पिछड़ों के नाम पर दादी-पिता को कठघरे में खड़ा करने वाले राहुल गांधी भोले हैं या चतुर खिलाड़ी?

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राहुल गांधी इन दिनों जिस तरह केबयानदेरहे हैं उससे यही लगता है कि वो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर हमलावर हो गए हैं. वो बार-बार यह कहते रहे हैं कि देश के 90 प्रतिशत लोगों के हितों के लिए जो फैसले लिए जाते हैं उनमें एक से दोपरसेंट भी उन 90 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं होता है. हद तोतब हो गई जब दलितऔर पिछड़ी जातियों के अधिकार की बातें करते हुए उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी और यूपीए 1 और 2 की सरकार में प्राइम मिनिस्टर रहे मनमोहन सिंह को भी कठघरे में खड़ा कर दिया.

पंचकूला में एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुएराहुल गांधीने कहा: मैं जन्म से ही सिस्टम के अंदर बैठा हूं. मैं सिस्टम को अंदर से समझता हूं. आप सिस्टम को मुझसे छुपा नहीं सकते. यह कैसे काम करता है, यह किसका पक्ष लेता है, यह कैसे उपकार करता है, यह किसकी रक्षा करता है, किस पर हमला करता है, मैं सब कुछ जानता हूं, मैं इसे देख सकता हूं क्योंकि मैं इसके अंदर से आया हूं. प्रधानमंत्री के घर पर, जब मेरी दादी (इंदिरा गांधी) पीएम थीं, पापा (राजीव गांधी) वहां थे, मनमोहन सिंह जी वहां थे, मैं जाता था... मैं सिस्टम को अंदर से जानता हूं. और मैं आपको बता रहा हूं, व्यवस्था हर स्तर पर भयानक तरीके से निचली जातियों के खिलाफ खड़ी है. कारपोरेट तंत्र, मीडिया तंत्र, नौकरशाही, न्यायपालिका, शिक्षा तंत्र, सेना, जहां देखो, वहां 90 प्रतिशत की भागीदारी नहीं है. और योग्यता को लेकर बहस छिड़ जाती है. यह कैसे संभव है कि 90 प्रतिशत में योग्यता न हो? यह संभव ही नहीं है. सिस्टम में जरूर कुछ खामी होगी.

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अपने परिवार, अपनी पार्टी के बनाए सिस्टम को खारिज करने की बात करने वाले राहुल का यह रूप क्या कांग्रेस के लिए फायदेमंद है? क्या ऐसे भाषण देकर वो अपनी पार्टी, अपने पूर्वजों पर सवाल खड़ाकर अपना नुकसान नहीं कर रहे हैं? या सबकुछ किसी रणनीति के तहत कर रहे हैं. कुछ भी हो सकता है . देखना है कि अगर राहुल गांधी किसी रणनीति के तहत कर रहे हैं तो उनकी चतुर चाल को कितना फायदा मिलेगा.

1-राहुल ने अभी कुछ दिन पहले माना था कि कांग्रेस ने गलतियां की हैं और सुधार की भी बात की थी

पिछड़ों, गरीबों और कमजोर लोगों के अधिकारों की बात करते करते राहुल गांधी इतने भावुकहो जाते हैं कि उन्‍हेंअपने पूर्वज ही नहीं अपनी पार्टी भी खलनायक की तरह दिखने लगती है. हालांकि वो खुलकर ऐसे सवाल नहीं उठाते कि आखिर पिछड़े लोगों की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है. ऐसा तो है नहीं कि पिछड़े लोगों पर अत्याचार पिछले 10 सालों मेंशुरू हुआ है. राहुल गांधी खुद कहते हैं कि वो सिस्टम में रही हैं उन्होंने इंदिरा, राजीव और मनमोहन को देखा है कि किस तरह फैसले प्रभावित किएजाते रहे हैं.

राहुल गांधी भले ही यह न पूछें कि इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन है पर उनकी बातों से यही आशय निकलता है कि कांग्रेस उस बुरे सिस्टम में सुधार नहीं कर सकी. अभी कुछ दिन पहले ही लखनऊ में उन्होंने स्वीकार किया था कि कांग्रेस ने कुछ गलतियां की हैं. उन्होंने कांग्रेस में सुधार को भी वक्त का तकाजा बताया था.

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2-क्या राहुल को यह अहसास हो गया है कि कांग्रेस और नेहरू परिवार ने बहुत गलतियां कीं

तो क्या यह मान लिया जाए कि राहुल गांधी को यह अहसास हो गया है कि उनकी पार्टी और कांग्रेस सरकारों ने दलितों और पिछड़ों और गरीबों के साथ बहुत अत्याचार किया. जो सिस्टम सिर्फ 10 परसेंट वालों के फायदे के लिए काम करता है उसको खत्म करने या नया सिस्टम बनाने की कोशिश नहीं की गई. दरअसल राहुल को यह समझना होगा कि कोई भी सुधार एक दिन , एक साल या कुछ सालों में नहीं होता है. इसमें सदियां लग जाती हैं.

बिना खूनी क्रांति के कांग्रसीसरकारों ने पिछड़ों -दलितों और महिलाओं आदि के लिए कम काम नहीं किया. महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, दलितों और पिछड़ों को ऐसा माहौल देना जहां वो अपनी तरक्की कर सकें यह कम नहीं था. जिस देश में दलितों को सवर्णों के घर के बाहर से गुजरना भी मुश्किल होता था, जिस देश में पिछड़ों को सेवादार के रूप में देखा जाता रहा उस देश में सभी का एक साथ पढ़ाई के लिए कक्षा में बैठना, मंदिर में पूजा करना और शासन और प्रशासन के सर्वोंच्च पदों तक पहुंचना कांग्रेस की सरकारों को में ही संभव हो सका. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी हों मनमोहन सिंह सभी ने अपने अपने हिसाब से सिस्टम में सुधारकरने की कोशिश की. इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण, राजाओं के प्रिविपर्स की समाप्ति केवल इसलिए ही तो की ताकि गरीबों तक बैंकों की सुविधाएं पहुंच सकें. राजीव गांधी ने नवोदय विद्यालय खोले ताकि सभी तबके के बच्चे एक साथ पढ़ाई कर सकें. उन लोगों को एक दम से खारिज तो बीजेपी के नेता भी नहीं करते. राहुल गांधी ऐसा क्यों कर रहे हैं यह समझ में नहीं आया.

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3-यह राहुल का भोलापन तो नहीं है

राहुल गांधी के साफगोई के उनके विरोधी भी कायल रहे हैं. उनकी साफगोई में कभी कभी उनके भोलेपन की झलक मिलती है. जैसे उन्होंने यूपीए सरकार के समय एक बार पीसी में यह स्वीकार कर लिया था कि सीबीआई का दुरुपयोग होता है. राहुल गांधी कई बार आमने सामने की बातचीत में ऐसी बातें करते हुए दिखते हैं जैसे लगता है कि उन्हें सैद्धान्तिक ज्ञान तो है पर व्यवहारिक ज्ञान का बहुत अभाव है. पर राहुल गांधी को इतना भोला मान लेना भी उनके साथ अन्याय करना ही है.

राजा- महाराजाओं और सत्ता के संघर्ष की कहांनियों में षडयंत्र के इतने पहलु होते हैं कि उसमें भोले लोग एक दिन न चल सकें. राहुल गांधी लगातार 3-3 बार चुनावी असफलता के बाद भी कांग्रेस पार्टी के सबसे प्रमुख नेता बने हुए हैं. कुर्सी के लिए इतने षडयंत्र होते हैं कि खुद को बचाना बहुत टेढी खीर होता है. कुर्सी के संघर्ष में जान ही नहीं जाती है कई बार चरित्र हनन करके भी लोग किनारे लगा दिए जाते हैं. सत्ताधारी पार्टी से ही उन्हें नहीं खतरा होता है बल्कि पार्टी के अंदर भी संघर्ष होता है. इन सबसे बचे रहना मामूली नहीं होता है. घर में भी सत्ता की लड़ाई चलती रहती है. प्रियंका गांधी की भी महत्वाकांक्षाएं हो सकती हैं. पर राहुल ने मैनेज किया हुआ है. मतलब साफ है कि राहुल को जितना हम भोला समझते हैं वो उतने भोले तो नहीं ही हैं.

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4-पर यह उनकी चतुरता ज्यादा लगती है

हो सकता है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना तेज न हों , बेहतर कम्युनिकेटर न हों, बेहतर संगठनकर्ता न हों पर ऐसा भी नहीं हैं कि वो चतुर नहीं हैं. बीजेपी के इतने तामझाम के बाद भी कांग्रेस ने जिस तरह पार्टी को संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के नारे ने घेरा है वो राहुल गांधी की रणनीतिक समझ को भी दिखाता है. राहुल गांधी ने चुनाव के कुछ महीनों पहले से लगातार पिछड़ों पर बोलना शुरू किया . वो लगातार अपने हर भाषण में जाति जनगणना की बात कर रहे हैं.

कई बार ऐसा लगा कि उन्होंने ओवररेडेट मुद्दे को उठा लिया है. यूपी और बिहार तक में शुरू में ऐसा लगा कि जाति जनगणना चुनावी मुद्दा नहीं बन रहा है. पर अचानक अगर बीजेपी कमजोर दिखने लगी है तो इसके पीछे यही है कि पिछड़ों और दलितों के वोट के बारे में वो जितनी आश्वस्त थी वो उसे नहीं मिल रहा है. राहुल गांधी ने एक ऐसा मुद्दा पकड़ा था जिसके बारे में एक सुरमें सभी लोग कहते थे कि कांग्रेस राज में क्यों नहीं किया जाति जनगणना . पर इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि जाति जनगणना और पिछड़ों के साथ अन्याय होनेकी बात बार-बार कहते कहते वो पिछड़ों के सबसे बड़े हितैशी बनते जा रहे हैं. यह उनकी छवि के लिए एक प्लस पॉइंट बन रहा है.

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हो सकता है कि इस बार लोकसभा चुनावों में उन्हें अपेक्षित सफलता न मिले पर भविष्य में वो देश के सबसे बड़े पिछड़ों के नेता के रूप में प्रतिष्ठित हो सकते हैं. हो सकता है कि इंदिरा और राजीव को टार्गेट करना भी किसी योजना के तहत हो रहा हो. राजीव गांधी और इंदिरा गांधी पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू नहीं करने का आरोप लगता रहा है. हो सकता है राहुल गांधी इस आरोप से भी मुक्त होना चाहते हों.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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