कभी बाल ठाकरे से वोट का अधिकार छीना, अब मोदी-राहुल के बयानों पर नोटिस... जानें कितना ताकतवर है चुनाव आयोग

4 1 23
Read Time5 Minute, 17 Second

आचार संहिता उल्लंघन मामले में चुनाव आयोग ने बीजेपी और कांग्रेस नोटिस भेजा है. ये नोटिस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज शिकायतों पर बीजेपी और कांग्रेस के अध्यक्ष को जारी किया गया है.

चुनाव आयोग ने ये नोटिस गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दिया है.

बताया जा रहा है कि ये पहली बार है जब चुनाव आयोग ने आचार संहिता उल्लंघन मामले में स्टार प्रचारकों की बजाय पार्टी अध्यक्ष को नोटिस भेजा है. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, चुनाव आयोग का कहना है कि अपने भाषणों के लिए स्टार प्रचारक जिम्मेदार तो होंगे ही, लेकिन अब पार्टी अध्यक्ष की भूमिका भी तय की जाएगी. हालांकि, ये अलग-अलग मामले पर निर्भर करता है. आयोग का दावा है कि इससे पार्टी प्रमुखों पर जिम्मेदारी और तय कर दी गई है.

क्यों जारी हुए हैं ये नोटिस?

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राहुल गांधी के भाषणों पर आई शिकायत के बाद नोटिस जारी किया गया है.

21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली में पीएम मोदी ने जो भाषण दिया था, उसके खिलाफ कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने चुनाव आयोग में शिकात दर्ज करवाई थी. उस रैली में पीएम मोदी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस लोगों की संपत्ति छीनकर मुस्लिमों में बांटना चाहती है. मोदी ने ये भी कहा था कि अगर कांग्रेस सरकार में आई तो 'मंगलसूत्र' भी नहीं बचने देगी.

Advertisement

दूसरी ओर, बीजेपी ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ शिकायत की थी. बीजेपी ने अपनी शिकायत में कहा था कि केरल के कोट्टायम की रैली में राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर एक देश, एक भाषा और एक धर्म थोपने का आरोप लगाया था. इसके अलावा बीजेपी ने ये भी कहा था कि तमिलनाडु के कोयम्बटूर में राहुल गांधी ने पीएम पर भाषा, इतिहास और परंपरा पर हमला करने का आरोप लगाया था.

बीजेपी ने अपनी शिकायत में खड़गे पर आरोप लगाया था कि वो अपनी रैलियों में दावा कर रहे हैं कि एससी-एसटी से होने के कारण उन्हें राम मंदिर के उद्घाटन में नहीं बुलाया गया था.

यह भी पढ़ें: कांग्रेस पर पीएम मोदी का 'मंगलसूत्र' वाला वार, पढ़ें- क्या था राहुल गांधी का वो बयान जिसपर मचा बवाल

पहली बार PM को नोटिस

चुनाव आयोग ने दोनों पार्टियों को नोटिस जारी कर आचार संहिता के प्रावधानों का पालन करने को कहा है. आयोग ने ये भी कहा कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को भाषणों के ज्यादा गंभीर परिणाम होते हैं.

आयोग के अधिकारियों ने दावा किया है कि ये पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लिया गया है. आजतक किसी भी मौजूदा प्रधानमंत्री को नोटिस नहीं दिया गया है.

इससे पहले 2019 में भी प्रचार के दौरान भाषण देने पर पीएम मोदी के खिलाफ कई शिकायतें की गई थीं. हालांकि, सभी मामलों में चुनाव आयोग ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी. इस पर काफी विवाद भी हुआ था, क्योंकि तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा इससे सहमत नहीं थे.

(फाइल फोटो-PTI)

अब तक चुनाव आयोग ने क्या किया?

चुनाव आयोग ने 16 अप्रैल को प्रेस रिलीज जारी कर बताया था कि एक महीने में आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में 200 से ज्यादा शिकायतें मिली हैं और 169 मामलों में कार्रवाई की गई है.

आयोग ने बताया कि आचार संहिता लागू होने के एक महीने के भीतर 7 राजनीतिक पार्टियों के 16 प्रतिनिधियों ने मिलकर शिकायतें दर्ज कराई हैं. सबसे ज्यादा शिकायत कांग्रेस और बीजेपी ने दर्ज कराई थीं.

Advertisement

प्रेस रिलीज के मुताबिक, बीजेपी ने 51 शिकायतें दर्ज कराई थीं और इनमें से 38 पर कार्रवाई की गई है. कांग्रेस की तरफ से दर्ज करवाई गईं 59 में से 51 शिकायतों पर एक्शन लिया गया है. जबकि, बाकी पार्टियों की ओर से 90 शिकायतें दर्ज हुई थीं और इनमें 80 मामलों में कार्रवाई की गई है.

आचार संहिता का उल्लंघन कब माना जाएगा?

- अगर कोई भी उम्मीदवार या नेता जाति या संप्रदाय के आधार पर वोट मांगता है.
- ऐसा कुछ करता है जिससे अलग-अलग जातियों, समुदायों, धर्मों या भाषाई समूहों के बीच मतभेद बढ़ने का खतरा हो या आपसी घृणा और तनाव पैदा हो सकते हों.
- असत्यापित आरोपों के आधार पर या बयानों को तोड़-मरोड़ दूसरी पार्टी के नेताओं या कार्यकर्ताओं की आलोचना की जाती है तो.
- किसी भी धार्मिक स्थल का भाषण या पोस्टर या चुनावी प्रचार से जुड़े काम में इस्तेमाल किया गया हो.
- वोटरों को धमकाना, लालच देना, पैसा देना, शराब बांटना, प्रचार थमने के बावजूद रैली करना या फिर वोटरों को पोलिंग बूथ तक ले जाना भी आचार संहिता का उल्लंघन माना जाता है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: क्या जेल में रहकर भी लड़ा जा सकता है चुनाव? समझें भारत में कौन नहीं लड़ सकता इलेक्शन

क्या कर सकता है चुनाव आयोग?

अगर कोई उम्मीदवार या नेता आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो चुनाव आयोग उस पर कार्रवाई कर सकता है.

उम्मीदवार के प्रचार करने पर रोक लगाई जा सकती है. उसे चुनाव लड़ने से भी रोका जा सकता है. इसके साथ ही उसके खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज कराया जा सकता है. आचार संहिता का उल्लंघन करने पर जेल की सजा का प्रावधान भी है.

चुनाव से जुड़े अपराधों को आईपीसी (अब भारतीय न्याय संहिता) और जनप्रतिनिधि कानून में 'करप्ट प्रैक्टिस' माना गया है. ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर जेल की सजा भी हो सकती है.

बाल ठाकरे. (फाइल फोटो)

जब बाल ठाकरे से छीना था वोट का अधिकार

चुनाव आयोग इतना ताकतवर है कि वो किसी व्यक्ति से वोट का अधिकार भी छीन सकता है. करीब दो दशक पहले चुनाव आयोग ने शिवसेना के संस्थापक रहे बाल ठाकरे से वोट का अधिकार छीन लिया था.

Advertisement

ये मामला 1987 में महाराष्ट्र विधानसभा की विले पार्ले सीट पर हुए उपचुनाव से जुड़ा था. इस दौरान बाल ठाकरे पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था. आरोप था कि ठाकरे ने शिवसेना के उम्मीदवार यशवंत प्रभु के चुनावी प्रचार में भड़काऊ भाषण दिए हैं.

मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा. 1991 में हाईकोर्ट ने दोषी ठहराते हुए यशवंत प्रभु पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए बाल ठाकरे को भड़काऊ भाषण देने का दोषी पाया था. लेकिन ठाकरे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं थे, इसलिए उनकी सजा पर फैसला करने का अधिकार चुनाव आयोग को दिया गया.

तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एमएस गिल की अगुवाई में एक समिति बनी. इस समिति ने सितंबर 1998 को राष्ट्रपति से बाल ठाकरे को वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की सिफारिश की थी. आयोग की सिफारिश पर जुलाई 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण ने ठाकरे के वोट डालने पर रोक लगा दी.

Advertisement

बाल ठाकरे पर ये रोक 11 दिसंबर 1995 से 10 दिसंबर 2001 तक रही. उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई. तब बाल ठाकरे ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अगर मामले में फैसला जल्दी हुआ होता तो अब तक वो अपनी सजा पूरी कर चुके होते. अगले दिन शिवसेना में एक लेख छपा, जिसका टाइटल था- 'लोकतंत्र जिंदाबाद'.

चुनावों में ऐसे आई आचार संहिता

1950 में चुनाव आयोग का गठन हो गया था. लेकिन उस वक्त आचार संहिता नहीं थी. भारत में 1960 के दशक से आचार संहिता की शुरुआत केरल विधानसभा चुनाव से हुई. इसके बाद 1962 के आम चुनाव के दौरान आचार संहिता रही. 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी आचार संहिता का पालन हुआ.

आचार संहिता बन तो गई थी, लेकिन इसके लागू होने का कोई समय तय नहीं था. 1991 में चुनाव आयोग ने सुझाव दिया कि जिस दिन चुनाव तारीखों का ऐलान हो, उसी दिन से आचार संहिता को लागू किया जाए. लेकिन केंद्र सरकार चाहती थी कि जिस दिन अधिसूचना जारी हो, उस दिन से आचार संहिता लागू हो.

मामला अदालतों में भी गया. आखिरकार अप्रैल 2001 में चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के बीच इस बात पर सहमति बनी कि आचार संहिता उसी दिन से लागू की जाएगी, जिस दिन तारीखों का ऐलान होगा. इसमें ये भी सहमति बनी और चुनाव तारीखों के ऐलान और अधिसूचना जारी होने की तारीख के बीच कम से कम तीन हफ्ते का अंतर होगा.

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

Maharashtra: 12 साल की नाबालिग के साथ रेप, आरोपी को पुलिस ने किया अरेस्ट

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now