लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान खत्म हो गया है. पहले चरण के इस चुनाव केदौरान राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी एजेंडे, नीतियों, घोषणापत्र और उपलब्धियों के प्रचार में 36.5 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. पार्टियोंने अपने प्रचार-प्रसार के लिएगूगल और मेटा को प्रमुखता दी.इसके विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस ने सुस्त शुरुआत जरूर की लेकिन विज्ञापन खर्च के मामले में पार्टी बीजेपी से पीछे भी नहीं है.
बीजेपी ने गूगल विज्ञापन पर 14.7 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि कांग्रेस ने 15 मार्च से 13 अप्रैल के बीच गूगल प्लेटफॉर्म पर 12.3 करोड़ रुपये अपने प्रचार में लगाए. कांग्रेस की ही सहयोगी डीएमके ने अपने गूगल विज्ञापन पर 12.1 करोड़ रुपये खर्चे हैं. बीजेपी की खासा पसंद गूगल रही है, जहां पार्टी ने कुल विज्ञापनों का 81 फीसदी हिस्सा खर्च कियाहै. वहीं कांग्रेस ने अपने विज्ञापन खर्चका 78 फीसदी गूगल पर खर्च किया है.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस कुल ऑनलाइन विज्ञापन खर्च के मामले में तीसरे स्थान पर रही. इसके बाद टीएमसी, बीजेडी और टीडीपी जैसी पार्टियां रहीं. दिलचस्प बात ये है कि मेटा पर टॉप पांच 'पॉलिटिकल एडवर्टाइजर्स' के रूप में चल रहे मीम पेज नेबीजेडी और टीडीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों से ज्यादा खर्च किया है.
राजनीतिक दलों का फोकस
देश में शुक्रवार को 102 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई,जिनमें 39 सीटें अकेले तमिलनाडु की हैं. ऑनलाइन विज्ञापन में भी इसी पैटर्न को देखा गया, जहां सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव हुए.मसलन, पहले चरण के दौरान विज्ञापन में राजनीतिक दलों ने तमिलनाडु को ही टारगेट किया है. गूगल और मेटा पर पॉलिटिकल कैटगरी के विज्ञापन में विशेष रूप से तमिलनाडु पर ही पार्टियों का फोकस रहा, जहां कुल विज्ञापन खर्च का 17.1 करोड़ रुपये खर्च किया गया है.
तमिल मतदाताओं को टारगेट करने वाले विज्ञापनों पर बीजेपी ने 1.7 करोड़ और डीएमके ने 11 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. वहीं कांग्रेस ने तमिलनाडु में मतदाताओं को टारगेट करने वाले विज्ञापनों पर 7.8 लाख रुपये खर्च किए. डीएमके जहां तमिलनाडु में 30 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं सहयोगी कांग्रेस बाकी नौ सीटों पर जीत की उम्मीद में है. बीजेपी के उम्मीदवार 23 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं.
आपको बता दें कि राजनीतिक विज्ञापनों के लिए राजनीतिक दलों ने खासतौर पर यूट्यूब पर फोकस किया है. बीजेपी ने अपने कुल 14.7 करोड़ रुपये के खर्च में से 9.5 करोड़ अकेले यूट्यूब पर खर्चे हैं. वहीं कांग्रेस ने 7.4 करोड़, डीएमके ने 6.8 करोड़ और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने यूट्यूब विज्ञापन पर 2.4 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
गूगल एड्स ट्रांसपेरेंसी सेंटर के मुताबिक, गूगल पर बीजेपी के कुल खर्च का लगभग 80% वीडियो विज्ञापनों के प्रसार पर खर्च किया गया है. वहीं कांग्रेस ने 77% और DMK ने 62% खर्च अपने वीडियो विज्ञापन के प्रसार पर खर्च किए.
विज्ञापनों में टारगेट किए जाने वाले अहम मुद्दे
राजनीतिक दलों में बीजेपी ने मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं, युवा, विकास, कौशल विकास, राम मंदिर और अनुच्छेद 370 जैसी उप्लब्धियों को मतदाताओं तक पहुंचाने की कोशिश की है.
कांग्रेस ने विज्ञापनों में खासतौर पर बेरोजगारी, नौकरी सुरक्षा, उसके घोषणापत्र, विकास, पेपर लीक और किसानों के मुद्दों जैसे अपने वादों का प्रचार किया है.
डीएमके ने अपने ऑनलाइन कैंपेन में भारतीय संविधान को बीजेपी से बचाने, भारत को बचाने, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की नीतियों को बढ़ावा देने और "द्रविड़ मॉडल" को अन्य राज्यों में फैलाने पर फोकस किया.
विज्ञापनों के लिए पार्टियों की आउटसोर्सिंग
गूगल और मेटा के चुनाव ट्रांसपेमेरेंसी डेटा से यह भी पता चलता है कि राजनीति में आउटसोर्सिंग भारत में तेजी से फैल रहा है. मसलन, राजनीतिक दलों ने अपने ऑलनाइन विज्ञापनों के लिए प्रोफेशनल एजेंसियों को प्रमुखता दी है.
आंकड़ों से पता चलता है कि डीएमके ऑनलाइन विज्ञापन प्लेसमेंट के लिए पूरी तरह से पॉपुलस एम्पावरमेंट नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड पर निर्भर थी, जबकि टीएमसी और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों ने प्रशांत किशोर द्वारा बनाई गई कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पीएसी) को हायर किया था.
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