंनामांकन भी कर दिया है. नॉमिनेशन से एक दिन पहले अखिलेश यादव ने सैफई में सपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक मेंकहा था कि चुनाव नहीं लड़ना चाहता था, तेज प्रताप को लड़ाना चाहता था लेकिन कन्नौज में पार्टी कार्यकर्ताओं का बहुत दबाव था और उन्हें मना नहीं कर पाया.

नॉमिनेशन से पहलेअखिलेश यादव ने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट कर कहा,"सुगंध की नगरी सकारात्मक राजनीति के जवाब के रूप में, नकारात्मक राजनीति करने वाली बीजेपी को जिस तरह की पराजय की ओर ले जा रही है, इतिहास में उसे ‘कन्नौज-क्रांति’ के नाम से जाना जाएगा. जनतंत्र में जनता की मांग ही सर्वोपरि होती है. कन्नौज के हर गांव-गली-गलियारे से जो आवाज उठ रही है, सपा और इंडिया गठबंधन के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की भी पुरजोर मांग है, वह सिर-आंखों पर."

जाहिर है, अखिलेश का इशारा नेताओं और कार्यकर्ताओं की उसी मांग की ओर है जिसमें वह सपा प्रमुख के खुद चुनाव लड़ने की मांग कर रहे थे. ऐसे में चर्चा रामपुर की भी होने लगी है. सपा के दिग्गज आजम खान चाहते थे अखिलेश रामपुर से चुनाव लड़ें. आजम ने अखिलेश के सामने यह प्रस्ताव रख भी दिया था लेकिन सपा प्रमुख इसके लिए तैयार नहीं हुए.

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आजम की जिद के आगे अखिलेश नहीं झुके तो सपा की जिला यूनिट के कई नेताओं, आजम खेमा पार्टीप्रत्याशी के विरोध में खुलकर उतर आया. अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि रामपुर में आजम की जिद के आगे नहीं झुके लेकिन अखिलेश कन्नौज के कार्यकर्ताओं के दबाव में कैसे आ गए?

रामपुर में आजम ने की थी अखिलेश के लड़ने की जिद

अखिलेश यादव 22 मार्च को आजम खान से मिलने सीतापुर जेल पहुंचे थे. जेल में हुई इस मुलाकात के बाद इस तरह की खबरें आईं कि आजम ने अखिलेश से खुद रामपुर सीट से चुनाव लड़ने की अपील की है. आजम की एक भावुक अपील वाली चिट्ठी भी सामने आई थी जिसमें अखिलेश यादव से रामपुर को भी उसी तरह से देखने की अपील की गई थी जिस तरह से वह सैफई परिवार के गढ़ कन्नौज, मैनपुरी और इटावा को देखते हैं.

सपा की रामपुर जिला यूनिट ने भी अखिलेश से इस सीट से चुनाव लड़ने की अपील की थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सपा की जिला यूनिट ने चुनाव बहिष्कार, बसपा उम्मीदवार के समर्थन का ऐलान कर दिया लेकिन आजम की जिद के आगे अखिलेश नहीं झुके.

सपा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है कन्नौज सीट?

कन्नौज सीट 1998 से 2019 तक यह सीट सपा के कब्जे में रही. यह सीट पार्टी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुलायम परिवार के किसी सदस्य के लिए मैनपुरी के बाहर किसी सीट की जरूरत पड़ी तो कन्नौज का नंबर पहला रहा. 1999 में जब मुलायम को किसी दूसरी सीट से लड़ने की जरूरत महसूस हुई तो वह खुद भी कन्नौज से ही लड़े.

मुलायम ने हालांकि यह सीट छोड़ दी थी. मुलायम के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट से उपचुनाव में उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को उतार दिया. अखिलेश ने जब यूपी का सीएम बनने के बाद यह सीट छोड़ी तो यहां से उपचुनाव में अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतार दिया. 2012 से 2019 तक डिंपल यादव इस सीट का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करती रहीं.

कन्नौज में कैसे दबाव में आ गए अखिलेश?

कन्नौज में अखिलेश लोकल नेताओं और कार्यकर्ताओं की मांग को देखते हुए दबाव में आ गए तो एक वजह इस सीट से मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार का नाता भी है. कन्नौज सीट अखिलेश यादव और सैफई परिवार के लिए कितना महत्व रखती है, इसे अप्रैल महीने की शुरुआत में सपा प्रमुख की कन्नौज रैली से भी समझा जा सकता है.

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अखिलेश ने अपने संबोधन में डॉक्टर लोहिया से मुलायम सिंह यादव और खुद के सांसद होने का जिक्र किया था और कहा था कि कन्नौज मेरा घर है, इसे नहीं छोड़ सकता. अखिलेश जिसे घर बता रहे हैं, वहां 2019 में बीजेपी जीत गई थी. सपा के लोकल नेता और कार्यकर्ता तेज प्रताप की उम्मीदवारी के बाद खुलकर इसके विरोध में आ गए और अखिलेश से मुलाकात कर जमीनी फीडबैक से अवगत कराने के साथ ही यह भी साफ कहा कि अगर यह सीट कोई उम्मीदवार जीतकर अगर फिर से सपा की झोली में डाल सकता है तो ऐसा खुद वही कर सकते हैं.

कन्नौज पर नजर, आसपास की सीटों पर निशाना

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कन्नौज के साथ ही इटावा जैसी सीटें भी कभी सपा का गढ़ रही हैं. 2014 के आम चुनाव से इटावा सीट पर बीजेपी का काबिज है. अब अखिलेश यादव अगर कन्नौज सीट से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तो उसके पीछे इटावा और आसपास की सीटों पर भी साइकिल दौड़ने की संभावनाएं मजबूत करने की रणनीति है.

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कन्नौज से इटावा, अकबरपुर, मिश्रिख, मैनपुरी और फर्रुखाबाद जैसी सीटें सटी हुई हैं. जब भी कोई बड़ा नेता किसी सीट से चुनाव मैदान में उतरता है तो इसका एक संदेश आसपास की सीटों पर भी जाता है. सपा की रणनीति यही है कि कन्नौज से एक संदेश जाए और पार्टी इटावा जैसे गढ़ जो गंवा चुकी है, उन्हें वापस पा सके.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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