अमेरिका-रूस के तनाव में फंस गई दुनिया, क्या अंतरिक्ष से गिरेंगे परमाणु हथियार?

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दो दिनों से पूरी दुनिया में एक नई चर्चा चल रही है. अंतरिक्ष में परमाणु हथियार. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या अंतरिक्ष में इस तरह के हथियार हैं? क्या दुनिया के ताकतवर देशों के पास इस तरह के हथियार हैं, जो अंतरिक्ष से लॉन्च किए जा सकते हैं? आइए जानते हैं कि क्या असल में स्पेस वेपन का इस्तेमाल किसी देश के खात्मे के लिए किया जा सकता है. या ऐसा कुछ है ही नहीं.

अमेरिका और जापान जैसे देश चाहते हैं कि अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल न हो. संयुक्त राष्ट्र में आउटर स्पेस ट्रीटी को लेकर इस पर मतदान हुआ. पक्ष में 13 वोट मिले. लेकिन रूस ने वीटो का इस्तेमाल किया. चीन वोटिंग में शामिल नहीं था. फिलहाल रूस इस बात से सहमत नहीं दिख रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि रूस ऐसा सैटेलाइट बना रहा है, जो परमाणु हथियार लेकर अंतरिक्ष में जा सकता है.

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पहले तो यह समझते हैं कि स्पेस वेपन मतलब क्या?

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स्पेस वेपन यानी वो हथियार जो अंतरिक्ष से दागे जाएं. टारगेट चाहे धरती पर कोई स्थान हो या अंतरिक्ष में किसी देश का सैटेलाइट या स्पेस स्टेशन. इस तरह के हथियार से बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों को अंतरिक्ष से खत्म किया जा सकता है. इस तरह के हथियारों का जिक्र अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध (Cold War) के समय शुरू हुआ था.

कहते हैं कि उस समय इन दोनों देशों ने ऐसे हथियारों की डिजाइन बना लिए थे. ये भी कहा जाता है कि दोनों ने ऐसे हथियार बना भी लिए थे. लेकिन अबी तक ऐसे किसी हथियार को अंतरिक्ष में तैनात करने की कोई खबर या जानकारी न तो आधिकारिक तौर पर बाहर आई है. न ही लीक हुई है.

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क्या किसी देश के पास इस तरह के हथियार हैं?

सोवियत संघ के समय अलमाज (Almaz) सीक्रेट मिलिट्री स्पेस स्टेशन बनाया गया था. जिसमें 23 मिलिमीटर की ऑटोकैनन लगी थी. ताकि इसके ऊपर होने वाले हमले या टारगेट को खत्म किया जा सके. अब तक के इतिहास में सिर्फ यही इकलौता ऐसा हथियार है, जो अंतरिक्ष में तैनात किया गया था.

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इसके अलावा सोवियत संघ ने पोलियस (Polyus) नाम का स्पेस वेपन प्लेटफॉर्म बनाया था, जो एक लेजर हथियार था. इसके अलावा इसमें एक सेल्फ-डिफेंस कैनन लगा था. हालांकि सोवियत संघ ने इसे अंतरिक्ष में तैनात किया है या नहीं इसके बारे में कोई खुलासा नहीं है.

क्या अंतरिक्ष में परमाणु हथियार भेजे जा सकते हैं?

1967 में हुए आउटर स्पेस ट्रीटी यानी अंतरिक्ष को लेकर दुनिया के ताकतवर देशों के बीच समझौता, जिसमें इस बात पर प्रतिबंध लगाया गया है कि रूस और अमेरिका समेत सभी देश अंतरिक्ष में किसी भी तरह का परमाणु हथियार या सामूहिक विनाश करने वाले हथियारों को तैनात नहीं करेंगे. अगर अंतरिक्ष में कोई परमाणु विस्फोट होता है तो वह सीधे तौर पर धरती या यहां रह रहे इंसानों या जीव-जंतुओं को नुकसान नहीं पहुंचाता.

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धरती से अंतरिक्ष तक जाने वाले हथियार

दुनिया के कई देशों के पास जैसे- भारत, अमेरिका, चीन और रूस के पास एंटी-सैटेलाइट वेपन हैं. यानी धरती से ही मिसाइल दागकर अंतरिक्ष में सैटेलाइट को मार कर गिरा सकते हैं. इनके कई टेस्ट हो चुके हैं. इस तरह के हथियारों में विस्फोटक और काइनेटिक किल का इस्तेमाल होता है. काइनेटिक किल यानी किसी मिसाइल को बिना हथियार के ही सीधे सैटेलाइट से टकरा देना. इससे सैटेलाइट टूटकर बिखर जाता है.

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क्या अंतरिक्ष में इस समय इस तरह के हथियार हैं?

फिलहाल किसी भी देश की तरफ से अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात नहीं किया गया है. यानी अंतरिक्ष में घूम रहे 7500 से ज्यादा सैटेलाइट्स में किसी तरह का कोई हथियार नहीं है. जिन देशों या कंपनियों के सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हैं, उनका इस्तेमाल राष्ट्रीय, स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हो रहा है.

अंतरिक्ष में भेजे गए थे परमाणु रिएक्टर

अमेरिका ने 1965 में अंतरिक्ष में एक प्रायोगिक परमाणु रिएक्टर लॉन्च किया था. रूस ने 1967 और 1988 के बीच उपग्रहों पर कम से कम 34 परमाणु रिएक्टर लॉन्च किए थे. इनके जरिए सैटेलाइट्स को ऊर्जा मिलती है. हालांकि इनका इस्तेमाल कोई भी देश हथियार के तौर पर कर सकता है. वह भी सीधे सैटेलाइट को जमीन पर गिराकर.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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