पप्पू यादव और कन्हैया का रास्‍ता रोकने से क्या मिलेगा? तेजस्वी के लिए लालू को बड़ी लकीर खींचनी होगी

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पूर्णिया का माहौल पूरे बिहार से बिलकुल अलग है. बिहार में भले ही लोग इस बात पर बहस कर रहे हों कि एनडीए और इंडिया गठबंधन की कितनी सीटें आएंगी, लेकिन पूर्णिया में अलग ही चर्चा है - पप्पू यादव हारेंगे या जीतेंगे?

बिहार की पूर्णिया सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो चुका है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ये बात मानें, या न मानें. तीनों कोण बराबर हों जरूरी नहीं, थोड़ा ऊपर नीचे भी हो सकता है.

पूर्व सासंद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. पप्पू यादव के मुकाबले लालू यादव की पार्टी आरजेडी ने बीमा भारती को इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार घोषित किया है - और एनडीए की तरफ से जेडीयू के टिकट पर मौजूदा सांसद संतोष कुमार कुशवाहा मैदान में हैं.

जेडीयू और बीजेपी तो आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती को ही संतोष कुशवाहा के लिए चुनौती मान कर चल रहे थे, लेकिन तेजस्वी यादव तो पप्पू यादव को ही सबसे बड़ी चुनौती मान बैठे हैं. और पूर्णिया के लोगों से पप्पू यादव की जगह एनडीए कैंडिडेट संतोष कुशवाहा को वोट दे देने की उनकी सलाह ने अलग ही बवाल मचा रखा है.

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पूर्णिया में तेजस्वी यादव के भाषण से जो बात निकल कर आई है, उस पर बिहार के डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सम्राट चौधरी कहते हैं, तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में अपनी हार मान ली है... और हताशा में अब सच्चाई बोल रहे हैं.

क्या तेजस्वी यादव को वास्तव में पप्पू यादव के चुनाव जीत जाने की संभावना दिखाई देने लगी है? क्योंकि राजनीति में तो संभावित की कौन कहे सामने सुनिश्चित हार को देखने के बाद भी डंके की चोट पर जीत के ही दावे किये जाते रहे हैं.

ये तो जगजाहिर है कि लालू परिवार में पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को कोई फूटी आंख नहीं देखना चाहता. कन्हैया कुमार को बिहार के चुनाव मैदान से बाहर कराने में तेजस्वी यादव सफल भी रहे, लेकिन पप्पू यादव के मामले में कांग्रेस पर दबाव बनाना बेअसर रहा - क्योंकि पप्पू यादव ने कांग्रेस की तरफ बढ़ाये अपने कदम पहले ही पीछे खींच लिये.

पूर्णिया में क्यों चूक गये तेजस्वी यादव?

पूर्णिया में तो माहौल तभी से बनने लगा था, जब पप्पू यादव इलाके में एक्टिव हुए. मधेपुरा चले जाने से लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए पूर्णिया में मुहिम चलाई, और फिर तेजी से कदम बढ़ाते हुए अपनी पार्टी के कांग्रेस में विलय की घोषणा कर दिया. पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सांसद हैं.

पप्पू यादव को अचानक कांग्रेस की तरफ बढ़े हुए अपने कदम रोक देने पड़े, क्योंकि आरजेडी ने पूर्णिया सीट कांग्रेस को देने से ही इनकार कर दिया. पप्पू यादव अपनी जिद पर अड़े रहे और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गये. कांग्रेस की तरफ से पप्पू यादव से उम्मीदवारी वापस लेने की भी सलाह दी गई, लेकिन कोई असर नहीं हुआ.

पप्पू यादव को सबक सिखाने के लिए आरजेडी की तरफ से फटाफट जेडीयू से आईं बीमा भारती को गठबंधन का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया - और तेजस्वी यादव ने पूर्णिया की लड़ाई को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है.

चुनाव से पहले तक बीमा भारती जेडीयू में ही हुआ करती थीं, लेकिन टिकट नहीं मिला तो आरजेडी से हाथ मिला लिया. पप्पू यादव भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी के मन की बात पर वीटो कर दिया - और पप्पू यादव को निर्दलीय मैदान में उतरना पड़ा.

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बीमा भारती के नामांकन से लेकर अब तक तेजस्वी यादव का सबसे ज्यादा जोर पूर्णिया लोकसभा सीट पर ही लग रहा है. 23 अप्रैल को रात करीब 10 बजे तेजस्वी यादव इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार बीमा भारती के लिए रोड शो कर रहे थे. जैसे ही रोड शो आरएन साह चौक पर पहुंचा पहले से सड़क पर खड़े पप्पू यादव के समर्थक विरोध प्रदर्शन करने लगे - और तेजस्वी यादव के सामने 'पप्पू यादव जिंदाबाद' के नारे लगाने लगे.

बाद नारेबाजी तक ही नहीं रुकी. जब बीमा भारती के समर्थकों ने विरोध जताया तो दोनों गुटों के बीच झड़प होने लगी. मौके से जुड़ा एक वीडियो सामने आया है, जिसमें पूरा माजरा देखा जा सकता है.

इस बीच पूर्णिया में तेजस्वी यादव के एक भाषण को लेकर अलग ही बवाल मचा है. असल में तेजस्वी यादव ने बोल दिया था, 'आप लोग किसी धोखे में नहीं आइये... ये चुनाव किसी एक व्यक्ति का चुनाव नहीं है... ये एनडीए और INDIA गठबंधन की लड़ाई है... या तो INDIA को चुनिये... बीमा भारती को वोट करिये... और अगर INDIA को नहीं चुन सकते, बीमा भारती को वोट नहीं दे सकते... तो फिर एनडीए को चुन लीजिए... साफ बात है.'

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देखा जाय तो तेजस्वी यादव ने आरजेडी नहीं तो एनडीए उम्मीदवार को वोट देने की बात बोल कर पप्पू यादव का राजनीतिक भाव बढ़ा दिया है. तेजस्वी यादव के बयान के बाद पप्पू यादव तो मैदान ही लूट ले रहे हैं, और बीजेपी को बोलने का मौका मिल गया है. पूर्णिया के बहाने दूसरे इलाकों में भी आरजेडी पर हमले का मौका मिल गया है.

क्या ये बयान तेजस्वी यादव की जबान फिसलने की वजह से आया है, या किसी फ्रस्टेशन का नतीजा है?

आखिर पप्पू यादव को तेजस्वी यादव अचानक इतना महत्व क्यों देने लगे हैं? पप्पू यादव को तो आरजेडी से पहले ही बाहर कर दिया गया था. और तबसे वो अपने बूते संघर्ष कर रहे हैं. अगर पप्पू यादव से इतनी ही चिढ़ थी, तो तेजस्वी यादव चुपचाप छोड़ देते. पूर्णिया की हकीकत समझ लेने के बाद बाकी जगह ध्यान देते. पूर्णिया को नजरअंदाज करना तो तेजस्वी यादव के लिए राजनीतिक रूप से ज्यादा दुरूस्त होता.

पप्पू और कन्हैया को काट कर तेजस्वी बड़े नेता नहीं बन पाएंगे

कन्हैया कुमार और पप्पू यादव में बहुत बढ़ा फर्क है. कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की छवि भी काफी अलग है. ये ठीक है कि कई सालों तक पप्पू यादव को भी कोर्ट कचहरी और जेल में बिताने पड़े लेकिन उससे वो उबर चुके हैं, जबकि कन्हैया कुमार के खिलाफ मामला पेंडिंग है.

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असल में लालू यादव को लगता है कि पप्पू यादव और कन्हैया कुमार दोनों ही उनके बेटे तेजस्वी यादव की राजनीतिक राह में रोड़ा बन सकते हैं. दोनों के रोड़ा बनने की वाजिब वजह भी है, लेकिन बिलकुल अलग अलग है.

कन्हैया कुमार युवा हैं, और जब भी तेजस्वी यादव से तुलना होती है तो पढ़ाई लिखाई की बातें होने लगती हैं. फिर आरजेडी कार्यकर्ताओं को तेजस्वी यादव के बचाव में मोर्चा संभालना पड़ता है. ये तो सच है कि लालू यादव कभी भी नहीं चाहेंगे कि तेजस्वी यादव का हम उम्र कोई भी बिहार से बड़ा नेता बन जाये.

पप्पू यादव के मैदान में जम जाने से भी तेजस्वी यादव के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है. पप्पू यादव एक साथ लालू यादव के यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर दावा ठोक देते हैं - पप्पू यादव की वोट बैंक में हिस्सेदारी लालू यादव की राजनीति में बड़ी चुनौती पेश कर सकती है.

कन्हैया यादव तो दिल्ली के मैदान में उतार दिये गये हैं, लेकिन पप्पू यादव पूर्णिया पर कब्जा जमाने में जुट गये हैं. ये वही पूर्णिया है जहां के लोग पप्पू यादव को तीन बार लोकसभा भेज चुके हैं - और ऐसा भी हुआ है कि लोगों को ये परवाह भी नहीं रहती कि वो किस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. लोगों के लिए पप्पू यादव नाम ही काफी होता है.

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ये ठीक है कि पप्पू यादव और कन्हैया कुमार, तेजस्वी यादव की राजनीति में बड़ा रोड़ा बन कर खड़े हैं, लेकिन तेजस्वी यादव थोड़ा आगे बढ़ कर बड़ा नेता बनने की कोशिश क्यों नहीं करते? तेजस्वी यादव के लिए ये चुनौती कभी नहीं खत्म होगी, जब तक वो लालू यादव के बेटे बन कर वोट मांगते रहेंगे - जब तक अपने बूते बड़ा नेता नहीं बन जाते, ऐसी मुश्किलों से पीछा नहीं छूटने वाला है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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