भारत और आस्ट्रेलिया के बीच कूटनीतिक संबंध पहले से ही सहज रहे हैं, लेकिन मौजूदा दौर में तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में दोनों देशों ने जैसे सरोकार दिखाए हैं, वे कई लिहाज से अहम हैं। चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में जैसी दखल दी है और खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके आक्रामक रुख के चलते पड़ोसी और सीमा से सटा देश होने के नाते भारत में जैसी चिंता पैदा की है, उसके मद्देनजर स्वाभाविक ही भारत को अपने हर मोर्चे पर मजबूत विकल्प खड़े करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत महसूस हो रही है।
आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते को पूरा करने पर सहमति बनी
आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज की ताजा भारत यात्रा और इस दौरान आपसी सहयोग की दिशा में बढ़े कदम को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। गौरतलब है कि इस दौरान रक्षा संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के साथ-साथ भारत और आस्ट्रेलिया के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते को जल्द से जल्द पूरा करने पर सहमति बनी। उम्मीद जताई गई है कि इस साल के पूरा होते-होते समझौते को अंतिम स्वरूप दे दिया जाएगा।
दरअसल, पिछले साल ही भारत और आस्ट्रेलिया के बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे और उसी को अब जमीनी स्तर पर उतारने के लिए तेजी से काम चल रहा है। आस्ट्रेलिया भारत को मुख्य रूप से कच्चे माल का निर्यात करता है, जबकि भारत से वह परिष्कृत वस्तुओं का आयात करता है।
यही स्थिति दोनों देशों के लिए अनुकूल और फायदेमंद अवसरों का निर्माण करती है। इसी क्रम में द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी के एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में देखा गया है। पिछले कुछ सालों के दौरान रक्षा क्षेत्र में हुए उल्लेखनीय समझौते के तहत एक-दूसरे की सेनाओं के लिए साजो-सामान के समर्थन से लेकर सुरक्षा एजंसियों के बीच नियमित और उपयोगी सूचनाओं का आदान-प्रदान होता रहा है।
अब उस तंत्र को और मजबूत करने पर बात बढ़ी है। आतंकवाद और आतंकी संगठनों के खिलाफ साझा और ठोस लड़ाई पर बनी सहमति को वक्त का तकाजा कहा जा सकता है। साथ ही दोनों पक्षों ने खेल, नवाचार, दृश्य-श्रव्य उत्पादन और सौर उर्जा के क्षेत्रों में आपसी सहयोग के लिए चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
अल्बनीज की यात्रा के दौरान एक अहम बिंदु यह भी रहा कि भारत के प्रधानमंत्री ने उनके सामने आस्ट्रेलिया में पिछले दिनों कुछ मंदिरों पर हमलों को लेकर आपत्ति दर्ज कराई। जब दो देशों के बीच सहयोग का विस्तार होता है, तो उसमें सांस्कृतिक स्तर पर एक-दूसरे का खयाल रखना जरूरी पक्ष होता है। यही वजह है कि आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर हमलों के लिए जिम्मेदार किसी भी व्यक्ति को कानूनी सख्ती का सामना करना पड़ेगा। भारत और आस्ट्रेलिया अगर सुरक्षा सहित हर मोर्चे पर आपसी सहयोग के तंत्र को व्यापक बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसका असर चीन की कूटनीति पर भी पड़ेगा।
यह किसी से छिपा नहीं है कि चीन भारतीय सीमा में अक्सर नाहक दखल देता और जानबूझ कर विवाद पैदा करने की कोशिश करता रहा है। चीन शायद इसलिए भी ऐसा कर पाता है कि भारत का सहिष्णु और धीरज का रुख उसे अपनी मनमानी के अनुकूल लगता है। मगर सच यह है कि भारत ने इस मसले को हमेशा ही संवेदनशील माना है। अपने स्तर पर मोर्चे को मजबूत करने के अलावा अन्य देशों के साथ-साथ आस्ट्रेलिया से रणनीतिक साझेदारी को व्यापक स्वरूप देना इसी का हिस्सा है।
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