राजनीति में 48 घंटे का वक्त बहुत बड़ा होता है. सियासत का ये सबक कन्नौज से चुनाव लड़ते-लड़ते रह गए तेज प्रताप से बेहतर कौन जानेगा? जिन्हें हटाकर अब खुद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) कन्नौज की लड़ाई में उतर गए हैं. दोपहर में अखिलेश यादव ने कन्नौज से लड़ने का संकेत दिया और शाम होते-होते समाजवादी पार्टी ने एक और सीट पर उम्मीदवार बदल दिया.
अखिलेश ने कन्नौज से चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा कि जब नॉमिनेशन होगा तो आप को खुद पता चल जाएगा और हो सकता है कि नॉमिनेशन से पहले आपको जानकारी होगी.
क्यों इतने कन्फ्यूज हैं अखिलेश यादव?
समाजवादी पार्टी भले ही कन्फ्यूजन से इनकार करे लेकिन इस बार अखिलेश की पार्टी ने बार-बार उम्मीदवार बदलने में सबको पीछे छोड़ दिया है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि अखिलेश यादव इतने कनफ्यूज क्यों हैं?
समाजवादी पार्टी ने 4 सीटों पर 2 बार प्रत्याशी बदला, जिसमें गौतम बुद्ध नगर, मिश्रिख मेरठ और बदायूं शामिल है. वहीं 9 सीट पर वो एक बार प्रत्याशी बदल चुके हैं, इसमें मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, बागपत, सुल्तानपुर, वाराणसी (गठबंधन के कारण) और कन्नौज जैसी सीटें शामिल हैं. समाजवादी पार्टी ने अखिलेश के चुनाव लड़ने की चर्चा पर विराम लगा दिया था लेकिन अचानक अखिलेश ने इस मामले को ट्विस्ट दे दिया. सवाल ये है कि 48 घंटों के अंदर ऐसा क्या हुआ, जिससे समाजवादी पार्टी को कन्नौज से प्रत्याशी बदलना पड़ा?
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कन्नौज से सियासी मैदान में क्यों उतरे अखिलेश यादव?
सूत्रों की मानें तो कन्नौज से समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधि मंडल ने लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात की और बताया कि तेज प्रताप की जगह अगर अखिलेश यादव कन्नौज से चुनाव लड़ते हैं, तो खेल पलट सकता है. स्थानीय नेताओं का कहना था कि कन्नौज की आधी जनता तेज प्रताप को जानती तक नहीं है. इसके बाद अखिलेश यादव ने कन्नौज से चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी.
दो दिन पहले ही समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के पोते तेज प्रताप को कन्नौज से उम्मीदवार बनाया था. 25 अप्रैल को कन्नौज में नामांकन का आखिरी दिन है. ऐसे में नामांकन से ठीक पहले अखिलेश यादव को अपना मन बदलना पड़ा.
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कन्नौज सीट पर कई सालों तक रहा है SP का कब्जा
साल 1999 से 2019 तक कन्नौज सीट पर मुलायम परिवार का ही कब्जा रहा है. साल 1999 में मुलायम सिंह यादव कन्नौज की सीट से चुनाव लड़़े थे. मुलायम सिंह के बाद एक उपचुनाव और दो लोकसभा चुनाव में इस सीट से 3 बार अखिलेश यादव ने फतह हासिल की. 2014 में अखिलेश ने ये सीट डिंपल यादव को दे दी, जहां मोदी लहर के बावजूद वो यह सीट बचाने में कामयाब रहीं लेकिन 2019 में सुब्रत पाठक ने डिंपल को हराकर समाजवादी पार्टी के इस गढ़ में सेंध लगा दी.
क्या कहता है कन्नौज सीट का चुनावी समीकरण?
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 5 सालों में समाजवादी पार्टी के इस गढ़ में जबरदस्त सेंधमारी की है. कन्नौज लोकसभा सीट के दायरे में आने वाली 5 विधानसभाओं में से 4 पर बीजेपी का कब्जा है. कन्नौज में करीब 16 फीसदी मुस्लिम और करीब 16 प्रतिशत यादव आबादी है. जबकि 15 प्रतिशत ब्राह्मण और 10 प्रतिशत राजपूत आते हैं. इसके अलावा 39 फीसदी में अन्य आते हैं. इसमें ज्यादा संख्या दलितों की है. अखिलेश के कन्नौज से चुनाव में उतरने से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश आएगा लेकिन फिर भी कन्नौज की लड़ाई उनके लिए आसान नहीं रहने वाली है.