ललन सिंह को कठघरे में खड़ाकर नीतीश कुमार ने, असल में, अपना मेडिकल सर्टिफिकेट दे दिया है. जो लोग उनके बेटे निशांत की बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे थे, उनको नीतीश कुमार ने अपनी तरफ से आश्वस्त कर दिया है कि वो बिल्कुल तंदुरुस्त हैं.
सेहत पर उठते सवालों के बीच कई राजनीतिक विरोधी नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर मेडिकल बुलेटिन जारी करने की मांग कर रहे थे - लेकिन मधुबनी की सभा में और मंच पर मोदी की मौजूदगी में जिस तरह नीतीश कुमार ने ललन सिंह को कठघरे में खड़ा कर दिया, उनके तो पैरों तले जमीन ही खिसक गई होगी.
ऐसा काम कोई बीमार आदमी भला कर सकता है क्या? ये काम नीतीश कुमार ने कोई पहली बार किया हो, ऐसा भी नहीं है. वो तो हमेशा ही अपने राजनीतिक विरोधियों को वक्त रहते ठिकाने लगाते आये हैं.
जब ललन सिंह उनकी नजर के संदेह के घेरे में आये तो, उनका हटाकर तत्काल प्रभाव से खुद जेडीयू अध्यक्ष बन गये - और अब तो लगता है नीतीश कुमार का शक कुछ ज्यादा ही गहराता जा रहा है.
तभी तो भरी सभा में, सार्वजनिक मंच पर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौैजूदगी में नीतीश कुमार ने ललन सिंह को सीधे सूली पर चढ़ा दिया है.
अब ये देखना होगा कि ललन सिंह के साथ नीतीश कुमार व्यवहार आगे कैसा रहता है. बात इतने भर ही रह जाती है, या ललन सिंह भी पुराने नेताओं की तरह ठिकाने लगा दिये जाते हैं. जॉर्ज फर्नांडिस से लेकर शरद यादव, और आरसीपी सिंह तक लिस्ट तो लंबी ही है.
नीतीश कुमार के निशाने पर ललन सिंह क्योंं आ गये
ललन सिंह को नीतीश कुमार ने बलि का बकरा कहीं इसलिए तो नहीं बना दिया, क्योंकि एनडीए में बीजेपी के साथ बने रहने की बात बोरियत भरी लगने लगी थी. बार बार एक ही बात कैसे कहते, कुछ तो क्रिएटिविटी होनी चाहिये.
प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात हो, अमित शाह या बीजेपी के किसी और महत्वपूर्ण नेता से बात हो, नीतीश कुमार एक बात दोहराना नहीं भूलते हैं कि अब वो कहीं नहीं जाने वाले हैं. चले गये थे. गलती हो गई थी.
मधुबनी की सभा में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यही बात समझा रहे थे, और थोड़ा नयापन लाने के लिए उसमें ललन सिंह के नाम का तड़का लगा दिया. ताकि, ताजगी बनी रहे. बात पुरानी न पड़ जाये. और, ऐसा न हो कि बात ही बिगड़ जाये. बात तो बस इतनी ही है कि आने वाले बिहार चुनाव में बीजेपी नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बनाये रखे. भले ही उसके लिए किसी साथी की बलि क्यों न देनी पड़े. कुर्सी बची रही, तो ऐसे तमाम साथी मिल जाएंगे. नहीं तो कौन पूछेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रगुजार होने में कोई कसर बाकी न रहे, नीतीश कुमार ने खूब शुक्रिया भी कहा. और फिर आगे बोले, हम लोग तो हमेशा एक साथ रहे हैं, लेकिन बीच में कुछ गड़बड़ कर दिया… हमारा पार्टी वाला… और, यहीं पर वो बैठे हैं… अब उन्हीं से पूछिए... बाद में उन्हीं को लगा कि वो लोग गड़बड़ हैं… फिर हम लोग उनको छोड़ दिये... अब हम कभी उन लोगों के साथ नहीं जा सकते हैं... वो लोग सब गड़बड़ किया है... पहली बार 2005 में हम लोग उन सब के खिलाफ ही साथ लड़े थे, और ये सब साथ ही थे... अध्यक्ष ही थे हमारी पार्टी के.
नीतीश कुमार ने अचानक ललन सिंह की तरफ इशारा किया और एक झटके में पूरी कथा सुना डाली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे इत्मीनान से सुन रहे थे, और अगल बगल में बैठे लोगों के अलावा सामने बैठी भीड़ भी. जाहिर है, ललन सिंह भी.
देखा जाये तो नीतीश कुमार ने कुछ गलत भी नहीं कहा है. ऐसा ही हुआ होगा. होता है. सीनियर नेता एक दूसरे से विचार विमर्श करते हैं. कई बार नेता साथियों से सुझाव मांगता है. और, कई बार साथी खुद सुझाव लेकर आते हैं. लेकिन, ऐसा भी तो नहीं कि नीतीश कुमार हर सलाह मान ही लेते होंगे.
अगर नीतीश कुमार को लगता है कि ललन सिंह की सलाह गलत थी, तो ऐसी तमाम गलतियां हुई होंगी. ललन सिंह ही क्यों, बहुत सारे साथी नेताओं ने की होगी - सवाल ये है कि निशाने पर ललन सिंह ही क्यों आ गये?
अगस्त, 2022 में दूसरी बार बीजेपी का साथ छोड़कर महागठबंधन में जाने के लिए नीतीश कुमार ने ललन सिंह पर तोहमत मढ़ी है, ‘...मुझे भटकाया’.
आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बन जाने के बाद नीतीश कुमार ने ललन सिंह को जुलाई, 2021 में जेडीयू का अध्यक्ष बनाया था, लेकिन दिसंबर, 2023 में ललन सिंह से इस्तीफा भी मांग लिया था.
दरअसल, नीतीश कुमार ने तब एक तीर से दो निशाने साधे थे. ललन सिंह के साथ साथ बीजेपी को भी मैसेज दे दिया था.
हो सकता है, नीतीश कुमार मौके की तलाश में हों, और ललन सिंह ने मौका दे दिया. उन दिनों ललन सिंह लगातार मोदी और शाह पर हमले बोल रहे थे, ऐन उसी वक्त लालू यादव और तेजस्व यादव की जमकर तारीफ कर रहे थे - लेकिन ये तो व्यवस्था की बात थी. तब नीतीश कुमार भी तो लालू और तेजस्वी यादव के साथ हुआ करते थे. ये नीतीश कुमार ही तो हैं जो तेजस्वी यादव के जन्म दिन पर सामने बैठे लोगों को खड़े होकर ताली बजाने के लिए बोला था. और उठाकर ताली बजवाई भी थी.
चूंकि नीतीश कुमार हमेशा ही प्लान बी भी तैयार रखते हैं, इसलिए जेडीयू की मोदी और बीजेपी विरोधी छवि बनने से बचाना चाह रहे होंगे - और ललन सिंह पर लगाम कसने का कोई और बेहतर उपाय नहीं सूझा होगा.
चुनाव सिर पर है. मोदी और बीजेपी नेताओं को खुश करने का नीतीश कुमार का अभियान जारी है. ललन सिंह के बहाने लालू यादव और तेजस्वी यादव पर गड़बड़ करने का आरोप लगा रहे हैं, और पाला बदलने का दोष भी उन्हीं पर मढ़ दे रहे हैं. समझा तो यही रहे हैं कि ललन सिंह ने भी 2022 में बीजेपी का साथ छोड़ने को कहा, और 2024 में लालू यादव का साथ छोड़ने को.
ये तो ऐसा लगता है जैसे मोदी के सामने ललन सिंह को गलत बता रहे हैं, लेकिन मैसेज लालू यादव को भेज रहे हैं - कहीं नीतीश कुमार के मन में कोई और राजनीतिक चाल तो नहीं चल रही है?
बिहार के हालात और राजनीतिक समीकरण देखकर तो नहीं लग रहा है कि नीतीश कुमार के पास फिर से महागठबंधन में जाने का कोई स्कोप बचा है, लेकिन उनका कोई खास प्लान हो तो सरप्राइज तो कभी भी दे सकते हैं!
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