ओवैसी के यूपी-बिहार में प्रत्याशी न उतारने से BJP को नुकसान ही नहीं फायदा भी, चार बिंदुओं में समझिए

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आम तौर पर यह कहा जाता रहा है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी देश की चुनावी राजनीति में बीजेपी की बी-टीम के रूप में काम करते हैं. पर इस बार के चुनावों में बीजेपी और AIMIM की गतिविधियां यह बता रही हैं कि दोनों पार्टियों ने एक दूसरे की वाट लगाने की पूरी तैयारी कर ली है. जहां बीजेपी ने हैदराबाद से तगड़ा कैंडिडेट कोम्पेला माधवी लता को उम्मीदवार बनाकर असदुद्दीन ओवैसी को मुश्किल में डाल दिया है, वहीं AIMIM ने भी उत्तर प्रदेश और बिहार में अपने प्रत्याशियों को न खड़ाकर के एनडीए को परेशान कर दिया है.

ओवैसी ने यूपी में 19 प्रत्याशी खड़े करने और बिहार में सीमांचल की सीटों सहित 16उम्मीदवार उतारने की घोषणा की थी. पर अभी तक यूपी से एक भी कैंडिडेट नहीं दिया जबकि बिहार में भी केवल एक कैंडिडेट किशनगंज से ही खड़ा किया है. इस तरह यह साफ हो गया है कि बीजेपी को ओवैसी के कैंडिडेट द्वारा मुस्लिम वोट काटे जानेकाफायदा इस बार नहीं हो रहा है. इस तरह इस बार के लोकसभा चुनावों के बाद ओवैसी को कोई भी बीजेपी के बी टीम नहीं कह सकेगा. पर जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं उससे ओवैसी पर आरोप लग रहे हैं कि वो इस बार कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं. ओवैसी के इस कदम से बीजेपी को कितना फायद या कितना नुकसान हो रहा है, आइये देखते हैं.

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1-बीजेपी अब साबित कर सकेगी कांग्रेस और औवैसी मिले हुए हैं

चार वर्ष पहले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में अपेक्षित सफलता मिलने से उत्साहित भाजपा ने माधवी लता के रूप में लड़ाकू प्रत्याशी उतारा है. माधवी के चुनाव मैदान में आने के बाद से हैदराबाद में ओवैसी की सांसदी हिलती नजर आ रही है. हैदराबाद सीट पर ओवैसी परिवार का कब्जा 4 दशकों से बना हुआ है. अभी तक तेलंगाना की राजनीति में ओवैसी का भारत राष्ट्र समिति से तालमेल रहता था, पर प्रदेश कीराजनीति बदली तो उनको अब कांग्रेस की जरूरत है. दूसरी ओर कांग्रेस को भी ओवैसी की जरूरत है. क्योंकि 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत से मात्र चार ही ज्यादा विधायक हैं. जाहिर है कल को कुछ विधायक इधर उधर होते हैं रेवंतसरकार कोबचाने के लिए ओवैसी का साथ चाहिए.

दूसरी ओर हैदराबाद सीट पर पांचवीं जीत के लिए ओवैसी को भी कांग्रेस की मदद चाहिए. इसके लिए देखिए किस तरह काम हो रहा है.तेलंगाना में चौथे चरण में मतदान होना है,पर कांग्रेस अभी तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं कर सकी है. जबकि नामांकन 18 अप्रैल से शुरू हो चुका है. जबकि क्रिकेटर और कांग्रेस पार्टी के सांसद रह चुके अजहरुद्दीन इसी शहर के हैं. बीआरएस के बड़े नेता केशव राव एवं उनकी पुत्री हैदराबाद की मेयर विजयलक्ष्मी भी कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं. पर कांग्रेस शायद यहां फ्रेंडली मैच खेलना चाहती है. इसलिए किसी ऐसे कैंडिडेट की तलाश में है जो बीजेपी के लिए मुश्किल बन सके. वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि जो लोग समझ रहे हैं कि ओवैसी के कैंडिडेट न खड़े करने से बीजेपी को नुकसान होगा वह मुगालते में हैं.आम जनता के बीच ओवैसी के यूपी और बिहार में प्रत्याशी न खड़े करने से यह संदेश जा रहा है कि एमआईएमआईएम और कांग्रेस मिलकर बीजेपी को हराना चाहते हैं. इसके चलते बीजेपी के फ्लोटिंग वोट फिर से एक बार बीजेपी के साथ आ रहे हैं.

2- तेलंगाना में बीजेपी की जमीन और होगी मजबूत

तेलंगाना में 2023 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी आगामी लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कमर कस चुकी है. शायद यही कारण रहा हो कि औवैसी के खिलाफ एक मजबूत कैंडिडेट दिया गया . स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी ने जनता से अपील की थी कि लोग माधवी लता का इंटरव्यू देखें. इससे जनता के बीच यह संदेश गया है कि ओवैसी के साथ बीजेपी का कोई अंदरूनी तालमेल नहीं है बल्कि कांग्रेस के साथ यह तालमेल है. तेलंगाना में हार के बावजूद पार्टी ने 2018 की तुलना में अपनी सीटों की संख्या और मतदान प्रतिशत दोनों में सुधार किया था. विधानसभा चुनावों के विपरीत, जहां मुख्य मुकाबला भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और कांग्रेस के बीच था, लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई हो रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि 2019 में 17 लोकसभा सीटों में से नौ सीटें जीतने वाली बीआरएस की संख्या घटकर एक-दो रह सकती है. भाजपा 2023 के विधानसभा चुनावों में अपना वोट शेयर 2018 के 6.98 प्रतिशत से दोगुना कर लगभग 14 प्रतिशत करने में सफल रही.बीजेपी की सीटों की संख्या भी एक से बढ़कर आठ हो गई. उम्मीद की जा रही है कि तेलंगाना में बीजेपी इस मजबूत होकर उभरेगी.

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3-बिहार सीमांचल में बीजेपी को कितना हो रहा नुकसान

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बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में जिन इलाकों में वोटिंग होनी है उसमें सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सीमांचल का है जो एक मुस्लिम बहुल इलाका है. सीमांचल के चार जिले जिसमें किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया शामिल है और सभीमुस्लिम बहुल इलाके हैं. यहां पर मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है. पिछले कुछ सालोंमें हैदराबाद की पार्टीके नाम से मशहूर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में काम करना शुरू किया है और जिसका नतीजा 2020 में देखने को मिला जब ओवैसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में इस इलाके में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी.

पहले ओवैसी ने सीमांचल के सभी सीटों के साथ ही बिहार के दूसरे हिस्सों में भी कुल 16 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, हालांकि अब ओवैसी ने दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव में सिर्फ किशनगंज में ही अपना उम्मीदवार उतारा है. इसके अलावा अररिया, पूर्णिया और कटिहार में मैदान महागठबंधन के लिए साफ है. पर पूर्णिया में ओवैसी का का्म पप्पू यादव कर रहे हैं. कटिहार में 2009 में जहां बीजेपी से निखिल चौधरी यहां से चुनाव जीतकर सांसद बने थे, वहीं 2014 में एनसीपी के तारीक अनवर ने चुनाव जीता था और 2019 में जनता दल यूनाइटेड से दुलारचंद गोस्वामी सांसद बने थे.यहां पर महागठबंधन इस बार मजबूत स्थिति में रहेगी . क्योंकि यहां से औवेसी का कैंडिडेट नहीं है. 2009 में अररिया से बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप सिंह सांसद चुने गए थे और फिर 2014 में राजद से मोहम्मद तस्लीमुद्दीन संसद पहुंचे थे. 2019 में एक बार फिर भाजपा ने यह सीट जीती थी और प्रदीप सिंह सांसद बन गए थे. निश्चित है कि इस बार बीजेपी के लिए यह सीट बचानी मुश्किल होगी.

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4-उत्तर प्रदेश में ओवैसी का काम बीएसपी के मुस्लिम कैंडिडेट कर रहे

इसी तरह दो वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 95 सीटों पर प्रत्याशी उतारने वाले ओवैसी ने लोकसभा के लिए अब तक एक भी सीट पर प्रत्याशी नहीं उतारा है। पहले 20 सीटों पर लड़ने का दावा किया था। अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने उनकी पार्टी से गठबंधन जरूर किया है, पर ओवैसी में उत्साह नहीं दिख रहा है। ओवैसी ने झारखंड में भी छह सीटों पर लड़ने का एलान किया था, लेकिन जब वक्त आया तो परिदृश्य से गायब हो गए हैं. पर बीजेपी के लिए खुशी की बात ये है कि बीएसपी ने अब तकयूपी में करीब 14 मुस्लिम प्रत्याशी घोषित किए हैं.

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जाहिर है कि ये 14 प्रत्याशी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के मुस्लिम वोट में सेंध लगाने का ही काम करेंगे.इसके बावजूद अगर ओवैसी अपने उम्मीदवारों को खड़ा करते तो बीजेपी को उन स्थानों पर जरूर फायदा होता जहां से किसी भी दल ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है. जैसे मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, बागपत आदि में मुस्लिम वोटर्स की तादाद 30 से 35 प्रतिशत तक होने के बावजूद न तो समाजवादी पार्टी ने , न ही बहुजन समाज पार्टी मुस्लिम कैंडिडेट को तरजीह दी. इन स्थानों पर एमआईएमआईएम के कैंडिडेट न होने का नुकसान तो बीजेपी को उठाना ही पड़ेगा.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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