बारामती में ननद-भौजाई की लड़ाई से बड़ा है शरद पवार के पावर का टेस्ट

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बारामती लोकसभा क्षेत्र को शरद पवार का गढ़ वैसे ही माना जाता है, जैसे अमेठी और रायबरेली को गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है. अमेठी में राहुल गांधी को पहली चुनौती 2014 में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने दी थी, राहुल गांधी ने वो चुनौती तो बड़े आराम से झेल ली, लेकिन दूसरी बार चूक गये.

सुप्रिया सुले को भी इस बार बारामती में कड़ी चुनौती मिल रही है. ये चुनौती राहुल गांधी को 2019 में मिली चुनौती जैसी तो अभी नहीं लगती, लेकिन 2014 वाले चैलेंज से बढ़कर जरूर लगती है. सुप्रिया सुले के सामने राहुल गांधी की तरह कोई बीजेपी का नेता तो नहीं है, लेकिन जो विरोधी उम्मीदवार है, उसके पीछे बीजेपी का ही हाथ है.

बारामती में सुप्रिया सुले के खिलाफ उनके ही अजित दादा की पत्नी सुनेत्रा पवार चुनाव मैदान में खड़ी हो गई हैं, लिहाजा महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है.

देखने में तो ये ननद भौजाई का झगड़ा ही लगता है, जो घर के आंगन से निकल कर चुनाव के मैदान में पहुंच चुका है - और एक ससुर (और पिता) की राजनीतिक विरासत दांव पर लगी हुई है.

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लेकिन सुप्रिय सुले ऐसी बातों को सीधे सीधे खारिज कर रही हैं. कहती हैं, मैं शुरू से ही कहती आई हूं कि ये पवार परिवार की लड़ाई नहीं है... मुझे अपने काम पर भरोसा है... और ये इस बात की गारंटी है कि मेरे विरोधी भी मुझे ही वोट देंगे.

वैसे शरद पवार की राजनीतिक थाती पर तो अजित पवार पहले ही डाका डाल चुके हैं, लेकिन असली हिसाब किताब तो जनता की अदालत में होना है. ये भी नहीं भूलना चाहिये कि सुप्रीम कोर्ट ने अजित पवार को शरद पवार के प्रभाव का इस्तेमाल न करने की साफ साफ हिदायत दे रखी है.

देखा जाये तो अजित पवार के मन में भी वैसा ही गुस्सा भरा हुआ है, जैसा समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता पशुपति कुमार पारस के मन में भरा होगा - पारिवारिक पार्टियों की ये एक आवश्यक बुराई भी है.

अखिलेश यादव की ही तरह चिराग पासवान भी अब अपने पिता की विरासत पर पूरी तरह काबिज हो चुके हैं, लेकिन सुप्रिया सुले के लिए तो अभी अंगड़ाई लेने जैसा है - आगे तो और भी बड़ी लड़ाई बाकी है.

बारामती में नामांकन के क्या देखा गया

बारामती लोकसभा सीट के लिए मौजूदा सांसद सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार दोनों ने ही नामांकन दाखिल कर दिया है. सुप्रिया सुले, महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार की बेटी हैं, और सुनेत्रा पवार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की पत्नी हैं, यानी शरद पवार की बहू हैं.

ये लोकसभा चुनाव शरद पवार की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने की लड़ाई है. अजित पवार की राजनीति भी शरद पवार के परिवार से होने के कारण ही चलती आई है. नई बात ये हुई है कि अजित पवार ने भी शरद पवार को वैसे ही झटका दिया है, जैसे एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को - और शिंदे सेना की तरफ अजित पवार भी एनसीपी पर काबिज हो गये हैं. चुनाव आयोग ने अजित पवार के पक्ष में फैसला सुनाया है, लेकिन शरद पवार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अजित पवार के साथ यथास्थिति तो बरकरार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनको साफ साफ बोल दिया है कि वो कहीं भी शरद पवार की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करेंगे, और चुनाव निशान का इस्तेमाल भी तभी तक कर पाएंगे जब तक अदालत फैसला नहीं सुना देती, और ये बात अखबारों में इश्तेहार देकर बतानी भी होगी. ये बताना होगा कि चुनाव निशान अस्थाई तौर पर अजित पवार के पास है.

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सुनेत्रा पवार ने नामांकन दाखिल कर दिया है, लेकिन एहतियातन अजित पवार ने एक डमी नामांकन भी दाखिल कराया है. महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एकनाथ शिंदे वाली शिव सेना के नेता विजय शिवतारे ने भी बारामती से नामांकन दाखिल किया है.

महायुति की तरफ से सुनेत्रा पवार के नामांकन के वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के अलावा प्रफुल्ल पटेल और बीजेपी के संकटमोचक आरपीआई नेता रामदास अठावले भी पहुंचे हुए थे.

महा विकास आघाड़ी के उम्मीदवार के रूप में नॉमिनेशन फाइल करने पहुंची सुप्रिया सुले के साथ शरद पवार के हिस्से वाली एनसीपी के नेता डॉ. अमोल कोल्हे और अजित पवार के भतीजे युगेंद्र पवार भी थे. युगेंद्र पवार अपने चाचा अजित पवार को छोड़ कर शरद पवार खेमे के साथ खड़े हैं.

ध्यान देने वाली बात ये रही कि न तो सुनेत्रा पवार के नामांकन के दौरान अजित पवार साथ गये थे, न ही सुप्रिया सुले के नामांकन के समय उनके पिता शरद पवार पहुंचे थे - क्या ये दोनों नेताओं के एक दूसरे के सामने आने से बचने की कोशिश थी, या दोनों अपने परिवार के सदस्यों को सामने विरोधी खेमे में खड़े देखने से परहेज कर रहे थे?

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पवार का पावर सबने देखा है

ननद-भौजाई की इस लड़ाई को लेकर महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने एक ऐसी बात कही है, जो बारामती पर शरद पवार के साये और प्रभाव से बचने की कोशिश लगती है. देवेंद्र फडणवीस का कहना है, बारामती की लड़ाई सुनेत्रा पवार और सुप्रिया सुले के बीच नहीं है - ये लड़ाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच है.

आखिर देवेंद्र फडणवीस, शरद पवार की जगह राहुल गांधी का नाम क्यों ले रहे हैं? क्या ये शरद पवार के नाम से ध्यान हटाने का कोई प्रयास है?

क्या शरद पवार की ताकत को इतनी आसानी से झुठलाया जा सकता है?

शरद पवार राजनीति के ऐसे खिलाड़ी हैं जिनके पास राजनीति का काफी लंबा अनुभव है, और ये उनके लड़ने का जज्बा ही है, जिसकी बदौलत वो कैंसर जैसी बीमारी को भी शिकस्त देकर मैदान में मजबूती से डटे हुए हैं - और ऐसे कई उदाहरण हैं जो बताते हैं कि शरद पवार ने अपना रसूख बरकरार रखा है.

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1. कैसे ई़डी को कदम पीछे खींचने पड़े थे : एक बार की बात है जब ईडी ने शरद पवार और अजित पवार सहित कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था. अजित पवार ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था - और अपने बेटे पार्थ पवार से साफ साफ बोल दिया था कि 'खेती, राजनीति करने से ज्यादा फायदेमंद है'. और तभी अजित पवार ने राजनीति से संन्यास लेने की चर्चा भी आगे बढ़ा दी थी. बहरहाल, अब अपनी राजनीतिक पैंतरेबाजी से अजित पवार ने बहुत सारी मुश्किलें सुलझा ली है.

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच ही शरद पवार को ईडी का नोटिस मिला था. प्रवर्तन निदेशालय ने ₹25 हजार करोड़ के महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले में शरद पवार के खिलाफ भी केस दर्ज किया था.

ईडी के केस में शरद पवार ने बड़ी आसानी से मराठा राजनीति का पेंच फंसा दिया. मीडिया को बुलाकर शरद पवार ने मराठा कार्ड खेलते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज के दौर का इतिहास का हवाला देकर लोगों तक अपना संदेश पहुंचा दिया. शरद पवार के अंगड़ाई लेते ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर उतर आये.

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शरद पवार ने मीडिये के जरिये ऐलान कर दिया, 'ये शिवाजी महाराज का महाराष्ट्र है, इसने दिल्ली के तख्त के सामने झुकना नहीं सीखा है. ये कहते हुए शरद पवार ने खुद ही प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर जाने की घोषणा कर दी.

नतीजा ये हुआ कि अफसरों के होश उड़ गये और जैसे तैसे दफ्तर न आने के लिए शरद पवार को मनाने लगे. शरद पवार मान भी गये - क्योंकि राजनीतिक चाल ने तो असर दिखा ही दिया था.

2. कैसे सतारा में दबदबा कायम रखा : सतारा उपचुनाव में शरद पवार का बारिश में भीगते हुए भाषण देना इतना असरदार रहा कि चुनाव मैदान में बाजी ही पलट गई. सतारा से शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोसले 2019 का लोक सभा चुनाव एनसीपी के टिकट पर जीते थे, लेकिन तीन महीने बाद ही वो बीजेपी में शामिल हो गये, और संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिये. चुनाव आयोग ने विधानसभा के साथ ही लोकसभा उपचुनाव भी करा दिया था.

बीजेपी में जाते ही उदयनराजे भोसले कहने लगे, चूंकि छत्रपति महाराज के जो विचार थे उसे बीजेपी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह आगे बढ़ा रहे हैं, इसलिए वो खुशी खुशी ये फैसला किये - और बीजेपी ने उपचुनाव में सतारा से उनको उम्मीदवार बना दिया.

उदयनराजे भोसले का एनसीपी छोड़ना शरद पवार के लिए बहुत बड़ा झटका था. शरद पवार ने अपने पुराने नेता के खिलाफ एक नये नेता श्रीनिवास पाटिल को टिकट देकर मैदान में उतार दिया - और एक ही चुनावी रैली से हवा का रुख भी बदल दिया था.

जब श्रीनिवास पाटिल के लिए वोट मांगने शरद पवार सतारा पहुंचे तो खूब तेज बारिश होने लगी, लेकिन इस उम्र में भी शरद पवार ने हिम्मत नहीं हारी - और मूसलाधार बारिश में मंच पर चढ़ कर रैली को संबोधित करने लगे.

बादलों की गरज और तेजधार बारिश के बीच शरद पवार ने मौके का भरपूर फायदा उठाया, 'ये एनसीपी के लिए वरुण राजा का आशीर्वाद है... इससे राज्य में चमत्कार होगा - और ये चमत्कार 21 अक्टूबर से शुरू होगा. मुझे इसका विश्वास है.'

शरद पवार के बारिश में भींगकर चुनाव प्रचार करने की तस्वीर और वीडियो वायरल हो गया, और श्रीनिवास पाटिल जीत गये - करीब करीब वैसी ही लड़ाई अब बारामती के मैदान में चल रही है, और सुप्रिया सुले को अपने पिता से वैसे ही करिश्मा की उम्मीद होगी. एक बेटी के लिए उसका पिता हमेशा ही हीरो होता है.

क्या यही वजह है कि बारामती की लड़ाई को देवेंद्र फडणवीस, शरद पवार की जगह मोदी और राहुल गांधी की लड़ाई के रूप में पेश कर रहे हैं?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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