विपक्षी दलों को झटका, इससे कोई दल इन्‍कार नहीं कर सकता कि राजनीतिक भ्रष्टाचार एक सच्चाई है

ईडी और सीबीआइ के दुरुपयोग का रोना रोते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस समेत 14 दलों को जिस तरह वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा, उसके लिए वे अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकते। उन्हें तो ऐसी कोई याचिका दायर ही नहीं करनी चाहिए थी, जिससे

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ईडी और सीबीआइ के दुरुपयोग का रोना रोते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस समेत 14 दलों को जिस तरह वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा, उसके लिए वे अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकते। उन्हें तो ऐसी कोई याचिका दायर ही नहीं करनी चाहिए थी, जिससे यह प्रतीत हो कि विपक्षी दल अपने लिए अलग नियम-कानून अथवा केंद्रीय जांच एजेंसियों के जांच दायरे से मुक्ति चाहते हैं। समझना कठिन है कि वे अपनी इस याचिका के जरिये कहना क्या चाहते थे?

क्या वे यह चाहते थे कि सीबीआइ और ईडी जैसी एजेंसियों को यह निर्देश दे दिया जाए कि उनकी ओर से विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ कोई जांच ही न की जाए, भले ही उन पर घपलों-घोटालों में शामिल होने के आरोप हों? क्या वे यह चाहते थे कि भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेताओं को इसलिए गिरफ्तार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे विपक्षी दलों के नेता हैं? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि वे अपनी ओर से बनाए जा रहे इस माहौल में सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी चाहते थे कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

यह अच्छा हुआ कि विपक्षी दलों के इरादों की पोल खुल गई और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से साफ-साफ यह सुनने को मिला कि उनके लिए अलग दिशानिर्देश नहीं बनाए जा सकते। विपक्षी नेताओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से अलग दिशानिर्देश जारी होने का मतलब होता, अलग-अलग लोगों के लिए भिन्न-भिन्न विधान। यह विधि के शासन और साथ ही लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत होता। आखिर विपक्षी दलों ने यह कैसे मान लिया कि उनके लिए अलग व्यवस्था बन सकती है?

सुप्रीम कोर्ट से निराश लौटे विपक्षी दल चाहे जो दावा करें, वे इससे इन्कार नहीं कर सकते कि राजनीतिक भ्रष्टाचार एक सच्चाई है। इसी कारण पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने सीबीआइ से यह कहा था कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा न जाए, भले ही वे कितने ताकतवार हों। विपक्षी दल इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में नेताओं को दंडित किया जा चुका है और कई नेताओं को जमानत नहीं मिल रही है।

विडंबना यह है कि विपक्षी दल ऐसे ही कुछ नेताओं का उल्लेख कर यह सिद्ध करने की हास्यास्पद कोशिश कर रहे थे कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। यदि यह मान लिया जाए कि इस आरोप में कुछ सच्चाई है तो आखिर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेताओं को जेल में क्यों रहना पड़ रहा है? क्या विपक्षी दलों को अदालतों पर भरोसा नहीं? 14 विपक्षी दल चाहे जिन कारणों से कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट हुए हों, लेकिन इनमें अधिकांश ऐसे दल हैं, जिनके नेता भ्रष्टाचार के चलते सीबीआइ और ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं।

Edited By: Praveen Prasad Singh

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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